Homeलघु कथाएक सत्य कथा — अवांछित

एक सत्य कथा — अवांछित

यह आधुनिक भौतिकवादी युग की कड़वी सच्चाई है कि माता—पिता जब तक काम के रहते हैं बेटे—बहू उनकी पूछ करते हैं, लेकिन यदि वह बूढ़े, अशक्त, लाचार व अपने बच्चों पर आश्रित हो जायें तो कई औलादों की सोच बदल जाती है ! यही सब बतलाने का सफल प्रयास किया है लखनऊ के लेखक विप्लव वर्मा ने अपनी कहानी ‘अवांछित’ में — सं.

मां को तो यहां रखने में काफी दिक्कतें हैं। एक तो यहां गर्मी बहुत पड़ती है, जो उसे सहन नहीं। दूर-दूर तक पेड़-पौंध नहीं दिखते। भाषा की समस्या, काॅलोनी का वातावरण, तिमंजिले पर यहां मकान है, सांस फूलती है, उनका पहाड़ी गंवारूपन, कुमाउनी लहजा।

यहां भट्ट, गहत, मडुवे का आटा, खीरे की बड़ि या गंडेरी, लाई का साग आदि उनकी पसंद की पहाड़ी खाने की चीज़ें भी नहीं मिलतीं। आडू-बेडू, खुवानी, काफल, दाड़िम, पुल्लम यहां कहां से लायें ? नीबू सान का दही में भांग डालकर यहां चटखारे से खाने को कहां मिलेगा। लखनऊ आते ही पहाड़ की याद आने लगती है। ‘नराई’ लग जाती है। आलू के गुटके, रायता, खुश्याणी, सिसुणा याद आने लगते हैं। दोनों छोटे बेटों की, उनके बच्चों की याद आने लगती है। एक अल्मोड़ा में है- सबसे छोटा दिनुआ, दूसरा नैनीताल में है- रजुआ। लड़की भी शायद नैनीताल में सैटिल्ड है। बाबू का स्वर्गवास भी अल्मोड़ा में हुआ था। उनकी आत्मा भी बुलाती होगी, लेकिन सबसे मुख्य कारण है कि उनका अपनी बहू सरोज से छत्तीस का आंकड़ा है।

बड़ी बहू से हर समय तू-तू मैं-मैं होती रहती है। पोता भी कठोर शब्द बोल देता है। एकदम रोना-धेना, आंसू, शिकवे-शिकायत, शुरफ हो जाते हैं। सांस का दौर, मूर्छा या ब्लड प्रेशर की शिकायत शुरू हो जाती है। डाक्टर बुलाओ, समझाओ-बुझाओ, पानीपत के मैदान में चीन की दीवार खड़ी हो जाती है।

दूसरा मुख्य कारण आजकल महंगाई के जमाने में अपने ही खर्चे इतने अधिक हैं, मकान का किराया, बच्चों की फीस, पेट्रोल का खर्च, दूध्, सब्जी, कपड़े, फोन आदि का खर्च बढ़ गया है। मां का खर्च ही उठाना कठिन है। अलग से उनके रहने की व्यवस्था, उनका पूजा का स्थान आदि कई बवाल उनके साथ हैं। वह सुबह जल्दी उठ जाती है। सब डिस्टर्ब हो जाते हैं। टीवी में भी उन्हें आपत्ति है, भक्ति के चैनल तो देख लेती है। बाकी हर बात आलोचना, टोका—टोकी, फोन इतना करेंगी कि बिल भरते-भरते मर जाओ, कई बार समझाया, ज्यादा पैसा लगता है फिर भी मिला लेती हैं – छोटे बेटे दिनेश को या मंझले राजेश को। वहां के मौसम के हाल से लेकर सारे रिश्ते अड़ोसी-पड़ोसियों के बारे में पूछ गच्छ।

इस बात से तो बड़ा बेटा रमेश भी खीझ उठता था। झिड़क देता था। ‘इजा तू समझनी किलै नी, हर बखत फोन, कितु डबल दिन पड़नी।’ ‘उन लोगों को चिंता होगी तो खुद ही करेंगे फोन।’ लेकिन मां इस बात पर गुस्सा हो जाती थीं। जिनको अपना पेट काटकर पढ़ाया-लिखाया आज उन पर मैं भारी पड़ रही हूं। बहू के सिखावे में सब बोलते हैं।

रमेश ने कई बार छोटे भाइयों राजेश और दिनेश से कहा भी कि कुछ दिन तुम रखो बारी-बारी से मां को अपने पास। कुछ खर्च मुझसे भी ले लो, अब बुढ़ापा है उसका। कभी कुछ हो गया तो सारे इलाज का खर्चा, जिम्मेदारी मुझ पर आयेगी। मर गई तो सब कहेंगे ठीक से रक्खा नहीं। अंत्येष्टि, संस्कार, दसवां, तेरहवीं सब करना पड़ा तो कहां से आयेगा इतना पैसा।

मंझला भाई राजेश तो एकदम भड़क जाता है। कहता है तुम्हारी इतनी ज्यादा सैलरी है, इतनी बड़ी पोस्ट है। तुम नहीं रख पा रहे हो मां को, तो मैं तो छोटी नौकरी में कम तनख्वाह पाता हूं। मैं कैसे रख पाऊंगा। पैसा थोड़ा-बहुत लेना है तो ले लो, लेकिन मां को या तो गांव भेज दो या फिर अल्मोड़ा दिनेश के पास। यह जानते हुए भी गांव में टूटे-फूटे मकान के अलावा कुछ नहीं, बिजली-पानी नहीं, कोई देखभाल करने वाला नहीं, पिफर भी वहां भेजने की बात पता नहीं किस तरह कह लेता है।

उसकी पत्नी तो और टेड़ी है। वह कहती है कि ‘‘मैं दिन भर नौकरी करती हूं। इस बुढ़िया की सेवा नहीं कर सकती। कुछ काम इसे बता दो तो कहती है, नौकरानी समझते हैं। खाती भी चार-चार बार है। कपड़े धोने बैठेगी तो सारा साबुन पीस देगी और बर्तन धोयेगी तो एकाध कप, गिलास जरूर फोड़ेगी। अपनी बला मुझ पर मत डालो। मैं उसके इशारे पर धोती, साड़ी नहीं पहन सकती। जींस पहनती हूं तो टोकने लगती है। पुराने जमाने की गंवार है। सोसाइटी में शर्म आती है, बताते हुए कि ये अनपढ़ जाहिल मेरी सास है।’’

वहां तो दोनों बिलकुल ही हाथ उठा देते हैं। बच्चे भी खास लगाव नहीं रखते दादी से। छोटी बहू मुलायम स्वभाव की है तो आखिरकार अल्मोड़े में ही रखने का फैसला करना पड़ा, खूब खाओ बाल सिंगौड़ी, खूब मनाओ हरेला, काले कौआ, नंदा देवी का कौतिक देखो। परूली, रघुली से बातें करो, चितई गोल्ल देवता का माथा टेको, लेकिन लखनऊ से तो जाओ। अब मत बैठना रेलगाड़ी में……

अभी बीमारी की खबर आई। बड़ा वाला, नया धोती—कुर्ता बनवा कर गया कि अंत्येष्टि में शामिल होना पड़ा तो सफेद धोती कुर्ता कहां ढूंढता रहेगा, लेकिन मां इस बार नहीं मरी, ठीक हो गई। कितनी जान होती है इन बूढ़ों में। एक पसली के हो जायेंगे आह—आह करके सांस लेते रहेंगे। खांसते-खांसते रहेंगे। जोड़ों के दर्द से कराहते रहेंगे, लेकिन प्राण नहीं निकलेंगे अभी। जैसे इक्कीसवीं सदी के बाद बाइसवीं सदी भी देखने को रूके हैं।

बड़ी की पत्नी इसी बात पर खीज रही थी कि दो बार जा चुके हैं। धोती, कुर्ता, लोटा, जनेऊ, खड़ाऊं, पूरी तैयारी से तमाम किराया आने-जाने का फूंक चुके हैं। छुट्टी बर्बाद कर चुके हैं, लेकिन वह अभी मर नहीं रही है। फिर—फिर अस्पताल से घर आ जाती है। जाने कब तक सीने पर दाल दलेगी। न जाने इजा कब मरेगी।


Deepak Manral
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DEEPAK MANRAL E-Mail : udeepmanral@gmail.com >> Successful experience of journalism in the field of Daily Hindi News papers & Magazines. (Amar Ujala, Uttaranchal Deep, Pradhan Times Daily, Katyuri Mansarovar, Dharmyudh etc.) >> Career Objective : To broaden my vision by continuous learning & taking up challenging assignments. >> Summary : A total experience of nearly 6 years in the field of desk top publication, Edition & News Reporting Major part had been working with “Amar Ujala” as a News Reporter and later Bureo Chief Bageswar. I have been exposed to both criminal & political Reporting. >> Work Experience : Organization : Ms Amar Ujala publication ltd. Worked as a News Reporter with this reputed Hindi Newspaper wherein exposed to both criminal & Political reporting while being attached to their various offices at Haldwani, Almora, Ranikhet & Bageshwar Duration : 6 Years (Jan 2001 to May 2006) Organization : M/s Katyuri Prakashan (A family owned publication house taking out Quarterly magazines namely ‘Katyuri Mansarovar’ & ‘Dharmyudh’. >> Key Performance Areas Editing of the articles being received from various sources. Handling all related correspondences. Freelance writing in various News Papers : 3 Years (2009 to 2011) Ms Uttaranchal Deep Hindi Daily >> Duration : 7 Years (2012 to 2018) >> Key performance Areas Covered criminal reporting while based at Haldwani. Covered political reporting while based at Almora Office. Was responsible for mainly editing job while based at Ranikhet & Subsequently at Bagheswar office. >> Academic Qualification : M.A. (Hindi) from Kumaun University in 1999. 6 Monts computer Course from JCTI, New Delhi. B.A. From Delhi University in 1996 12th from CBSE, Delhi in 1993 >> Technical Expertise : Proficiency in DTP. Proficient in Page Maker & Coral Draw. Good Knowledge of English & Hindi typesetting. Hardcore Knowledge of composing & editing. >> Personal Profile : Date of Birth : 13th Nov, 1974 Father’s Name : Late Mr. Balwant Manral >> Communication Address : Manral Sadan, Narsing Bari, Almora (Uttarakhand) 263601
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