Success Story: मेहनत, लगन व दूरदर्शी सोच से पाई कामयाबी और बने नामी

✒️ अल्मोड़ा के व्यवसायी स्व. जगत सिंह बिष्ट की जयंती पर विशेष ✒️ व्यवसाय के साथ उठाया समाजसेवा व पर्यटन विकास का बीड़ा ✒️ मुकाम…

Hotel Shikhar Almora

✒️ अल्मोड़ा के व्यवसायी स्व. जगत सिंह बिष्ट की जयंती पर विशेष

✒️ व्यवसाय के साथ उठाया समाजसेवा व पर्यटन विकास का बीड़ा

✒️ मुकाम हासिल करने की प्रेरणा देता है उनका मेहनतकश जीवन

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा: सफलता व उच्च मुकाम हासिल करने के लिए यह मायने नहीं रखता कि आप साधारण परिवार से हैं या धनाड्य तबके से। तमाम लोग हैं, जिन्होंने एक साधारण परिवार से आगे कदम रखकर मुकाम हासिल किया और नामी बन गए। चाहे वह कोई क्षेत्र हो। यह वह लोग होते हैं, जो निष्ठा, लगन, परिश्रम को सफलता के लिए हथियार बनाते हैं और सेवा व दूरदर्शी सोच के साथ अपने लक्ष्य की ओर बढ़ते हैं। ऐसे लोगों को बड़ी कामयाबी हासिल करने को नहीं रोक सकता। इन्हीं लोगों में शुमार हैं अल्मोड़ा के नामी होटल व्यवसायी स्व. जगत सिंह बिष्ट। जो साधारण परिवार में जन्मे और व्यवसाय व समाजसेवा के क्षेत्र के अग्रणी पंक्ति में अपना नाम शुमार करते हुए सफलता की बड़ी प्रेरणा समाज को दे गए। स्व. जगत सिंह बिष्ट की मेहनतकश जिंदगी के लंबे सफर का स्मरण आज (3 फरवरी) को उनकी जयंती के उपलक्ष्य में किया जा रहा है।

हाईस्कूल के बाद नौकरी को डाबर कंपनी पहुंचे

3 फरवरी 1934 को जिला बागेश्वर के कपकोट तहसील अंतर्गत ग्राम चकतरी में नैन सिंह बिष्ट एवं चंद्रा देवी के घर में व्यवसायी जगत सिंह बिष्ट का जन्म हुआ था। उनके पिता नैन सिंह बिष्ट साधारण तबके के किसान थे और जगत सिंह बिष्ट की पढ़ाई 10वीं कक्षा तक हो पाई। इसके बाद 50 के दशक में नौकरी की जुगत में जगत सिंह बिष्ट बहुप्रतिष्ठित डाबर कंपनी के मालिक डॉ. अशोक बर्मन के कोलकाता स्थित कारखाने में चले गए, जहां उन्होंने कंपनी में नौकरी शुरू की।

मेहनत से पूरे कुमाऊं में फैलाया कंपनी का काम

डाबर कंपनी में नौकरी के दौरान जगत सिंह बिष्ट ने देश के दक्षिणी राज्यों को छोड़कर अन्य सभी राज्यों में कंपनी के प्रचार—प्रसार का काम किया। कर्मशील व ईमानदार स्वभाव के साथ ही कुछ नया करने व सीखने की ललक से वह आगे बढ़ते गए और उन्होंने मार्केटिंग के अनुभव का पिटारा भरा। उनके अनुभव, लगन व दूरदर्शिता से कंपनी मालिक डा. अशोक बर्मन काफी खुश हुए और उन्होंने साठ के दशक में अल्मोड़ा में डाबर कंपनी की एजेंसी का काम जगत सिंह बिष्ट को सौंप दिया। फिर क्या था मेहनत व दूरदर्शी सोच रंग लाई और उन्होंने पूरे कुमाऊं में डाबर का काम फैला दिया।

जनसुविधा के लिए ‘टाइगर’ नाम से उतारी आधुनिक बसें

कुछ नया करने व जनसेवा की सोच सदैव उन पर सवार रही। जहां एक ओर कुमाऊं में डाबर कंपनी का कारोबार फैलाया, वहीं दूसरी तरफ नई सोच से उस दौर में केमू बेड़े में अपनी नई बसें शुमार की और उनका संचालन शुरू किया। केमू में उनकी बसें ‘टाइगर’ नाम से जानी गईं। अभावों के कारण उस दौर में केमू में जीर्ण-क्षीर्ण हालात में बसें हुआ करती थी, लेकिन केमू की बसों की दशा सुधारने की पहल करते हुए मेरठ स्थित बॉडी मेकर हरीश इण्डस्ट्रीज से निर्मित आधुनिक स्टील बॉडी बसों का निर्माण कराया। जिसे नई बसें केमू में चली।

पर्यटन विकास को आधुनिक होटलों की नींव डाली

दरअसल, पहाड़ में पर्यटन को विकसित करने की धुन भी व्यवसायी जगत सिंह बिष्ट ने पकड़ी। शायद पर्यटकों को आरामदेह बसें उपलब्ध कराने के उद्देश्य से उन्होंने आधुनिक बसों का संचालन शुरू किया। भले ही आज पहाड़ में एक से बढ़कर एक सुविधायुक्त होटल सुविधा उपलब्ध है, लेकिन उस दौर में पर्यटकों के ठहरने की किफायती व बेहतर सुविधायुक्त होटलों का अभाव था। उन्हें आभास हुआ कि यह अभाव भी पर्यटन विकास में रोड़ा है। इसी अभाव को दूर करने की उन्होंने ठानी और सन् 1986 में माल रोड में आधुनिक सुविधायुक्त होटल का निर्माण शुरू कर डाला और सन् 1989 से होटल का संचालन प्रारंभ हो गया। यह होटल तब से ‘शिखर’ के नाम से मशहूर है। जो महज अल्मोड़ा या उत्तराखंड में ही नहीं बल्कि देश के कोने—कोने में पहचान रखता है। यह कहना गलत नहीं होगा ​कि अल्मोड़ा में आधुनिक होटलों की नींव होटल शिखर से ही पड़ी। जिससे यहां पर्यटकों का ठहराव होने लगा। इसमें कई लोगों को रोजगार मिला, तो पर्यटन विकास को राह मिली। अल्मोड़ा माल रोड में उस दौर का सर्वाधिक आलीशान भवन बनाया, जो आज भी दानपुर भवन या हाथी भवन के नाम से विख्यात है।

कई सराहनीय कार्यों में बढ़ाया हाथ

व्यवसाय के साथ ही सेवा का भाव भी सदैव उनसे जुड़ा रहा। उन्होंने अल्मोड़ा में शंकर भैरव मंदिर का जीर्णोद्धार कराया तथा प्रसिद्ध चितई गोलू देवता मंदिर का मुख्य गेट बनवाते हुए चहारदीवारी का निर्माण कराया। इसके अलावा ‘राह में आए जो दीन—दुखी, सबको गले लगाते चलो’ सरीखी पंक्तियों पर अमल करते रहे। कई लोगों की उन्होंने मदद की। उन्होंने अपने गृहक्षेत्र कपकोट के विकास के लिए भी कदम उठाए और सन् 1975 में अपने पिता की स्मृति में रामलीला स्टेज बनवाया। उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन में भी उन्होंने अहम् भागीदारी की और उन्हें जिला प्रशासन ने राज्य आंदोलनकारी चिन्हीकरण समिति का सदस्य भी बनाया था। दरअसल वह ऐतिहासिक नगरी अल्मोड़ा को पर्यटन मानचित्र में लाना चाहते थे और इसी के लिए प्रयास करते रहे। वह आजीवन होटल एसोसिएशन अल्मोड़ा के जिलाध्यक्ष का दायित्व बखूबी निभा गए।

हर वर्ग व संगठनों के लोगों से रहा गहरा नाता

दूरगामी सोच व सेवाभाव वाले स्व. जगत सिंह बिष्ट बेहद मिनलसार थे और ज्वलंत मुद्दों पर चर्चा उनकी रुचि में शुमार रहती थी। मिलनसार स्वभाव के कारण हर वर्ग के छोटे से लेकर उच्च पदस्थ लोगों से उनका गहरा नाता रहा। हर राजनैतिक दल के नेताओं का उनसे मिलना—जुलना लगा रहा और राजनैतिक व विकास के विषयों पर चर्चा होते रही। एक नामी व्यवसायी, समाजसेवी व दूरदर्शी सोच वाला यह व्यक्तित्व 16 अगस्त 2013 को हृदयाघात के चलते दुनिया छोड़कर चला गया। पर्यटन विकास में अतुलनीय योगदान को देखते हुए हरीश चंद्र सिंह रावत ने अपने मुख्यमंत्रित्वकाल में राजकीय होटल मैनेजमेंट अल्मोड़ा का नामकरण स्व. जगत सिंह बिष्ट के नाम पर किया। स्व. जगत सिंह बिष्ट का जीवन मेहनती व लगनशील लोगों को प्रेरणा देने वाला रहा है।

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