परम्परागत कृषि विकास योजना में नहीं हो रहा है स्वीकृत कार्ययोजना का अनुपालन

डा. राजेंद्र कुकसाल9456590999 -प्रधानमंत्री की पन्द्रह हजार करोड़ रुपए की इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन में नहीं हो रहा भारत सरकार की गाइडलाइंस तथा स्वीकृत…

डा. राजेंद्र कुकसाल
9456590999

-प्रधानमंत्री की पन्द्रह हजार करोड़ रुपए की इस महत्वाकांक्षी योजना के क्रियान्वयन में नहीं हो रहा भारत सरकार की गाइडलाइंस तथा स्वीकृत कार्ययोजना का अनुपालन।

-योजना का उद्देश्य लघु एवं सीमांत क्षेणी के पर्वतीय एवं वर्षा पर आधारित क्षेत्र के कृषकों की आर्थिक मदद कर स्थानीय परम्परागत फसलों को जैविक मोड़ में ला कर कृषकों की आय बढ़ाना।

-स्वयंम जैविक बीज खाद व कीट व्याधि नाशक दवाओं के उत्पादन हेतु किसानों को कभी भी प्रेरित नहीं किया गया और न ही उन्हें इस कार्य हेतु प्रोत्साहन धनराशि उपलब्ध कराई गई।

-जैविक के नाम पर उद्यान विभाग किसानों को योजना में बांट रहे हैं निम्न स्तर के फल पौध, बीज, दवा, खाद व अन्य सामग्री।

जैविक कृषि विधेयक-2019 विधानसभा में पारित होने के साथ ही उत्तराखंड जैविक एक्ट लाने वाला देश का पहला प्रदेश बन गया है। हालांकि, सिक्किम पहला जैविक राज्य है, लेकिन वहां ‘एग्रीकल्चर, हॉर्टिकल्चर इनपुट एंड लाइवस्टॉक फीड रेगुलेटरी एक्ट-2014’ के तहत कदम उठाए गए।

उत्तराखंड में जैविक खेती की संभावनाओं को देखते हुए इस दिशा में वर्ष 2003 से ही प्रयास शुरू हो गये थे।

दिनांक 1 अप्रैल 2003 को तत्कालीन प्रमुख सचिव एवं आयुक्त, वन एवं ग्राम्य विकास उत्तराखंड शासन की अध्यक्षता में आयोजित जैविक कृषि से संबंधित बैठक का आयोजन किया गया। उत्तरांचल शासन, कृषि एवं कृषि विपणन अनुभाग, संख्या-517/कृषि/2002-2003 दिनांक 5 अप्रैल 2003 को उक्त बैठक की कार्यवृत्त जारी हुई।

बैठक में निर्णय लिया गया कि प्रदेश के वर्षा आधारित पर्वतीय क्षेत्र में शत् प्रतिशत जैविक कृषि का कार्य क्रम अपनाया जाए तथा मैदानी क्षेत्रों में कृषकों को जैविक कृषि वैकल्पिक रूप में अपनाने हेतु प्रेरित किया जाए।

प्रदेश को जैविक प्रदेश बनाने हेतु लगातार प्रयास होते रहे जिनके आधार पर प्रधानमंत्री द्वारा वर्ष 2017 में केदारनाथ यात्रा के दौरान उत्तराखंड प्रदेश को जैविक प्रदेश बनाने की घोषणा की गयी इसी को मूर्तरूप देने हेतु परम्परागत कृषि विकास योजना राज्य में प्रारंम्भ की गई।

पारम्परिक कृषि विकास योजना का मुख्य उद्देश्य लघु एवं सीमांत क्षेणी के पर्वतीय एवं वर्षा पर आधारित क्षेत्र के कृषकों की आर्थिक मदद कर स्थानीय परम्परागत फसलों को जैविक मोड़ में ला कर कृषकों की आय बढ़ाना जिससे उनके जीवन स्तर में सुधार हो सके।

इस योजना में क्लस्टर मोड पर ऑर्गेनिक कृषि को प्रोत्साहन देने के लिए 50 हजार रुपए प्रति हेक्टेयर की दर से धनराशि किसानों को दी जाती है, जो तीन वर्षों के लिए देय होती है।

योजना में डी.बी.टी. (सीधे कृषक के खाते में) के माध्यम से निवेशों हेतु प्रोत्साहन धनराशि 10000 है, कृषकों को देने का प्राविधान है।

परम्परागत कृषि विकास योजना के तहत जैविक खेती को सहभागिता प्रतिभूति प्रणाली यानी पी.जी.एस. (पार्टिसिपेट्री गारंटी सिस्टम) और क्लस्टर पद्धति से जोड़ा गया है।

पी.जी.एस. में लघु जोत किसान या उत्पादक एक-दूसरे की जैविक उत्पादन प्रक्रिया का मूल्यांकन, निरीक्षण व जांच कर सम्मिलित रूप में पूरे समूह की कुल जोत को जैविक प्रमाणीकृत करने का प्राविधान हैं।

कृषि निदेशालय उत्तराखंड, देहरादून के पत्रांक- कृ.नि./25/जैविक/ पी.के.वी.वाई./2020-21/देहरादून दिनांक 9 अप्रैल 2020 के द्वारा परम्परागत कृषि विकास योजना 2019-20 हेतु भारत सरकार द्वारा प्रथम किस्त के रूप में रु. 3550.53 लाख की धनराशि अवमुक्त की गई है।

परम्परागत कृषि विकास योजना के तहत राज्य में औद्यानिकी विकास के लिए उद्यान विभाग को 1241 क्लस्टर विकसित करने का जिम्मा सौंपा गया है। इनमें 1206 औद्यानिकी और 35 जड़ी-बूटी के क्लस्टर हैं। वर्ष 2018-19 से पी.के.वी.वाई. में उद्यान विभाग को अब तक 40.27 करोड़ की धनराशि जारी की जा चुकी है।

शासन द्वारा विभागों को समय-समय पर स्वयंम सहायता समूहों से कम्पोस्ट खाद केचुयें की खाद बनाने व योजनाओं में उन्हें क्रय करने तथा स्थानीय उत्पादों के जैविक बीज उत्पादन हेतु निर्देश दिए जाते रहे हैं।

उद्यान विभाग द्वारा जैविक खेती के नाम पर आवंटित बजट से केवल और केवल टेंडर प्रक्रिया से निम्न स्तर के बीज दवा, खाद व अन्य सामग्री क्रय कर किसानों को बांटा है।

किसानों से स्वयंम जैविक बीज खाद व कीट व्याधि नाशक दवाओं के उत्पादन हेतु कभी भी प्रेरित नहीं किया गया और न ही उन्हें इस कार्य हेतु प्रोत्साहन धनराशि उपलब्ध कराई गई।

पारम्परिक कृषि विकास योजना का जो प्रस्ताव जिसके आधार पर योजना को स्वीकृति मिली उसका सारांश निम्नवत् से है-

उत्तराखंड प्रदेश, प्राकृतिक दृष्टि से परम्परागत कृषि के लिए उपयुक्त हैं। प्रदेश में कुल कृषि क्षेत्र का लगभग 54 प्रतिशत पर्वतीय एवं वर्षा आधारित क्षेत्र है।

जलवायु विविधता के कारण यहां कई प्रकारकी स्थानीय फसलें फल, जड़ी-बूटी, पुष्प, सुगन्धित पौधे आदि की खेती की जाती है।

प्रदेश में उगाई जाने वाली परम्परागत फसलें पौष्टिक होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर है। इन उत्पादों को जैविक मोड़ में उगाया जाता है तो इनका महत्व एवं व्यापारिक सम्भावनायें और अधिक बढ़ जाती है।

प्रस्ताव से स्पष्ट है कि- उद्यान विभाग द्वारा स्थानीय परम्परागत औद्यानिक फसलें यथा आलू, अदरक, प्याज, लहसुन, अरबी, मसाला मिर्च, राई, गोल मूला आदि जिनका पर्वतीय क्षेत्र के किसान पीढ़ी दर पीढ़ी व्यवसायिक खेती करते आ रहे हैं के बीजों से ही जैविक क्लस्टर विकसित किए जाने थे।

वर्षा आधारित पहाड़ी क्षेत्रों में उगाई जाने वाली परम्परागत फसलें क्षेत्र विशेष की भूमि में रचे-बसे होते हैं इनमें सूखा व अधिक बर्षा सहने की क्षमता अधिक होती है, कीट व्याधि का प्रकोप भी इन पर कम होता है इन फसलों के उत्पाद पौष्टिक होने के साथ-साथ औषधीय गुणों से भरपूर होते है। इन उत्पादों को जैविक मोड़ में उगाया जाता है तो इनका महत्व एवं व्यापारिक सम्भावनायें और अधिक बढ़ जाती है।

विभाग द्वारा कहीं-कहीं अदरक, हल्दी, लहसुन, आलू व मसाला मिर्च के जैविक कलस्टर विकसित करने के प्रयास किए जा रहे हैं। किन्तु वहां पर भी अधिकतर निम्न स्तर के बीज बाहर के राज्यों से लाकर परम्परागत फसलों के बीजों को नष्ट किया जा रहा है।

सभी जनपदों में विभाग की अन्य योजनाओं की भांति ही माननीय प्रधानमंत्री मंत्री की इस महत्वाकांक्षी योजना में भी निम्न स्तर के बीज, फल पौध, जैविक खाद, जैविक कीट व व्याधिनाशक दवायें व अन्य निवेश खरीद कर कृषकों को वितरित कर इस महत्वाकांक्षी योजना की इति श्री की जा रही है जो कि भारत सरकार से स्वीकृत कार्य योजना के विपरीत है यह एक घोर वित्तीय अनियमिता है।

पहले ही विभाग द्वारा अन्य योजनाओं में टेंडर प्रक्रिया से निम्न स्तर के अदरक, लहसुन, मिर्च व प्याज बीज मंगा कर क्षेत्र विशेष में इन फसलों के परम्परागत बीजों को नष्ट करने का प्रयास किया गया है।

माननीय प्रधानमंत्री की महत्त्वाकांक्षी परम्परागत कृषि विकास योजना का मुख्य उद्देश्य क्षेत्र विशेष में उत्पादित स्थानीय परम्परागत फसलों यथा अनाज, दलहन, फल, सब्जी, पुष्प, जड़ी बूटी एवं संगध पाद आदि का चयन, संरक्षण व संमवर्धन कर उत्पादन बढ़ाना तथा इन उत्पाद को जैविक मोड़ में कर विपणन की व्यवस्था करना है जिससे कृषकों की आय में वृद्धि हो सके। किन्तु विभाग इसके विपरीत योजना में बाहरी क्षेत्रों से विना परीक्षण व संस्तुति के जैविक बीज के नाम पर बीज मंगा कर यहां की परम्परागत फसलों को नष्ट करने का प्रयास कर रहा है।

परम्परागत कृषि विकास योजना में कृषकों को वितरित की जाने वाली जैविक दवायें निम्न स्तर की है इन दवाओं में उपलब्ध जीवाणु व बीषाणु कम समय तक सक्रिय रहते हैं अधिक व कम तापमान पर ये शीघ्र नष्ट हो जाते हैं।

जब से राज्य बना जैविक के नाम पर रुद्रपुर, काशीपुर व विकास नगर में स्थापित कुछ कम्पनियों विभागीय अधिकारियों से मिलकर टेंडर प्रक्रिया से अपनी दरें अनुमोदित कराकर विभाग को योजनाओं में निम्न स्तर की इन दवाओं की आपूर्ति करती आ रही है। इन दवाओं का प्रयोग कृषक नहीं करते कभी-कभी तो दवा के ये पैकैट गाड़ गधेरौं में पढ़ें मिलते हैं। यही नहीं इनमें से कई कम्पनियों ने तो गैर सरकारी संगठन NGO भी बना रखे हैं तथा विभागीय अधिकारियों से सांठगांठ कर विभिन्न जनपदों में परम्परागत कृषि विकास योजना का संचालन भी कर रहे हैं।

प्रधानमंत्री की पन्द्रह हजार करोड़ रुपए की इस महत्वाकांक्षी योजना, जिसका उद्देश्य लघु एवं सीमांत क्षेणी के पर्वतीय एवं वर्षा पर आधारित क्षेत्र के कृषकों की आर्थिक मदद से स्थानी परम्परागत फसलों को जैविक मोड़ में कर कृषकों की आय दोगुनी करने का है।

कृषकों की आय तो दोगनी होने से रही नौकरशाह व बीज दवा खाद आपूर्ति करने वालों की आय अवश्य कई गुना बढ़ेगी।

परम्परागत कृषि विकास योजना में औद्यानिक कार्यौ की थर्ड पार्टी द्वारा जांच की बात सरकार कर रही है किन्तु जब विभागों के नौकरशाह (शासन प्रशासन) निवेश आपूर्ति करता फर्में व निवेश क्रय करने वाले विभागों की ही टेस्टिंग लैब विगत बीस बर्षो से साथ मिलकर काम कर रहे हों जांच निश्पक्ष व प्रभावी होगी उम्मीद करना बेमानी है।

उत्तराखंड में कार्यदाई विभागों द्वारा जैविक खेती के नाम पर कृषकों को टैन्डर प्रक्रिया से क्रय किए गए निम्न स्तर के बीज, दवा, खाद आदि सामाग्री बांट कर योजना की इति श्री कर दी जाती है कभी भी सिक्किम राज्य की तरह किसानों को स्वयंम जैविक बीज -खाद उत्पादन हेतु प्रेरित नहीं किया गया।

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