सीएनई विशेषः ”कुमाऊंनी का बनी पहरेदार”; ‘पहरू ने कमाया नाम अपार, हर विधा का रखा खयाल’; सफर तय किया बारह साल

चन्दन नेगी, अल्मोड़ायूं तो ”पहरू” एक मासिक पत्रिका है, लेकिन सच्चाई ये है कि यह महज पत्रिका नहीं बल्कि एक अभियान है, एक आंदोलन है।…


चन्दन नेगी, अल्मोड़ा
यूं तो ”पहरू” एक मासिक पत्रिका है, लेकिन सच्चाई ये है कि यह महज पत्रिका नहीं बल्कि एक अभियान है, एक आंदोलन है। दरअसल, ‘पहरू’ अपनी कुमाऊंनी भाषा के विकास व संरक्षण की सोच से जन्मी है। इस अभियान का लक्ष्य है- कुमाऊंनी भाषा कोे आगे बढ़ाना, उसका विकास करना, उसे देश की अन्य भाषाओं की भांति मान्यता दिलाना और विद्यालयों में एक विषय के रूप में संचालित करवाना। यह अपनी भाषा के प्रति समर्पित एक ऐसी पत्रिका है, जिसने कुमाऊंनी भाषा प्रेमियों, लेखकों व साहित्यकारों को हर विधा में लेखन का मंच प्रदान किया है और बड़ी उपलब्धियां अर्जित की हैं। अभियान का नेतृत्व करते हुए इस पत्रिका ने आज 12 सालों का सफर तय करके हजारों पाठकों की कतार खड़ी कर दी।
पहरू का 12 साल का सफरः कुमाऊंनी मासिक पत्रिका ‘पहरू’ को अनवरत प्रकाशित होते बारह साल का वक्त गुजर गया। इन 12 सालों में पहरू को पाठकों, रचनाकारों का जो प्यार व सहयोग मिला, वह बेमिशाल रहा है। यह हजारों की संख्या जुड़ना इस बात का सबूत भी देती है कि अपनी भाषा प्रेमियों की कमी नहीं है। सभी ने इसके प्रचार-प्रसार और घर-घर पहुंचाने में भरपूर साथ दिया है, तभी इस मासिक पत्रिका ने अपार नाम अर्जित किया है। इसी का परिणाम है कि आज पहरू देश के कौने-कौने में पढ़ी जा रही है और इसकी पाठक संख्या करीब 25 हजार है। बारह सालों में कुमाऊंनी लेखकों और पाठकों की एक लंबी जमात इस पत्रिका ने खड़ी की है।
12 सालों की उपलब्धियांः नवंबर 2008 से लेकर अक्टूबर 2020 तक 756 रचनाकारों की रचनाएं पहरू में छप चुकी हैं। पहरू के साथ कुमाऊंनी लिखने वालों की संख्या 800 पार हो चुकी है। पहरू ने हर विधा में लिखने के अवसर पैदा किए और यही वजह है कि पहरू में अब तक वंदना व प्रार्थना-218, चिट्ठी-पत्री-906, कहानियां-361, लघु कथाएं-142, हास्य व्यंग ( गद्य )-92, नाटक-54, समीक्षा व समालोचना-160, उपन्यास अंश-7, लोक कथाएं-75, लेख-635, कविताएं-1421, अनुवाद-27, यात्रा वृतांत-59, संस्मरण-118, साक्षात्कार-19, शब्द चित्र-24, डायरी-8, आत्मकथा अंश-19, निबंध-116, जीवनी-131, पत्र लेखन-4 प्रकाशित हो चुके हैं। जो एक बड़ी उपलब्धि है।
लेखकों-रचनाकारों को मिला सम्मानः वर्ष 2009 से पहरू ने उत्कृष्ट लेखन पर समय-समय पर सम्मानों का सिलसिला भी शुरू किया और शनैः-शनैः सम्मान पाने वालों की लंबी फेहरिश्त बन चुकी है। अब तक 110 साहित्यकारों को कुमाउंनी साहित्य सेवी सम्मान ( वर्ष 2011 से शुरू), 43 लेखकों को कुमाउंनी भाषा सेवी सम्मान ( वर्ष 2015 से शुरू), 24 व्यक्तियों को कुमाउंनी संस्कृति सेवी सम्मान मिल चुका है। कुल 177 लेखकों, रचनाकारों को सम्मानित किया गया है। इसके अलावा वर्ष 2010 से वर्ष 2020 तक चले लेखन पुरस्कार योजनाओं में कुल 165 रचनाओं के पुरस्कृत किया गया है। इतना ही नहीं वर्ष 2009 से शुरू शेर सिंह बिष्ट अनपढ़ कविता पुरस्कार 11 लोगों, वर्ष 2012 से शुरू बहादुर बोरा श्रीबंधु कहानी पुरस्कार 8 लोगों, शेर सिंह मेहता उपन्यास पुरस्कार (वर्ष 2015-16 ) 2 लोगों, प्रेमा पंत स्मृति खंड काव्य लेखन पुरस्कार ( वर्ष 2016) 3 लोगों, टीकाराम पांडे स्मृति महाकाव्य लेखन पुरस्कार (वर्ष 2013) 1 व्यक्ति, विक्टोरिया क्रॉस कैप्टन गजे घले पुरस्कार ( वर्ष 2018 व 2019) 2 लोगों, गंगा अधिकारी स्मृति नाटक पुरस्कार ( वर्ष 2019) 1 व्यक्ति को मिला है।
ये रहे विशेष प्रकाशनः बारह सालों में पहरू के अंकों में बहादुर बोरा श्रीबंधु, शेर सिंह बिष्ट अनपढ़, मथुरादत्त अंडोला, महेन्द्र मटियानी, बचीराम पंत श्री कृष्ण, ब्रजेन्द्र लाल शाह, गिरीश तिवाड़ी गिर्दा, बालम सिंह जनोटी, शेर सिंह मेहता, मोहम्मद अली अजनबी, प्रताप सिंह स्यूनरी, रमा पंत, चामू सिंह मेहता , डॉ. केशव दत्त रुवाली पर विशेषांक निकाले जा चुके हैं। इनके अलावा उनके जीवन काल में चारू चन्द्र पांडे, बंशीधर पाठक जिज्ञासु, मथुरादत्त मठपाल पर केंद्रित अंक और युवा व महिला विशेषांक निकाले जा चुके हैं।
बहुत पुरानी भाषा है कुमाऊंनीः इतिहास गवाह है कि कुमाऊंनी काफी पुराने वक्त से प्रचलन में है। जिस दौर में हिंदी भाषा का साहित्य ब्रजी और अवधी लिखा जा रहा था, उस दौर में नामचीन लेखक गुमानी पंत और श्रीकृष्ण पांडे कुमाऊंनी भाषा में काव्य रचना कर रहे थे। इतना ही नहीं कत्यूरी व चंद राजाओं के शासनकाल में कुमाउंनी यहां राजकाज की भाषा भी रही है। कुमाउंनी भाषा के शुरूआती रचनाकार गुमानी पंत ( 1791-1846 ), श्रीकृष्ण पांडे ( 1800-1850 ) के बाद से लगातार कुमाउंनी में साहित्य लिखने का काम चलता आया है और आज तक कायम है। सोचनीय बात ये है कि इसके बावजूद यह भाषा उतना मान-सम्मान नहीं पा सकी, जितना इसके मिलना चाहिए था। यही मान सम्मान दिलाने के लिए पहरू के रूप में एक अभियान छिड़ा है।
क्या कहते हैं संपादकः पहरू के संपादक डाॅ. हयात सिंह रावत कहते हैं कि हमारे कुमाऊंनी रचनाकारों-लेखकों के प्रयासों से ही पहरू का लक्ष्य प्राप्त हो सकता है। हमें अपनी भाषा की उपेक्षा को रोकना होगा और अपनी भाषा को आदर-सम्मान व मान्यता दिलाने के लिए एकजुट प्रयास करने होंगे। इसके लिए सभी को पहरू के इस अभियान से खुद को जोड़ना होगा।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *