उत्तराखंड में Pandukholi देखा है आपने, महाभारत काल की घटना से ताल्लुक

इस आलेख Pandukholi में हम पांडुखोली या पाण्डवखोली/पांडुखोली के इतिहास व इसके धार्मिक व पर्यटन की दृष्टि से महत्व के बारे में बता रहे हैं। इसमें ऐतिहासिक पांडुखोली की संपूर्ण कहानी है।

Pandukholi: कुदरत की अद्भुत बख्शीश

Creative News Express Desk

— अद्भुत सुकून का एहसास देती है ऋषि मुनियों की यह तपस्थली

प्रस्तावना: इस आलेख में हम पांडुखोली या पाण्डवखोली के इतिहास (Pandukholi History) व इसके धार्मिक व पर्यटन की दृष्टि से महत्व के बारे में बता रहे हैं। इसमें पांडुखोली कैसे पहुंचे (Pandukholi trek distance), पांडुखोली का मौसम (Pandukholi weather), पांडुखोली की गुफा (pandukholi cave) और ऐतिहासिक पांडुखोली की संपूर्ण कहानी (story of pandukholi) के बारे में विस्तार से बात रहे हैं। निश्चित रूप से यह आलेख पाठकों के लिए बहुत रूचिकर व ज्ञानवर्धक रहेगा।

— पौराणिक महत्व के साथ समेटे है दुर्लभ औ​षधियों का भंडार

चन्दन नेगी, अल्मोड़ाः देवभूमि उत्तराखंड का कुमाऊं क्षेत्र प्राचीन सांस्कृतिक, आध्यात्मिक व स्थापत्य कला का केंद्र रहा है। यहां कुदरत द्वारा बख्शे गए नैसर्गिक सौंदर्य में देश ही नहीं बल्कि दूर विदेश के पर्यटकों को आकर्षित कर यहां तक खींच लाने की क्षमता है। कुमाऊं अपने अंदर एक से बढ़कर एक अद्भुत एवं विहंगम प्राकृतिक नजारे तथा पुरातात्विक, सांस्कृतिक व ऐतिहासिक धरोहरों को समेटे हुए है। इन्हीं में शुमार है— एक दिव्य व एकांत तपोभूमि स्वर्गपुरी पाण्डवखोली (पांडुखोली)। समुद्रतल से करीब 8800 फिट की ऊंचाई पर बसा पांडवखोली महाभारत काल की घटना से ताल्लुक रखता है। जो प्राचीनकाल में भी खास रहा है और आज धार्मिक व आध्यात्मिक पर्यटन की दृष्टि से भी महत्वपूर्ण स्थल है। अल्मोड़ा जनपद के द्वाराहाट से दूनागिरी रोड से होते हुए करीब-​करीब 24 किमी दूर एकांत व ऐतिहासिक स्थल स्थित है। (आगे पढ़िये…)

Story of Pandukholi : ऐतिहासिक/पौराणिक महत्व

Pandukholi History : महाभारत काल की एक घटना का उल्लेख इसी पांडवखोली से जुड़ा है। वह ये है कि पांडवों ने अपने अज्ञातवास के आखिरी सालों में घने वनों से घिरे इसी स्थल पर शरण ली थी। कहा जाता है कि पांडवों ने कई साल पांडवखोली के जंगलों में छिपकर काटे। आज भी यहां पत्थर से निर्मित पांडवों की मूर्तियां मौजूद हैं। बुग्याल के बीच पांच शिलाएं हैं, जिन्हें पांडव माना गया है। लोकगाथाओं के अनुसार जब भगवान राम वन गमन पर थे, तो राम के वियोग में राज सिंहासन त्यागकर राजा भरत इसी जगह पर आए थे और जब हनुमान जी हिमालय से संजीवनी का पहाड़ लेकर आकाश मार्ग से गुजर रहे थे, तो भरत ने तीर मारकर हनुमान को घायल कर दिया, जिससे हनुमान जमीं पर गिर पड़े। कहते हैं कि उसी दौरान संजीवनी के पहाड़ का एक अंश यहां गिर गया, यहीं पहाड़ का अंश दूनागिरी कहलाया। इसी कारण इस क्षेत्र का नाम औषधी प्रदेश भी पड़ा। यह भी कथा प्रचलित है कि पांडवों को ढूंढते हुए कौरव सेना इस क्षेत्र के करीब तक पहुंची। जहां पर कौरव सेना पहुंची, उस स्थल का नाम कौरवछीना पड़ा, जिसे आज कुकुछीना के नाम से जाना जाता है। कथा के अनुसार कुकुछीना से आगे घनघोर वन में पांडवों के छिपने की कम संभावना समझकर कौरव सेना यहीं से वापस लौट गई। पांडवखोली के समीप ही भरतकोट की ऊंची चोटी से एक नदी का उद्गम हुआ, जिसे आज अल्मोड़ा जिले की बड़ी ​नदियों में शुमार गगास नदी के रूप में जाना जाता है। (आगे पढ़िये…)

ध्यान—योग के लिए मशहूर पांडुखोली (Pandukholi famous for meditation-yoga)

पांडवखोली का सुरम्य स्थल ऋषि मुनियों की तप स्थली भी रही है। यह गर्ग मुनि, गुरु द्रोण, शुकदेव, महावतार बाबा आदि की तप स्थली व ध्यान केंद्र रहा है। महाअवतार बाबा ने यहां भारतीय वैदिक परंपरा ‘क्रिया योग’ शुरू कराया और कहा जाता है कि उनके शिष्य श्यामाचरण लाहड़ी ने क्रिया योग की दीक्षा पांडवखोली में ली थी। बाद में युक्तेश्वर महाराज व परमानंद योगानंद ने इसी जगह पर क्रिया योग को आगे बढ़ाया। महंत बलवंत गिरि जी महाराज इसी जगह ब्रह्मलीन हुए थे। (आगे पढ़िये…)

अपार सुकून उढ़ेलता स्थल (Pandukholi at Dwarahat)

कुकुछीना से करीब 04 किमी की चढ़ाई के बाद बुग्यालनुमा स्थल पांडवखोली है, जो द्रोणागिरी (दूनागिरि) की पर्वत श्रृंखलाओं के मध्य है। इस ​बुग्याल में जिस जगह भीम आराम फरमाते थे, उस जगह को भीम की गुदड़ी कहा जाता है। पांडवखोली खुद में खूबसूरत स्थल तो है ही, साथ ही अपने चारों ओर विहंगम नजारों को समेटे है। इसके चारों ओर भरतकोट, मनसा देवी, सुखा देवी व आदि शक्ति मां दूनागिरी के मंदिर समूह मौजूद हैं। कुछ दशक पहले ब्रह्मलीन महंत बलवंत गिरि महाराज इस स्थल पर पहुुंचे और उन्होंने यहीं वास कर ध्यान करना शुरू किया। इसके बाद उन्होंने इस स्थल के विकास के प्रयास किए और मंदिर का निर्माण कराया, तब से शनै:—शनै: इस स्थल ने आस्था के केंद्र का रूप धारण कर लिया। इधर कई सालों से पथ भ्रमण संघ रानीखेत द्वारा इसके विकास का बीड़ा उठाया है और जन सहयोग से यहां बलवंत गिरी महाराज की स्मृति में वहां एक आश्रम बनाया गया है। साथ ही टावरनुमा ध्यान मठ केंद्र तैयार कर डाला। बेहद ऊंचाई पर स्थित होने के कार हर साल स​र्दियों में यह चोटी बर्फ से लद जाती है। यहां से हिमालय के विहंगम पर्वत श्रृंखलाओं के दर्शन बेहद आसान हो जाते हैं। खास बात ये है कि यहां से सूर्योदय व सूर्यास्त का नजारा बेहद कौतूहल भरा दिखता है। भीम की गुदड़ी के अलावा यहां द्रोपदी विहार, महावतार बाबा की गुफा (Pandukholi Gufa) भी मौजूद है। (आगे पढ़िये…)

दुर्लभ औषधियों का भंडार पांडवखोली (Pandavkholi, a repository of rare medicines)

द्रोणागिरि पर्वतमाला को औषधीय वन कहा गया है। जिसका उल्लेख मानसखंड में है। करीब साढ़े हजार फीट की ऊंचाई पर द्रोण पर्वत का पांडवखोली हिस्सा नाना-नाना प्रकार के औषधीय धरोहर को समेटे हुए है। यहां औषधीय प्रजाति वनस्पतियों व वन संपदा की भरमार है। जो इसके वास्तव में संजीवनी प्रदेश होने का सबूत सा देती है। इस बुग्याल व इसके इर्द—गिर्द बज्रदंती, सफेद व काली मूसली, चिरायता, सतावरी, सालम पंजा, सालम मिश्री, पीपली समेत विविध प्रकार के औषधीय वनस्पति प्रचुर मात्रा में मौजूद हैं। बुग्याल के इर्द—गिर्द बांज, बुराश, फल्यांट, खरसू, अंगू, देवदार के पेड़ों व झाड़ियों का जंगल है। प्राकृतिक सौंदर्य से परिपूर्ण पांडवखोली में पर्यटन विकास की अपार संभावनाओं को समेटे है। (आगे पढ़िये…)

यहां हर साल दिसंबर प्रथम सप्ताह में मेला (Famous fair of Pandukholi)

पथ भ्रमण संघ रानीखेत के अध्यक्ष हरीश लाल साह के प्रयास रंग लाए हैं। जिससे यहां पहुंचने वाले श्रद्धालुओं, पर्यटकों, प्रकृति प्रेमियों, आध्यात्म से जुड़े लोगों का यहां पहुंचने का सिलसिला काफी बढ़ा है। इसके अलावा इस स्थल पर सांस्कृतिक गतिविधियां भी चल पड़ी हैं। हर साल दिसंबर प्रथम सप्ताह में महंत बलवंत गिरी महाराज की पुण्यतिथि के उपलक्ष्य में यहां हर साल 3 दिसंबर को भव्य समारोह आयोजित होता है। विविध साहसिक, सांस्कृतिक कार्यक्रमों के साथ प्रतियोगिताएं होती हैं और​ विशाल भंडारा आयोजित होता है। इस वर्ष भी इसकी तैयारियां अंतिम चरण में हैं। पथ भ्रमण संघ अध्यक्ष हरीश लाल शाह ने बताया कि पथ भ्रमण संघ रानीखेत के सेवकत्व में शिवविलीन श्री श्री 1008 महंत बलवंत गिरी महाराज की 29वीं पुण्यतिथि पर 02 व 03 दिसंबर को विविध कार्यक्रम होने जा रहे हैं। इस आध्यात्मिक स्थली के उत्थान के लिए करीब दो दशक पूर्व से समर्पित पथ भ्रमण संघ के अध्यक्ष हरीश साह ने बताया कि 02 दिसंबर 2022 को नित्य पूजा कार्यक्रम, गणेश पूजा, रूद्रीपाठ के बाद रात्रि 8 बजे से कीर्तन होंगे जबकि 03 दिसंबर 2022 को नित्य पूजा कार्यक्रम, हवन, पूर्णा​हुति, भंडारा होगा और महिलाओं व बच्चों की विविध खेलकूद प्रतियोगिताएं होंगी। ये सभी कार्यक्रम भीम की खातड़ी में होंगे। (आगे पढ़िये…)

दिव्य दर्शन का तरीका (Pandukholi trek distance)

अगर आप स्वर्गपुरी पाण्डवखोली के दिव्य दर्शन करना चाहते हैं। तो आपको अल्मोड़ा जनपद की द्वाराहाट नगरी पहुंचना होगा और यहां से दूनागिरी सड़क मार्ग का रुख करना होगा। द्वाराहाट से करीब 17 किमी दूर सड़क के अंतिम छोर कुकुछीना तक वाहन से सफर कर सकते हैं। इसके बाद टेड़े—मेढ़े मार्ग से लगभग 04 किमी चढ़ाई चढ़नी होगी। तब जाकर पांडुखोली पहुंच सकते हैं। यहां बुग्याल में पहुंचते ही पूरा विहंगम नजारा कठिन राह की थकावट को चंद पलों में भुला देगा।

यहां मौसम और तापमान (Pandukholi weather)

आसपास घना जंगल होने व समुद्रतल से 8800 फिट की ऊंचाई पर स्थित होने से पांडुखोली का तापमान सर्दियों में बेहद कम रहता है। भले शुष्क मौसम में गुनगुनी धूप का आनंद भी यहां लिया जा सकता है, मगर सुबह—शाम सर्दी पड़ती है। गर्मियों में यहां अत्यधिक सुकून मिलता है।

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