सावाधान : काली गंगा घाटी में अपना रास्ता बदल चुका है एक अनाम ग्लेशियर

सीएनई रिपोर्टर, पिथौरागढ़ पिथौरागढ़ की काली गंगा घाटी से एक खतरे की सूचना आई है। भू—वैज्ञानिक बता रहे हैं कि यहां एक अनाम ग्लेशियर अपना…


सीएनई रिपोर्टर, पिथौरागढ़

पिथौरागढ़ की काली गंगा घाटी से एक खतरे की सूचना आई है। भू—वैज्ञानिक बता रहे हैं कि यहां एक अनाम ग्लेशियर अपना मार्ग बदल चुका है और भविष्य में खतरा उत्पन्न कर सकता है। यह पहली बार हुआ है, जब​ कोई ग्लेशियर अपना मार्ग बदल दूसरी घाटी तक पहुंच चुका है।

वाडिया हिमालयन भू—विज्ञान संस्थान की ओर से जारी चेतावनी में बताया गया है कि पिथौरागढ़ में ऊपरी काली गंगा घाटी में एक ग्लेशियर दिखाई दे रहा है, जो अपनी घाटी क्षेत्र से हटकर सुमजुर्कचांकी ग्लेशियर घाटी क्षेत्र में पहुंच गया है। वैज्ञानिकों के अनुसार इसका मुख्य कारण जलवायु परिवर्तन के अलावा tectonic plate में अंदरुनी हलचल हो सकती है।

ज्ञात रहे कि Wadia Institute of Himalayan Geology के वैज्ञानिकों डॉ. मनीष मेहता, राहुल देवरानी, खयींगशिंग लुइरी और विनीत कुमार ने पिथौरागढ़ के काली गंगा घाटी में यह Research Satellite, Remote Sensing, GPS Technology व पुराने जूलॉजिकल नक्शों की मदद से किया। जिसमें पाया कि एक अनाम ग्लेशियर अपनी घाटी में आगे न जाकर दूसरी घाटी के क्षेत्र में प्रवेश कर चुका है।

बताया जा रहा है कि प्रथम बार हिमालय के ग्लेशियर में इस तरह के बदलाव की जानकारी मिली है। अपना निर्धारित मार्ग बदलने वाला यह अनाम ग्लेशियर करीब 05 किलोमीटर लंबा है, जो कुठीयांकी घाटी (काली नदी की सहायक नदी) में करीब चार वर्ग किलोमीटर क्षेत्र को कवर करता है। उल्लेखनीय है कि पिथौरागढ़ का काली गंगा घाटी Thethian Himalayas के जोन में आती है। जिसमें अधिकतम Sandimentary Rocks हैं, जो Metamorphic and Ineos Rocks के मुकाबले काफी कमजोर मानी जाती है। यह Glacier Land Farm पर आधारित अपनी तरह का यह पहला शोध Geo Science Journal में प्रमुखता से प्रकाशित हुआ है।

डा. मनीष मेहता, वरिष्ठ वैज्ञानिक, वाडिया हिमालयन भू-विज्ञान संस्थान बताते हैं कि ग्लेशियर उच्च हिमालयी में पर्वतीय ढलान व घाटी तक सीमित रहते हैं। ग्लेशियर से ही नदी घाटी क्षेत्र विविध खनिज, वनस्पति, जीव जंतु, जैव विविधता के रुप में विकसित होता है, नदियां सदानीरा रहती हैं, प्राकृतिक जल धाराओं का निर्माण होता है। ग्लेशियर के मार्ग बदलने से उसके निचले हिस्से की घाटी क्षेत्र की वनस्पति व जीवों के विकास पर बुरा प्रभाव पड़ेगा, प्राकृतिक जलधाराएं समाप्त हो जाएंगी, सहायक नदियां लुप्त होंगी। जबकि दूसरी घाटी में नए जल स्रोतों का जन्म होगा, नदी घाटी क्षेत्र को अधिक पानी मिलेगा, नदी का प्रवाह तंत्र मजबूत होगा।

​वैज्ञानिकों ने याद दिलाया है कि चमोली जिले के ऋषिगंगा में भी फरवरी 2021 में चट्टान व ग्लेशियर का बड़ा हिस्सा टूटकर अलग गिरा था। जिसकी वजह से रैंणी गांव (चमोली) हादसा हुआ था। यह घटना स्पष्ट रूप से बताती है कि हिमालय एक सक्रिय पर्वत शृंखला और अत्याधिक नाजुक है। जहां geological climate change महत्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं।

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