दुर्घटनाग्रस्त हेलीकॉप्टर का ब्लैक बॉक्स मिला, क्या होता है ब्लैक बॉक्स, कैसे बताता है प्लेन या हेलिकॉप्टर क्रैश के राज

कुन्नूर/नई दिल्ली। तमिलनाडु में पर्वतीय नीलगिरि जिले में कुन्नूर के निकट दुर्घटनाग्रस्त हुये भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर का ब्लैक बॉक्स गुरुवार सुबह मिल गया। लेकिन…

कुन्नूर/नई दिल्ली। तमिलनाडु में पर्वतीय नीलगिरि जिले में कुन्नूर के निकट दुर्घटनाग्रस्त हुये भारतीय वायुसेना के हेलीकॉप्टर का ब्लैक बॉक्स गुरुवार सुबह मिल गया। लेकिन उम्मीद है कि इसके मिलने के बाद इसके अंदर जो डाटा रिकॉर्ड होगा, उससे पता चलेगा कि किन स्थितियों में ये दुर्घटना हुई। बुधवार इस हेलीकाप्टर दुर्घटना में देश के पहले चीफ ऑफ डिफेंस स्टाफ (सीडीएस) जनरल बिपिन रावत, उनकी पत्नी और 11 अन्य लोगों की मौत हो गई।

आधिकारिक सूत्रों ने बताया कि दुर्घटनाग्रस्त हेलीकाप्टर का ब्लैक बॉक्स आज सुबह कट्टेरी में दुर्घटनास्थल के पास नचापुरचतिराम के घने वन क्षेत्र में पाया गया। वरिष्ठ सैन्य अधिकारियों ने ब्लैक बॉक्स को अपने कब्जे में ले लिया और इसके बाद इसे वेलिंगटन के डिफेंस सर्विस स्टाफ कॉलेज ले जाया गया और वहां के अधिकारियों को सौंपा गया।

इस बीच, राष्ट्रीय ध्वज में लिपटे जनरल रावत, उनकी पत्नी मधुलिका रावत और 11 अन्य के पार्थिव शरीर को फूलों से सजे सेना के वाहन से लाकर कॉलेज परिसर में रखा गया है ताकि लोग उनके अंतिम दर्शन कर सकें। इसके बाद पार्थिव शरीर को सुलूर हवाई अड्डे पर ले जाया जाएगा, जहां से वायुसेना के एक विशेष विमान से इन्हें अंतिम संस्कार के लिए नयी दिल्ली ले जाया जाएगा।

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तमिलनाडु फोरेंसिक विभाग के अधिकारियों की एक टीम ने आज सुबह दुर्घटनास्थल का निरीक्षण किया और मौके से अवशेष एकत्र किए। हेलीकाप्टर कल जब सुलूर से वेलिंगटन की ओर जा रहा था तभी काटेरी के निकट उसमें आग लग गयी। वायुसेना ने दुर्घटना की उच्च स्तरीय जांच के आदेश दिए हैं।

जानते हैं कि ऑरेंज रंग का ये ब्लैक बॉक्स क्या होता है और कैसे काम करता है।

क्या है ब्लैक बॉक्स
हमेशा ही फ्लाइट के साथ हुई दुर्घटना का पता लगाने के लिए ब्लैक बॉक्स का उपयोग किया जाता है। ये असल में हवाई जहाज की उड़ान के दौरान उड़ान की सारी गतिविधियों को रिकॉर्ड करता है। इसी वजह से इसे फ्लाइट डाटा रिकॉर्डर (FDR) भी कहते हैं। सुरक्षित रखने के लिए इसे सबसे मजबूत धातु टाइटेनियम से बनाया जाता है। साथ ही भीतर की तरफ इस तरह से सुरक्षित दीवारें बनी होती हैं कि कभी किसी दुर्घटना के होने पर भी ब्लैक बॉक्स सेफ रहे और उससे समझा जा सके कि असल में हुआ क्या था।

क्यों हुई खोज
ब्लैक बॉक्स को बनाने की कोशिश 1950 के शुरुआत दशक में होने लगी थी। तब विमानों की फ्रीक्वेंसी बढ़ने के साथ ही दुर्घटनाएं भी बढ़ने लगी थीं। हालांकि तब ये समझने का कोई तरीका नहीं था कि अगर कोई हादसा हो तो कैसे जांचा जा सके कि किसकी गलती थी या ऐसा क्यों हुआ ताकि आने वाले समय में गलती का दोहराव न हो।

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नामकरण की कहानी
आखिरकार साल 1954 में एरोनॉटिकल रिसर्चर डेविड वॉरेन ने इसका आविष्कार किया। तब इस बॉक्स को लाल रंग के कारण रेड एग कहा जाता था। लेकिन फिर भीतरी दीवार के काले होने के कारण इस डिब्बे को ब्लैक बॉक्स कहा जाने लगा। वैसे ये अब तक साफ नहीं है कि इस बॉक्स को ब्लैक क्यों कहा जाता है क्योंकि इसका ऊपरी हिस्सा लाल या गुलाबी रंग का रखा जाता है। ये इसलिए है ताकि झाड़ियों या कहीं धूल-मिट्टी में गिरने पर भी इसके रंग के कारण ये दूर से दिख जाए।

कैसे काम करता है ये
ये टाइटेनियम से बना होने और कई परतों में होने के कारण सेफ रहता है। अगर प्लेन में आग भी लग जाए तो भी इसके खत्म होने की आशंका लगभग नहीं के बराबर होती है क्योंकि लगभग 1 घंटे तक ये 10000 डिग्री सेंटीग्रेट का तापमान सह पाता है। इसके बाद भी अगले 2 घंटों तक ये बॉक्स लगभग 260 डिग्री तापमान सह सकता है। इसकी एक खासियत ये भी है कि ये लगभग महीनेभर तक बिना बिजली के काम करता है यानी अगर दुर्घटनाग्रस्त जहाज को खोजने में वक्त लग जाए तो भी बॉक्स में डाटा सेव रहता है।

लगातार निकलती हैं तरंगें
अगर कभी दुर्घटना हो जाए तो ब्लैक बॉक्स से लगातार एक तरह की आवाज निकलती रहती है, जो खोजी दलों द्वारा दूर से ही पहचानी जा सकती है और इस तरह से दुर्घटनास्थल तक पहुंचा जा सकता है। यहां तक कि समुद्र में 20,000 फीट तक नीचे गिरने के बाद भी इस बॉक्स से आवाज और तरंगें निकलती रहती हैं और ये लगातार 30 दिनों तक जारी रहती हैं।

खोज के तुरंत बाद से ही हर प्लेन में ब्लैक बॉक्स रखने की शुरुआत हो गई। हर प्लेन में सबसे पीछे की ओर ये रखा जाता है ताकि अगर कभी दुर्घटना हो भी तो ब्लैक बॉक्स सुरक्षित रहे। बता दें कि आमतौर पर हवाई हादसे में प्लेन के पीछे का हिस्सा ही सबसे कम प्रभावित रहता है।

वायस रिकॉर्डर भी करता है मदद
वैसे ब्लैक बॉक्स ही नहीं, बल्कि हवाई जहाज में एक और चीज डाटा निकालने में मदद करती है, वो है कॉकपिट वायस रिकॉर्डर (CVR), ये असल में ब्लैक बॉक्स का ही एक हिस्सा है। ये विमान में आखिरी दो घंटों की आवाजें रिकॉर्ड करता है। इसमें इंजन की आवाज, इमरजेंसी अलार्म की आवाज और कॉकपिट में हो रही आवाजें यानी पायलट और को-पायलट के बीच की बातें रिकॉर्ड होती हैं। ये भी केरल में दुर्घटनास्थल से बरामद किया जा चुका है।

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