भतरौंजखान/अल्मोड़ा। आज से लगभग ढ़ाई वर्ष पहले एक बस दुर्घटना में घायल करीब 40 वर्षीय महिला चंद्रा देवी आंखिरकार जिंदगी की जंग हार गई। वह अपने पीछे रोते—बिलखते परिजनों को छोड़ गई हैं, जिनकी स्मृति में शायद अब ता—उम्र वह मनहूस बस हादसा बसा रहेगा।
उल्लेखनीय है कि गत 13 मार्च, 2018 को रामनगर—रानीखेत मोटर मार्ग में दानापानी के पास चरीधार में एक बहुत दु:खद हुआ था, जहां देघाट से रामनगर जा रही एक केमू की बस खाई में जा गिरी थी। इस दुर्घटना में 13 यात्रियों की मौके पर ही मौत हो गई थी, जबकि 14 लोग गंभीर रूप से घायल हो गये थे। दुर्घटना के वक्त भले ही इन घायलों को चोटिल होने का मलाल जरूर था, मगर इस बात को खुशनसीबी समझ रहे थे कि जान बच गई। जान बचने से खुद को खुशनसीब समझने वाले लोगों में दनपो निवासी चंद्रा देवी पत्नी चंदन सिंह असवाल भी शामिल थी। इस हादसे में चंद्रा देवी की रीढ़ की हड्डी टूट गई थी और वह ढाई वर्ष से बिस्तर पर ही थी। अन्तत: वह जिंदगी—मौत के बीच संघर्ष करती रही और उसकी जान बचने की खुशनसीबी बदनसीबी में तब्दील हो गई। 22 जून 2020 को उक्त महिला ने दम तोड़ दिया। उनके निधन के बाद से घर में कोहराम मचा हुआ है। उनकी बड़ा पुत्र लक्की असवाल (20 वर्ष), पुत्री मोनिका असवाल (19 वर्ष) तथा शीतल असवाल (17 वर्ष) का रो—रोकर बुरा हाल बना हुआ है। परिजनों का कहना है कि मृतकों को तत्कालिक सहायता मिल गई, लेकिन लगभग ढाई साल तक बीमारी की हालत में जिंदगी और मौत से जूझती रही एक महिला की मौत कितनी दर्दनाक होती है, इसे केवल संवेदनशील हृदय वाले लोग ही समझ सकते हैं।
दु:खद : आंखिरकार जिंदगी की जंग हार गई बस दुर्घटना की घायल चंद्रा देवी, रोते—बिलखते परिजनों के समक्ष बस स्मृति शेष….
भतरौंजखान/अल्मोड़ा। आज से लगभग ढ़ाई वर्ष पहले एक बस दुर्घटना में घायल करीब 40 वर्षीय महिला चंद्रा देवी आंखिरकार जिंदगी की जंग हार गई। वह…