रामनगर। जिम कार्बेट पार्क के बींचों बीच स्थित सांवलदे के बच्चों ने आज सांवलदे क्षेत्र के आसपास घूम कर पक्षियों के बारे में जाना और उनको देखा भी। रचनात्मक शिक्षक मण्डल द्वारा सांवलदे में दो पुस्तकालय संचालित किए जाते हैं। इन्ही पुस्तकालय से जुड़े बच्चों को ये पक्षी अवलोकन कराया गया। वरिष्ठ पक्षीविद राजेश भट्ट ने बच्चों को बताया कि कार्बेट क्षेत्र में पक्षियों की लगभग 600 प्रजातियां पायी जाती हैं जिसमें 350 के आसपास स्थानीय हैं। जबकि 250 पक्षी प्रवासी पक्षी हैं। जो विशेष रूप से जाड़ों के मौसम में हजारों किलोमीटर की यात्रा कर यहां पहुंचते हैं और गर्मी की शुरुआत होते ही अपने गृह क्षेत्रों को चले जाते हैं।
उन्होंने बताया कि प्रवासी पक्षियों में साइबेरियन पक्षी, एशियन पैराडाइज, स्केरलेट मिनिवेट्ट, स्विफ्ट हैं। इसमें स्विफ्ट मिस्र से आती है जिसको लकी बर्ड स्थानीय भाषा में गोताई कहते हैं। यह स्थानीय परिवेश के इतने अनुकूल हो चुकी है कि यह अब स्थायी रूप से यहीं रहने लगी है। उनके द्वारा स्थानीय स्थायी पक्षियों की विशेषताओं के अलावा उनकी आवाज निकल कर बच्चों को सिखाई गयी। विभिन्न पक्षी जंगल में घूम दिखाए भी गए। उन्होंने जानकारी दी कि कार्बेट क्षेत्र की पारिस्थितिकीय में सुधार के चलते समाप्तप्राय माने जा चुके गिद्ध फिर से दिखाई देने लगे हैं।
वर्तमान में ढेला रेंज में ही डेढ़ सौ से अधिक गिद्ध हो गए है। भट्ट ने बच्चों को जैवविविधता के बारे में भी बताया। उन्होंने कार्बेट क्षेत्र में पाए जाने वाले औषधीय पौंधों की भी बच्चों को जानकारी दी। उन्होंने विभिन्न पक्षियों के घोसलों के बारे में बताते हुए बच्चों को जानकारी दी कि अनेक पक्षी जिस कुशलता के साथ अपने घोसलों का निर्माण करते गए वह अद्भुत है। बया जिसको बीबर बर्ड कहते हैं वहां तो मादा, नर का चुनाव ही उसके द्वारा बनाये गए घोसलों को आधार बना कर के करती है। नर वहां इतना चालाक होता है कि वह कई घोसलों का निर्माण करता है और मादा को उनमें घुमाता रहता है ताकि किसी घोसले में वह उसके साथ रहने की सहमति दे दे।
उन्होंने कहा कि प्रवासी पक्षियों की जीवन शैली और उनके लगातार उड़ने की क्षमता का कोई जवाब नहीं। कुछ प्रवासी पक्षी तो अपने जीवन का 60 फीसदी हिस्सा उड़ने में ही बिता देते हैं। वे कई दिन तक बिना खाये लगातार उड़ान भरते रहते हैं। उन्होंने कहा कार्बेट क्षेत्र के खूबसूरत पक्षियों में से एक हॉर्नबिल बड़े ही कलात्मक अंदाज में पेड़ों के भीतर अपने भोजन को ढूढ लेता है।
ऐसा कर वह भोजन तो करता ही है पेड़ में लगे कीड़ों से उसको बचाता भी है। उन्होंने बच्चों से पर्यावरण संरक्षण हेतु आगे आने का आह्वाहन किया। उन्होंने आशा व्यक्त की कि इस अभियान से बच्चों में परिदों के प्रति समझदारी विकसित होगी। इस मौके पर कार्यक्रम संयोजक नवेंदु मठपाल, गीतांजलि बेलवाल, करन बेलवाल, दीप्ति, नीरज, विकास बोरा, संजना बिष्ट, पूजा थापा व भावना बेलवाल मौजूद रहे।
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