सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
कोरोना ने सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा की दशकों पुरानी परंपरा को भी लील दिया। यह पहली बार हुआ कि वियजादशमी पर यहां रावण परिवार के पुतलों का शानदार जुलूस नही निकल रहा है। यह देख तमाम लोग मायूस हैं, वहीं दूर—दराज से महोत्सव देखने पहुंचे पर्यटकों के चेहरे भी उतर गये हैं।
नगर के विभिन्न होटलों में ठहरे यह वह पर्यटक हैं, जिन्हें किन्ही कारणों से दशहरा महोत्सव के आयोजित न होने के संबंध में जानकारी नही मिल पाई। उल्लेखनीय है कि आज विजयादशमी पर कोविड—19 की गाइड लाइन्स के तहत केवल प्रतीकात्मक रूप में पुतला दहन कार्यक्रम होना है। पुतला दहन टैक्सी स्टैंड के सामने खाली फील्ड पर शाम 6 बजे होगा। इस मौके पर आतिशबाजी नही होगी। बाहर से आर्य पर्यटक इस कार्यक्रम में हिस्सा नही लेंगे। पालिका द्वारा पुतला दहन स्थल पर बैरेकेटिंग की व्यवस्था की गई है। आज उठने वाले राम डोला में भी केवल सीमित मात्रा में ही पदाधिकारी भाग लेंगे। इस एकमात्र रावण के पुतले का निर्माण भी नंदादेवी रामलीला कमेटी द्वारा किया गया है। आपको बता दें कि दशहरा को यहां सार्वजनिक व सामूहिक रूप से मनाने की परम्परा 1860 से शुरू हुई थी। शुरूआत में यहां इस पर्व पर राम जलूस का आयोजन होता था तथा एकमात्र रावण का पुतला बनाया जाता था। साल 1975 तक यही परम्परा कायम रही। 1976 में मल्ली बाजार से मेघनाद का पुतला निर्माण के साथ ही नई परम्परा की शुरूआत हो गयी थी। 1977 में पहली बार कुम्भकरण का पुतला जौहरी बाजार में बना। इसके बाद लक्ष्मी भंडार ने ताड़िका का पुतला बनाया। 1982 में इन पुतलों की संख्या दर्जन भर हो गई थी। यूं कहा जा सकता है कि वर्ष 1982 के बाद से इतिहास में पहली बार रावण परिवार के पुतलों का निर्माण नही हो पाया और कोरोना ने इस ऐतिहासिक परंपरा को लील लिया।