सलाम SDRF ! ‘Corona’s Front Line Warriors’ की बड़ी भूमिका निभा रही जांबाजों की यह टीम, तमाम खतरों के बीच कर रहे कोरोना संक्रमितों के शवों का दाह संस्कार

— दीपक मनराल —कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ रहे खतरों के बीच एसडीआरएफ के जांबाज जवान अपनी जान पर खेलकर कोरोना वॉरियर्स की एक बड़ी…

— दीपक मनराल —कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ रहे खतरों के बीच एसडीआरएफ के जांबाज जवान अपनी जान पर खेलकर कोरोना वॉरियर्स की एक बड़ी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। यहां बेस अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में रात—दिन ड्यूटी हो या फिर कोरोना से मरने वालों के संक्रमित शवों का दाह संस्कार, इन सब जोखिम भरे कार्यों में वर्तमान में एसडीआरएफ ही असली भूमिका निभा रही है।

उल्लेखनीय है कि एसडीआरएफ एक राज्य स्तर पर समर्पित आपदा बल है, जो भारत में किसी भी राज्य के भीतर खतरनाक आपदा स्थिति या आपदा की त्वरित प्रतिक्रिया के लिए है। यह एक ऐसी टीम होती है, जिसे सरकार किसी भी प्रकार की आपत्ति आने पर बुलाने का आदेश जारी करती है, इस टीम में शामिल होने वाले सभी नागरिक समय पर उपस्थित होकर देश की जनता के साथ-साथ देश की भी रक्षा करते हैं। एसडीआरए में ट्रेंड पुलिस, एक्स आर्मी और होमगार्ड के जवान शामिल होते हैं। ये ऐसे जवान होते है, जो किसी भी तरह की आपदा का सामना करने के लिए हर समय उपस्थित होते हैं और उसका डटकर सामना भी करते हैं। एसडीआरएफ का इस्तेमाल अधिकतर तत्काल प्रकृति के राहत कार्यों के खर्चों को पूरा करने और चक्रवात, सूखा, भूकंप, अग्नि, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटने, जैसी आपदाओं के दौरान पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए किया जाता है। वर्तमान कोरोना काल में इनका उपयोग कोरोना की दूसरी घातक लहर के बीच बचाव व आपदा कार्य में लिया जा रहा है।

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एसडीआरएफ का मुख्यालय जोलीग्रांट देहरादून व रूद्रपुर में है। जबकि अल्मोड़ा के बल्टा के निकट सरियापानी में भी इसका कार्यालय है। यहां एक निरीक्षक, एसआई व 8 कांस्टेबलों सहित कुल 10 लोगों का स्टॉफ कार्यरत है। कोरोना काल में यह सभी जवान रात—दिन ड्यूटी पर तत्पर हैं। वहीं अन्य जनपदों में भी एसडीआरएफ की टीम को शासन—प्रशासन के निर्देश पर सक्रिय किया गया है। निरीक्षक एसडीआरएफ बालम सिंह बजेली ने बताया कि बीते कुछ दिनों से कोरोना संक्रमितों की मौतों का आंकड़ा बड़ा है। एसडीआरएफ के सामने ऐसे भी कई मामले आये हैं, जहां संक्रमण से मरने वालों के दाह संस्कार की पूरी जिम्मेदारी एसडीआएफ ने ही निभाई, क्योंकि कई मृतकों के परिजन भी शव के पास जाने को तैयार नही हुए। उन्होंने बताया कि बीते कुछ दिनों में एसडीआरएफ ने तीन शवों को ​भैसवाड़ा फार्म में डिस्पोज किया है।
ज्ञात रहे कि शवदाह के दौरान टीम के सदस्यों को भी कोरोना संक्रमण का जबरदस्त खतरा रहता है, लेकन एसडीआरएफ के यह जवान पीपीए किट पहन पूरी सावधानी के साथ शवों का दाह संस्कार करते हैं। सेनेटाइजेशन का भी खास ध्यान रखा जाता है। इसके बावजूद अंजाने शवों के दाह संस्कार के दौरान भी यह लोग खतरे की जद से बाहर नही होते। देश में ऐसे कई मामले आ चुके हैं, जहां पीपीए किट पहनने के बावजूद कुछ लोग संक्रमण की चपेट में आये हैं। इस लिहाज से इन जवानों को सलाम जरूर बनता है।

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एसडीआरएफ इंस्पेक्टर ने बताया कि वर्तमान में एसडीआरएफ के दो जवान बेस में आइसोलेशन ड्यूटी कर रहे हैं। जिनकी सुबह व रात की अलग—अलग शिफ्ट लगती है। कफड़खान में गत दिनों भी कोरोना संक्रमितों के शवों का दाह संस्कार हुआ। इस दौरान एसआई देवेंद्र कुमार, कानि सुरेश बहुगणा, हरीश नाथ, विवेकानंद बिष्ट, ललित भाकुनी, सुमित राणा आदि ने दाह संस्कार संपन्न किया। निश्चित रूप से एसडीआरफ के जवान आपदाओं के दौरान संकट मोचक की भूमिका ठीक उसी तरह निभाते हैं, जिस तरह देश की सीमाओं की रक्षा का बीड़ा सेना के जवान उठा रहे हैं। इन जवानों को एक सलाम तो बनता है।

कोरोना संक्रमण के लगातार बढ़ रहे खतरों के बीच एसडीआरएफ के जांबाज जवान अपनी जान पर खेलकर कोरोना वॉरियर्स की एक बड़ी भूमिका का निर्वहन कर रहे हैं। यहां बेस अस्पताल के आइसोलेशन वार्ड में रात—दिन ड्यूटी हो या फिर कोरोना से मरने वालों के संक्रमित शवों का दाह संस्कार, इन सब जोखिम भरे कार्यों में वर्तमान में एसडीआरएफ ही असली भूमिका निभा रही है।

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उल्लेखनीय है कि एसडीआरएफ एक राज्य स्तर पर समर्पित आपदा बल है, जो भारत में किसी भी राज्य के भीतर खतरनाक आपदा स्थिति या आपदा की त्वरित प्रतिक्रिया के लिए है। यह एक ऐसी टीम होती है, जिसे सरकार किसी भी प्रकार की आपत्ति आने पर बुलाने का आदेश जारी करती है, इस टीम में शामिल होने वाले सभी नागरिक समय पर उपस्थित होकर देश की जनता के साथ-साथ देश की भी रक्षा करते हैं। एसडीआरए में ट्रेंड पुलिस, एक्स आर्मी और होमगार्ड के जवान शामिल होते हैं। ये ऐसे जवान होते है, जो किसी भी तरह की आपदा का सामना करने के लिए हर समय उपस्थित होते हैं और उसका डटकर सामना भी करते हैं। एसडीआरएफ का इस्तेमाल अधिकतर तत्काल प्रकृति के राहत कार्यों के खर्चों को पूरा करने और चक्रवात, सूखा, भूकंप, अग्नि, बाढ़, सुनामी, ओलावृष्टि, भूस्खलन, हिमस्खलन, बादल फटने, जैसी आपदाओं के दौरान पीड़ितों को तत्काल राहत प्रदान करने के लिए किया जाता है। वर्तमान कोरोना काल में इनका उपयोग कोरोना की दूसरी घातक लहर के बीच बचाव व आपदा कार्य में लिया जा रहा है।

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एसडीआरएफ का मुख्यालय जोलीग्रांट देहरादून व रूद्रपुर में है। जबकि अल्मोड़ा के बल्टा के निकट सरियापानी में भी इसका कार्यालय है। यहां एक निरीक्षक, एसआई व 8 कांस्टेबलों सहित कुल 10 लोगों का स्टॉफ कार्यरत है। कोरोना काल में यह सभी जवान रात—दिन ड्यूटी पर तत्पर हैं। वहीं अन्य जनपदों में भी एसडीआरएफ की टीम को शासन—प्रशासन के निर्देश पर सक्रिय किया गया है। निरीक्षक एसडीआरएफ बालम सिंह बजेली ने बताया कि बीते कुछ दिनों से कोरोना संक्रमितों की मौतों का आंकड़ा बड़ा है। एसडीआरएफ के सामने ऐसे भी कई मामले आये हैं, जहां संक्रमण से मरने वालों के दाह संस्कार की पूरी जिम्मेदारी एसडीआएफ ने ही निभाई, क्योंकि कई मृतकों के परिजन भी शव के पास जाने को तैयार नही हुए। उन्होंने बताया कि बीते कुछ दिनों में एसडीआरएफ ने तीन शवों को ​भैसवाड़ा फार्म में डिस्पोज किया है।
ज्ञात रहे कि शवदाह के दौरान टीम के सदस्यों को भी कोरोना संक्रमण का जबरदस्त खतरा रहता है, लेकन एसडीआरएफ के यह जवान पीपीए किट पहन पूरी सावधानी के साथ शवों का दाह संस्कार करते हैं। सेनेटाइजेशन का भी खास ध्यान रखा जाता है। इसके बावजूद अंजाने शवों के दाह संस्कार के दौरान भी यह लोग खतरे की जद से बाहर नही होते। देश में ऐसे कई मामले आ चुके हैं, जहां पीपीए किट पहनने के बावजूद कुछ लोग संक्रमण की चपेट में आये हैं। इस लिहाज से इन जवानों को सलाम जरूर बनता है।

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एसडीआरएफ इंस्पेक्टर ने बताया कि वर्तमान में एसडीआरएफ के दो जवान बेस में आइसोलेशन ड्यूटी कर रहे हैं। जिनकी सुबह व रात की अलग—अलग शिफ्ट लगती है। कफड़खान में गत दिनों भी कोरोना संक्रमितों के शवों का दाह संस्कार हुआ। इस दौरान एसआई देवेंद्र कुमार, कानि सुरेश बहुगणा, हरीश नाथ, विवेकानंद बिष्ट, ललित भाकुनी, सुमित राणा आदि ने दाह संस्कार संपन्न किया। निश्चित रूप से एसडीआरफ के जवान आपदाओं के दौरान संकट मोचक की भूमिका ठीक उसी तरह निभाते हैं, जिस तरह देश की सीमाओं की रक्षा का बीड़ा सेना के जवान उठा रहे हैं। इन जवानों को एक सलाम तो बनता है।

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