तादाद बढ़ा रहा डायनासोर युग का प्राणी मगरमच्छ, अंडों से निकले 40 बच्चे

सीएनई डेस्क (Creative News Express) डायनासोर युग (Dinosaur era) के यह प्राणी आज भी न केवल जीवित हैं, बल्कि तब भी रहेंगे जब कभी इंसानों…

सीएनई डेस्क (Creative News Express)

डायनासोर युग (Dinosaur era) के यह प्राणी आज भी न केवल जीवित हैं, बल्कि तब भी रहेंगे जब कभी इंसानों का वजूद इस धरती से खत्म हो जायेगा। इस बात की पुष्टि रामनगर का कार्बेट टाइगर रिजर्व (Corbett Tiger Reserve) प्रशासन कर रहा है, जहां के सर्पदुली रेंज में एक बार फिर मगरमच्छ (Crocodile) अपनी तादाद बढ़ा रहे हैं।

सर्पदुली रेंज में 40 नन्हे बच्चों का हुआ जन्म

दरअसल, खुशी की बात यह है कि कार्बेट के सर्पदुली रेंज में इन दिनों मगरमच्छ के अंडों से 40 नन्हे बच्चे बाहर सुरक्षित निकल आये हैं और अब इनकी देखभाल कार्बेट प्रशासन कर रहा है। यहां यह भी बताना चाहेंगे कि काबेर्ट में समय—समय पर घड़ियालाओं और मगरमच्छों की गणना भी की जाती रही है। जहां बाघ, हाथी जैसे संरक्षित जीवों की संख्या में आने वाली कमी चिंता में डालती है वहीं संतोष की बात है कि घड़ियाल और मगरमच्छ alligator and crocodile बड़ी शान से अपनी तादात बढ़ा रहे हैं।

खतरों भरा है इनका जीवन —

हालांकि यह भी सच है कि मगरमच्छ धरती के भले ही सबसे प्राचीनतम जीवों में शामिल हैं, लेकिन उनका जीवन भी खतरों से घिरा रहता है। खास तौर पर तब, जब यह जीव बाल्यावस्था में होते हैं और किसी भी शिकारी जीव का आसानी से भोजन बन जाते हैं। आयु बढ़ने पर हालांकि यह काफी सुरक्षित हो जाते हैं, लेकिन इंसानों द्वारा किए जाने वाले हमलों से इनकी रक्षा करना भी किसी बड़ी चुनौती से कम नहीं है। रिजर्व फोरेस्ट reserve forest के इलाकों में तस्करों द्वारा अकसर इन्हें निशाना बनाया जाता है।

साल दर साल बढ़ रही संख्या —

काबेर्ट टाइगर रिजर्व की यदि बात करें तो साल 2008 में यहां मगरमच्छों की संख्या केवल 70 थी। इसके बाद 2020 की गणना में इनकी संख्या 145 हो गई। वहीं वर्तमान वर्ष 2022 में इनकी संख्या 156 बताई जा रही थी। अच्छी खबर अब यह आई ​है कि हाल ही में मगरमच्छों ने जो अंडे दिए थे, उनमें से 40 बच्चे बाहर निकल आये हैं। बताना चाहेंगे कि मगरमच्छ अकसर मानसून से कुछ समय पहले ही अंडे दिया करते हैं। हर साल बाढ़ में इनके अंडे बह जाते हैं, जिस कारण इनकी संख्या बढ़ नहीं पा रही थी, किंतु इस साल मानसून की रफ्तार धीमी होने से बाढ़ के हालात​ फिलहाल नहीं हैं। अतएव उम्मीद की जा रही है कि अन्य अंडे भी सुरक्षित ही रहेंगे।

उचित देखभाल जरूरी : शर्मा

सीटीआर के उप निदेशक नीरज शर्मा के मुताबिक सर्पदुली रेंज के ढिकाला ब्लॉक रामगंगा नदी के नजदीक मगरमच्छों ने जो अंडे दिए थे उनमें से बच्चे निकलने शुरू हो गये हैं। हालांकि वैज्ञानिकों का मानना है कि अगर लालन—पालन में कमी रही तो इनमें से हर बच्चा शायद जीवित नहीं रह पाये। उनका कहना है कि यदि बाढ़ आदि प्राकृतिक आपदा नहीं आई तो यह आसानी से बड़े हो जायेंगे और सुरिक्षत रहेंगे।

घड़ियालों की संख्या मगरमच्छ से कम

वहीं यदि घड़ियालों की बात करें तो मगरमच्छ प्रजाति से मिलते—जुलते यह जीव इनसे कम खुशकिस्मत हैं। 2008 में यह 128 थे, 2021 में यह मात्र 96 ही रह गये। 2022 में यह फिर बढ़कर 116 हो गये हैं। रामगंगा नदी इनका प्राकृतिक आवास है।

जानिये, क्या है मगरमच्छ और घड़ियाल में फर्क

बहुत से लोग मगरमच्छ और घड़ियाल में अंतर नहीं कर पाते, लेकिन वास्तव में दोनों अलग—अलग किस्म की प्रजातियां हैं। घड़ियाल अकसर साफ पानी में रहना पसंद करते हैं, जबकि मगरमच्छ खारे पानी के तालाब, पोखरों और गधेरों में भी आसानी से जिंदा रहते हैं। यह दोनों ही जीव मांसाहारी है, लेकिन मगरमच्छ घड़ियाल से अधिक ताकतवर और बड़े होते हैं। इसके अलावा घड़ियाल का मुंह मगरमच्छ के मुकाबले कुछ लंबा और पतला होता है। मुंह बंद होने पर घड़ियाल के केवल ऊपरी जबड़े के दांत बाहर दिखाई देते हैं, जबकि मगरमछ यदि मुंह बंद भी कर ले तो दोनों जबड़ों कें दांत बाहर दिखते हैं।

मगरमच्छ के बारे में यह भी जानिये –

⏩ पुख्ता वैज्ञानिक शोधों के अनुसार पहला मगरमच्छ 250 मिलियन साल से भी पूर्व पृथवी पर था। तब डायनासोर भी मगरमच्छों के साथ पृथवी पर थे। कहा जाता है कि तब मगरमच्छ आज की तुलना में काफी बड़े आकार के हुआ करते थे।

⏩ खारे पानी में रहने वाला मगरमच्छ दुनिया का सबसे बड़ा सरीसृप है। यह 20 फीट तक लंबाई ले सकते हैं। औसतन यह 30 से 40 साल तक जीवित रहते हैं, लेकिन कुछ बड़ी प्रजातियां 60 से 70 साल तक भी जीवित रहती हैं। कुछ लोग ऐसे भी हैं, जो दावा करते हैं कि उन्होंने 100 साल से भी अधिक आयु के मगरमच्छों को देखा है, लेकिन वैज्ञानिक शोधों में इसकी पुष्टि आज की तारीख तक नहीं हो पाई है।

⏩ मगरमच्छ और घड़ियाल ऐसे जीव हैं, जिनके आंसू निकलते लोगों ने देखे हैं, लेकिन वास्तविकता कुछ और है। यह रोते वक्त आंसू नहीं निकालते, बल्कि भोजन करते समय, वे बहुत अधिक हवा निगल लिया करते हैं, जो लैरीक्रिमल ग्रंथियों (आंसू पैदा करने वाली ग्रंथियों) के संपर्क में आती हैं और उनकी आंखों से पानी ऐसे निकलता है, जिसे देखकर लगता है कि यह रो रहे हैं। इनके इस छल को देखकर ही ‘घड़ियाली आंसू’ कहावत भी बनी है।

⏩ मगरमच्छों में पसीना लाने वाली ग्रंथियां नहीं होती। जब गर्मी बहुत अधिक बढ़ जाती है तो यह अपना मुंह खुला रखकर गर्मी को बाहर निकालते हैं। अकसर गर्मियां में कई बार मगरमच्छ मुंह खुला रखकर सोते हुए दिखाई देते हैं।

⏩ मगरमच्छ का पाचन तंत्र धीमा होता है। यही कारण है कि एक बार भरपेट भाोजन मिल जाने पर यह काफी समय तक बिना कुछ खाये आसानी से जीवीति रह सकते हैं।

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