खेती बाड़ी : अब तक नहीं लगाया अदरक तो करें जल्दी

डा. राजेंद्र कुकसाल[email protected] उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी असिंचित (वर्षा पर आधारित) क्षेत्रों में अदरक की खेती, नगदी/व्यवसायिक रूप में की जाती है। अदरक की खेती…


डा. राजेंद्र कुकसाल
[email protected]

उत्तराखंड राज्य के पहाड़ी असिंचित (वर्षा पर आधारित) क्षेत्रों में अदरक की खेती, नगदी/व्यवसायिक रूप में की जाती है। अदरक की खेती के लिए गर्म व तर (नमीयुक्त) जलवायु की आवश्यकता होती है। समुद्र तट से 1500 मीटर तक की ऊंचाई वाले स्थान जहां पर तापमान 25 – 30 डिग्री सेल्सियस रहता हो अदरक की खेती सफलता पूर्वक की जा सकती है।
अदरक की फसल को हल्की छांव की आवश्यकता होती है, बागों में अन्तरवर्तीय फसल के रूप में उगाने पर अदरक से अधिक व स्वस्थ उपज प्राप्त होती है।
भूमि-
अदरक की खेती के लिए उचित जल निकास, जींवान्स युक्त बलुई दोमट एवं मध्यम दोमट मिट्टी उत्तम रहती है। अदरक की अच्छी फसल के लिए मिट्टी में जैविक कार्वन की मात्रा 0.6 प्रतिशत से अधिक तथा पी.एच. मान 5. 0 से 6 .5 के बीच होना चाहिए। यदि पी.एच. मान कम है तो भूमि में दो से तीन किलो ग्राम चूना प्रति नाली की दर से जुताई के समय भूमि में मिलायें। जैविक कार्वन की मात्रा कम होने पर भूमि में कम्पोस्ट खाद के साथ ही जंगल से ऊपरी सतह की मिट्टी खुरच कर कम से कम10 किलो प्रतिनाली की दर से भूमि में मीला लें । अधिक क्षारीय और अम्लीय मृदा अदरक की खेती के लिए उपयुक्त नही है।

उत्तराखंड की ताजा खबरों के लिए जुड़े हमारे व्हाट्सएप ग्रुप से click now

खेत की तैयारी-
खेत की मिट्टी को 2 से 3 जुताइयां से बारीक व भुरभुरी कर अन्तिम जुताई के समय 4 से 5 कुंतल गोबर की खाद प्रति नाली की दर से खेत में मिला दें। खेत को छोटी छोटी क्यारियौं में बांट लेना चाहिए तथा इन क्यारियौं में 2 – 2.5 मीटर लम्बी मेंड़ बनाते हैं। अदरक बीज की बुआई मेंड पर करते हैं।
अनुमोदित किस्में-
हिम गिरि, रियो डी जेनेरियो व मरान।
पारम्परिक रूप से स्थानीय मिट्टी में रची बसी उगाई जाने वाली अच्छी उपज व रोग रोधी स्थानीय किस्मों का चयन करें।
बुवाई का समय
मध्य अप्रैल से मई । बुवाई का सर्वोत्तम समय अप्रैल पाया गया है।
बीज /प्रकन्द की मात्रा –
30 से 40 किलो ग्राम बीज प्रति नाली। बुवाई के लिए रोगमुक्त 20 – 30 ग्राम के प्रकन्दों का चयन करें जिसमें कम से कम एक या दो आंख अवश्य हो।
अदरक बीज का उपचार ट्राइकोडर्मा/बीजामृत से करें। बीज /प्रकन्दों को हल्के पानी से गीला कर ट्राईकोडर्मा 8 से 10 ग्राम प्रति कीलो ग्राम बीज की दर से या बीजामृत से उपचारित करें तत्पश्चात बीज को छाया में सुखाकर बुवाई करें।
रासायनिक उपचार
बुवाई से पहले प्रकन्दों को 2 ग्राम कार्बेन्डाजिम या 3 ग्राम कापर आक्सी क्लोराइड या 2.5 ग्राम मैनकोजैव प्रतिलीटर पानी के घोल में 20 – 30 मिनट तक उपचारित करके छायादार स्थान में सुखाने के पश्चात बुवाई करनी चाहिए।
बुवाई के समय मिट्टी में नमी का होना आवश्यक है।
भूमि उपचार –
फफूंदी जनित बीमारियों की रोकथाम हेतु
एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 25 किलोग्राम कम्पोस्ट (गोबर की सड़ी खाद) में मिलाकर एक सप्ताह तक छायादार स्थान पर रखकर उसे गीले बोरे से ढँकें ताकि ट्राइकोडर्मा के बीजाणु अंकुरित हो जाएँ। इस कम्पोस्ट को एक एकड़( 20 नाली) खेत में फैलाकर मिट्टी में मिला दें ।
बुवाई की विधि-
बुआई मेंड पर पंक्तियों में 30 – 40 सेंटीमीटर की दूरी पर करना चाहिए तथा लाइन में प्रकन्द से प्रकन्द की दूरी 15 – 20 सेन्टीमीटर रखें प्रकन्द को 5 से 8 सेंटीमीटर गहराई पर बोयें।
अदरक के साथ मक्की बोना लाभ दायक रहता है। मक्की की फसल का प्रयोग अदरक की फसल में छाया देने के लिए किया जाता है। अंदर की हर तीसरी कतार के बाद मक्की की एक कतार लगायें।
पलवार ( मल्च )-
बुवाई के समय प्रकन्दों को मिट्टी से ढकने के बाद पलवार से ढक देना चाहिए। पलवार की मोटाई 5 – 7 सेन्टीमीटर होनी चाहिए जिससे सूर्य का प्रकाश मिट्टी की सतह तक न पहुंच सके। पेड़ों की सूखी पत्तियां, स्थानीय खर पतवार घास,धान की पुवाल आदि पलवार के रूप में प्रयोग की जा सकती है।पलवार का प्रयोग भूमि में सुधार लाने, तापमान बनाये रखने, उपयुक्त नमी बनाए रखने, खरपतवार नियंत्रण एवं केंचुओं को उचित सूक्ष्म वातावरण देने के लिए आवश्यक है। यदि पहली मल्च सड़ जाय तो 40 दिनों बाद दूसरी बार मल्च की तह लगायें।
फसल की 6 – 7 दिनों के अंतराल पर लगातार निगरानी करते रहें निगरानी के समय यदि फसल पर कीट या रोग ग्रसित पौधे दिखाई दें तो उन्हें तुरन्त हटा कर नष्ट करें जिससे कीट व्याधि का प्रकोप कम हो जायेगा।
खाद व पोषण प्रबंधन- खड़ी फसल में 20 से 30 दिनों के अंतराल पर 10 लीटर जीवामृत प्रति नाली की दर से देते रहना चाहिए।
सिंचाई प्रबंधन-
अदरक की खेती अधिकतर असिंचित (वर्षा पर आधारित) क्षेत्रों में की जाती है। बर्षी न होने की दशा में 2 – 3 सिंचाई की आवश्यकता होती है।
खरपतवार नियंत्रण-
बुआई के एक माह के भीतर एक निराई अवश्य करें बाद में आवश्यकता अनुसार फसल की निराई गुड़ाई व मिट्टी चढ़ाते रहें।
प्रमुख कीट-
सफेद गिडार (व्हाट ग्रब), प्रकन्द बेधक कीट अदरक की फसल को नुक्सान पहुंचाते हैं।
कीट नियंत्रण-
1.कीड़ों के अंडे, सूंडियों,प्यूपा तथा वयस्कों को इकट्ठा कर नष्ट करें।
2.प्रकाश प्रपंच की सहायता से रात को कीड़ों को आकर्षित करना तथा उन्हें नष्ट करना।
3.कीड़ों को आकर्षित करने के लिए फ्यूरामोन ट्रेप का प्रयोग करना व उन्हें नष्ट करना।
4.गो मूत्र का 5 – 6% का घोल बनाकर छिड़काव करें।
5.व्यूवेरिया वेसियाना 5 ग्राम एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
6.यदि जैविक कीटनाशक के छिड़काव के बाद भी कीट नियंत्रण न हो रहा हो तो 10-12 दिनों बाद नीम पर आधारित कीटनाशकों निम्बीसिडीन,निमारोन,इको नीम या बायो नीम में से किसी एक का 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें दवा के घोल में प्रिल, निर्मा या किसी अन्य लिक्युड डिटर्जेंट की कुछ बूंदें मिलाने से दवा अधिक प्रभावी हो जाती है।
प्रमुख रोग-
प्रकन्द विगलन या गट्ठी सड़न रोग – यह रोग पीथियम प्रजाति के फफूंद द्वारा होता है।इस रोग में प्रभावित प्रतियां पीली होने के बाद सूख कर तने से लटकी रहती है। बाद में तना एवं प्रकन्द के पास का भाग पिलपिला हो जाता है हाथ से खींचने पर इसी स्थान से टूट कर पौधा हाथ में आ जाता है। बाद में इस रोग के कारण प्रकन्द सड़ने लगता है।
अदरक का पीला रोग-यह रोग फ्यूजेरियम प्रजाति के फफूंद के द्वारा होता है। इस रोग में पौधे की निचली पत्तियां किनारे से पीली पढ़ने लगती है धीरे धीरे पूरी पत्ती पीली हो जाती है बाद की अवस्था में पूरा पौधा मुरझा कर सूख जाता है तथा प्रकन्द का विकास बुरी तरह प्रभावित होता है।यह रोग खेतों में अलग अलग स्थानों में दिखाई देता है।
रोक थाम –
1.फसल की बुआई अच्छी जल निकास वाली भूमि पर करें।
2.बीज ट्राइकोडर्मा से उपचारित कर बोयें।
3.फसल चक्र अपनायें तथा अदरक की खेती हेतु उन स्थानों का चयन करें जहां पर पहले बर्ष अदरक की फसल न ली हो।

प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर का घोल बनाकर पौधों पर 5-6 दिनों के अंतराल पर तीन छिड़काव करें व जड़ क्षेत्र को भिगोएँ।
अदरक फसल की खुदाई-
अदरक की फसल 8 – 9 माह में तैयार हो जाती है जब पौधों की पत्तियां पीली हो कर सूखने लगें तब फसल खोदने लायक हो जाती है।
यदि आगामी वर्ष हेतु अदरक बीज रखना हो तो उन्ही खेतों से अदरक का चुनाव करें जिनमें रोग का प्रकोप न हुआ हो।
पैदावार-
अदरक की फसल से प्रति नाली
2 से 2.5 कुंतल तक उपज ली जा सकती है।

मोबाइल नंबर-
9456590999

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *