पुलिस के डंडों से सैनेटाइज भी हुए तब भी तंबाकू और गुटखे के लिए लगा रहे लॉक डाउन में दौड़

नारायण सिंह रावत सितारगंज। नशा तो नशा है। फिर वो शराब हो या तंबाकू का या फिर पान मसाला का! लत अगर लगी है तो…


नारायण सिंह रावत

सितारगंज। नशा तो नशा है। फिर वो शराब हो या तंबाकू का या फिर पान मसाला का! लत अगर लगी है तो फिर नशे की पूर्ति के लिए बंदा कुछ भी कर सकता है। कुछ ऐसे ही हालत है सितारगंज व शक्तिफार्म क्षेत्र के। बेहद उचें दामों पर बिक रहे या यूं कहिए कि ब्लैक हो रहे तंबाकू पान मसाला हासिल करने के लिए लोग लॉकडाउन में कई बार पुलिस के डंडों से भी सेनेटाइज हो चुके हैं।
कोरोना महामारी के चलते हुए लॉकडाउन में तमाम लोग भूख से इतने परेशान नहीं हैं जितने की वो अपनी नशे की लत से बैचेन है। इन्हें पेट भरने के लिए तो शासन प्रशासन पुलिस और स्वयंसेवी संगठन रोटी तो उलब्ध करा दे रहे हैं लेकिन इसकी लत का इलाज उनसे नहीं हो पा रहा है। जिससे यह बिलबिलाए हुए हैं। तंबाकू, पान मसाला और बीड़ी सिगरेट के आदी हो चुके लोगों बहुत ही बैचेन है। यही कारण है कि वो इन्हें हासिल करने के लिए कुछ भी करने को तैयार हैं। यही बात जानते हुए दुकानदारों ने इनके दामों में बेताहाशा वृद्धि कर दी है। अनेक स्थानों पर यह अपनी मूल कीमत से दोगुनी और ढाई गुनी कीमत पर बेचे जा रहे है। यदि कहा जाए कि आज तंबाकू बादाम से और सुपारी अखरोट-पिस्ता के दामों मे बिक रही है तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। इनकी लत के शिकार लोग 10-20 गुना ज्यादा कीमत चुकाने के लिए घरों से बाहर निकलने का जोखिम भी उठा रहे हैं। इन्हें न तो पुलिस के डंडों का ही डर है और न ही अन्य नुकसान की कोई परवाह ही। पुलिस और प्रशासन भी ऐसे लोगों से तंग आ चुका है। बार बार चेतावनी देने के बाद भी ऐसे लोग घर से बाहर आकर अपने लत के अनुसार सामान खोजते देखे जा सकते हैं। निश्चिततौर पर ऐसे लोग प्रशासन के लिए तो सरदर्द है ही साथ ही ये अपने परिवार को भी खतरे में डाल रहे है। कोरोना महामारी को लेकर सरकारी तंत्र के प्रचार प्रसार का भी इन पर कोई असर होता नहीं दिख रहा है। राम जाने इनका क्या होगा…!!

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