अल्मोड़ा : जनांदोलनों की जान और जनता की आवाज थे गिर्दा के जनगीत, पुण्यतिथि पर याद आए गिर्दा

अल्मोड़ा, 22 अगस्त। जन​कवि एवं जनांदोलनों में अग्रणी रहे स्व. गिरीश तिवारी गिर्दा को यहां पुण्यतिथि याद किया गया। संगोष्ठी आयोजित कर कहा कि उनके…

अल्मोड़ा, 22 अगस्त। जन​कवि एवं जनांदोलनों में अग्रणी रहे स्व. गिरीश तिवारी गिर्दा को यहां पुण्यतिथि याद किया गया। संगोष्ठी आयोजित कर कहा कि उनके जन​गीतों में इतनी ताकत थी कि उन गीतों ने हर प्रमुख जनांदोलनों में जान फूंकी। उत्तराखंड लोक वाहिनी और उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ने अलग—अलग गोष्ठियां आयोजित की।
उत्तराखंड लोक वाहिनी ने शनिवार को सामाजिक दूरी का पालन करते हुए जनकवि स्व. गिरीश तिवारी “गिर्दा” की पुण्यतिथि पर संगोष्ठी आयोजित कर उन्हें याद किया। इस मौके पर वक्ताओं ने कहा कि जनकवि गिर्दा जन आंदोलनों की आत्मा रहे और जन आंदोलनों में गिरीश तिवारी जान फूंक देते थे। वक्ताओं ने कहा कि गिर्द आम कलाकारों से अलग थे, उनके गीत जनांदोलनों में ही छाये रहे। खास बात ये थी उन्होंने गीत स्टूडियो में नहीं सड़कों में गाये। तभी वे जनमानस के आवाज बने। वक्ताओं ने कहा कि वाहिनी के साथ स्व. गिर्दा का चोली दामन का साथ रहा। वे वाहिनी के हर आंदोलनों में सक्रिय रहे, चाहे वर्ष 1977 का वन बचाओ आंदोलन हो, वर्ष 1984 का नशा नहीं रोजगार दो आंदोलन हो या फिर उत्तराखंड राज्य निर्माण आंदोलन।
मुख्य वक्ता डॉ. कपिलेश भोज ने गिर्दा के जीवन पर प्रकाश डालते हुए कहा कि गिरीश तिवारी गिर्दा असाधारण व्यक्तित्व के धनी रहे। सरकारी सेवा रहते हुए उन्होंने जनांदोलनों में भागीदारी की। आज के समय में जनांदोलनों की धार कुंद हो गई है। उन्होंने कहा कि भीषण गुलामी में भी लोगों ने आवाज उठाई और संघर्षों के बलबूते सफलता पाई। वरिष्ठ अधिवक्ता जगत रौतेला ने कहा कि गिर्दा किसी मंच के मोहताज नहीं थे, जहां खड़े हो जाते वहीं पर मंच बन जाता था। गिर्दा को याद करते हुए कहा कि वे 1972 से जन आंदोलनों में सक्रिय थे, उनके गीतों का प्रभाव था कि वाहिनी कई बार उत्तराखंड को बंद कराने में सफल हुई। अजयमित्र ने कहां की गिर्दा उत्तराखंड में आम आदमी की हक हकूक की आवाज रहे। इससे पूर्व कार्यक्रम का शुभारंभ गिर्दा के जन गीतों से हुआ। लोगों ने गिर्दा के कई जन गीत गाए। गोष्ठी में वाहिनी के वरिष्ठ उपाध्यक्ष जंग बहादुर थापा, अजय मेहता, कुंदन सिंह, कुणाल तिवारी, शमशेर गुरंग आदि ने संबोधित किया। इस मौके पर जयमित्र बिष्ट, गोकुल शाही, सूरज टम्टा, शंभू राणा, आदित्य शाह, देवेंद्र वर्मा, नवीन पाठक आदि उपस्थित रहे। अंत में सुमगढ़़ में 18 अगस्त 2010 में प्राकृतिक आपदा में मारे गए 18 बच्चों को श्रद्धांजलि दी गई। कार्यक्रम की अध्यक्षता रेवती बिष्ट और संचालन दयाकृष्ण कांडपाल ने किया।

दूसरी ओर उत्तराखंड परिवर्तन पार्टी ने गिरीश तिवारी “गिर्दा” की पुण्यतिथि पर उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित की। पार्टी के केंद्रीय कार्यालय में हुई संगोष्ठी में उपपा के केंद्रीय अध्यक्ष पीसी तिवारी ने कहा कि गिर्दा ने सत्ता प्रतिष्ठानों की मनमानी के खिलाफ सघर्षों में उतरे। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार की नौकरी में रहने के बावजूद उन्होंने हमेशा सड़क पर उतर कर शासन—प्रशासन को चुनौती दी। उत्तराखंड में चिपको, वन बचाओ, नशा नहीं रोज़गार दो एवं ट्रेड यूनियन कार्यकर्ताओं के आंदोलनों का खुलकर समर्थन किया। संगोष्ठी में प्रकाश उनियाल ने कहा कि वे पहाड़ की मिट्टी के संस्कृति कर्मी थे। धीरेन्द्र मोहन पंत ने कहा कि गिर्दा की रचनाओं में मुर्दों में जान डालने की ताकत थी। छात्र नेता दीपा नेगी ने कहा कि गिर्दा की धारा गिर्दा से पहले भी थी और गिर्दा के बाद भी रहेगी। रेशमा परवीन ने कहा कि गिर्दा की चेतना जन आंदोलनों की चेतना है। श्रीमती शशि उनियाल ने कहा कि उनकी रचनाएं हमेशा प्रेरित और हर्षित बनाए रखेंगी। संगोष्ठी की अध्यक्षता पार्टी की केंद्रीय सचिव आनंदी वर्मा एवं संचालन रंगकर्मी विहान के सांस्कृतिक ग्रुप के देंवेंद्र भट्ट ने किया। संगोष्ठी में गोपाल राम, पूरन सिंह मेहरा, अनीता बजाज, राजू गिरी, चंपा सुयाल आदि लोग उपस्थित थे।

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