विडंबना : बेबस पिता के आंसुओं की कीमत कुछ भी नहीं ! कर्ज ले बिटिया को बनाया शिक्षिका, काल ने छीन लिया

— दीपक मनराल — सरकारी नियमों के तहत बिटिया की मौत का कोई दुर्घटना बीमा तक नहीं झोपड़ी में रहता है गरीब परिवार, बिटिया को…

— दीपक मनराल —

सरकारी नियमों के तहत बिटिया की मौत का कोई दुर्घटना बीमा तक नहीं

झोपड़ी में रहता है गरीब परिवार, बिटिया को पढ़ाने के लिए जमीन बेचा, कर्ज लिया

घास—फूस की झोपड़ी मे रहने वाले​ इस गरीब दंपत्ति ने अपनी लाडली बिटिया को जमीन बेच और कर्ज लेकर पढ़ा—लिखा सरकारी अध्यापिका बनाया, लेकिन विडंबना देखिये कि नौकरी ज्वाइनिंग के पहले ही दिन उसे काल ने असमय ही छीन लिया।

अल्मोड़ा के चौखुटिया में इस बालिका की सड़क हादसे में दर्दनाक मौत हो गई। बिटिया के जाने के गम से उसके वृद्ध माता पिता अब तक नहीं उभर पाये हैं। यहां तक कि नियुक्ति के पहले ही दिन बिटिया की मौत हो जाने के चलते परिवार को दुर्घटना बीमा का लाभ भी नहीं मिल पा रह है।

आपको याद दिला दें कि गत 21 नवंबर रविवार को एक दर्दनाक हादसे की ख़बर आई थी। पता चला था कि प्रथम नियुक्ति के बाद अल्मोड़ा जनपद अंतर्गत चौखुटिया में अपने कार्यस्थल ग्राम पंचायत डांग जा रही सितारगंज निवासी शिक्षिका सरिता राणा 31 वर्ष की गत रविवार को सड़क हादसे में मौत हो गई है।

मृतका का घर, घास—फूंस की झोपड़ी

घटनाक्रम के अनुसार सितारगंज के अंजनियां निवासी शिक्षिका सरिता राणा पुत्री राम भरोसे अपने रिश्ते के जीजा के साथ स्कूटी में सवार थीं। ग्राम पंचायत चिनौनी के सक्लें के निकट सामने से आ रहे डंपर से बचने के लिए जीजा ने स्कूटी में ब्रेक लगाया तो शिक्षिका गिरकर डंपर के टायर की चपेट में आ गई, जिससे उसकी मौके पर ही मौत हो गई थी। सरिता की राजकीय प्राथमिक विद्यालय डांग में हाल ही में नियुक्ति हुई थी। कार्यभार ग्रहण करने के बाद रविवार को सितारगंज के साधुनगर निवासी अपने जीजा मुकेश सिंह के साथ स्कूटी से चौखुटिया पहुंचने के बाद कार्यस्थल ग्राम पंचायत डांग जा रही थी। इसी बीच यह दर्दनाक हादसा हो गया। तब शिक्षिका के भाई और बहन भी उनका सामान आदि लेकर एक अन्य वाहन में पीछे से आ रहे थे। उनकी आंखों के सामने ही सरिता की इतनी भयानक मौत हो गई थी।

एंबूलेंस चालक ने दिखाई दरियादिली, छोड़ दिये रूपये

बताया जा रहा है कि शि​क्षिका की डेड बाडी लेकर जो एंबूलेंस सितारगंज पहुंची उसका भाड़ा 10 हजार तय था, लेकिन उसके घर की आर्थिक स्थिति देखकर उस एंबूलेंस वाले व्यक्ति का दिल द्रवित हो गया। उस बड़े दिल के आदमी ने घर पहुंचने पर देखा कि मृतका के पिता की झाड़ फूस की झोपड़ी है, वह किसानी करते हैं और आय साल की मात्र 48 हजार है। यानी 4 हजार रूपये महीना। तो उस एंबूलेंस वाले ने अपना 09 हजार रुपए छोड़ दिये और मात्र एक हजार रूपये का ही भाड़ा लिया।

नियति का खेल देखिये, कोई दुर्घटना बीमा भी नहीं !

यह सब भाग्य का खेल ही कहा जायेगा कि पिता राम भरोसे राणा 75 वर्ष और माता बद्दल देवी 70 साल ने जिस लड़की को न जाने कितने आभावों से जूझते हुए बीएड कराया और बिटिया ने फिर टीईटी करके शिक्षिका की नौकरी पाई और ज्वाइनिंग भी कर ली, उसकी नियुक्ति के प्रथम दिन ही मौत हो गई। सबसे बड़ी विडंबना यह है कि सरकारी नियमों के अनुसार जब तक उसकी सेवाकाल के तीन जीआईएस (GIS) नही कटते तब तक उसे दुर्घटना बीमा का लाभ भी नही मिल सकता। यानी इस गरीब परिवार को तो बटिया की मौत का बीमा तक नहीं मिल सकता।

क्या होगा इस परिवार का ?

बड़ा सवाल यह है कि इस गरीब परिवार का अब क्या होगा ? अपनी बिटिया को पढ़ाने—लिखाने में हुए खर्च में लिए गये कर्जे को वह कैसे चुका पायेंगे। पहले तो भरोसा था कि बिटिया की सरकारी नौकरी लग गई और बुरे दिन खत्म हो गये, लेकिन अब इस वृद्ध दंपत्ति के पास कुछ नहीं है। इधर मृतका के सहयोगियों ने आम जनता से इस गरीब दंपत्ति की आर्थिक मदद करने की एक सार्वजनिक अपील भी जारी की है।

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