प्रेरणादायी: गरीब परिवार में जन्म, संकटों से साक्षात्कार और आज कुलपति

30 अक्टूबर 1962 को पिथौरागढ़ जनपद अंतर्गत अस्कोट क्षेत्र के दूरस्थ गांव पथरौली में जन्मे प्रो. जगत सिंह​ बिष्ट का नाता एक बेहद साधारण ग्रामीण परिवार से रहा है।

कुलपति प्रो. ​जगत सिंह बिष्ट

✍️ सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय के कुलपति बने प्रो. ​जगत सिंह बिष्ट का सफर

✍️ मेहनत समेत सामाजिक, प्रशासनिक व अकादमिक अनुभवों से पाया मुकाम

चन्दन नेगी, अल्मोड़ा

Success Story : कुलपति प्रो. ​जगत सिंह बिष्ट (Vice Chancellor Prof. Jagat Singh Bisht)

पहाड़ के दूरस्थ गांव में एक साधारण परिवार में जन्म, ग्रामीण परिवेश में पलना—बड़ा होना और संकटों से मुकाबला। पूरा प्रारंभिक जीवन कठिनाई से भरा रहा। संकट व गरीबी में उन्होंने साथ रखे सिर्फ संस्कार, सादगी, लगन व मेहनत। कहते हैं—’परिश्रम ही सफलता ही कुंजी है’ और यही बात उन्होंने आज उस वक्त सच साबित कर दी, जब एक साधारण शिक्षक से सफर शुरू करते हुए उन्हें विश्वविद्यालय के कुलपति जैसे उच्च पद का दायित्व मिला। उनका यह सफर धैर्य, लगन व परिश्रम के बल पर चलने वालों के लिए बेहद प्रेरणादायी है। जी हां, यहां बात हो रही है कि प्रो. जगत सिंह बिष्ट की। जिन्हें आज सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के कुलपति का दायित्व मिला है।

शुरू से संघर्ष व मेहनत से नाता (struggle and hard work)

30 अक्टूबर 1962 को पिथौरागढ़ जनपद अंतर्गत अस्कोट क्षेत्र के दूरस्थ गांव पथरौली में जन्मे प्रो. जगत सिंह​ बिष्ट का नाता एक बेहद साधारण ग्रामीण परिवार से रहा है। पारिवारिक गरीबी झेलते हुए उस कठिन दौर में उन्होंने प्राइमरी से लेकर इंटर तक की शिक्षा गांव में ली। राउमावि सिंगाली पिथौरागढ़ से हाईस्कूल एवं राइंका गर्खा पिथौरागढ़ से इंटर की परीक्षा उत्तीर्ण की। प्रो. बिष्ट का अतीत बड़ा ही संकटमय रहा है, किंतु उन्होंने सदैव धैर्य, लगन व मेहनत पर विश्वास बनाए रखा। जब वे 7वीं कक्षा में पढ़ते थे, तब उनके सर से मां का साया उठ गया। इसके बाद परिवार एक के बाद एक संकट झेलता रहा। ऐसी स्थिति में खेती-बाड़ी का काम भी छूट गया। उनके पिता वैद्य का काम करते थे। बस यही आजीविका का साधन बन गया। कठिनता के बावजूद पिता ने उन्हें उच्च शिक्षा के लिए पिथौरागढ़ भेजा। पीजी कालेज पिथौरागढ़ से उन्होंने स्नातक व पीजी किया।

बाद में कुमाऊं विश्वविद्यालय से पीएचडी की। लगन व कठिन मेहनत से प्रो. बिष्ट का रिकार्ड रहा है कि उन्होंने हाईस्कूल से लेकर उच्च शिक्षा तक सभी परीक्षाएं प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की है। उन्होंने जो भी पाया खुद की मेहनत से। साधारण परिवार में जन्म लेने के बावजूद उन्होंने मेहनत के बल पर खुद को साबित किया और काव्य शास्त्र एवं गद्य साहित्य को बखूबी सींचने का काम करते हुए इनमें विशेषज्ञता हासिल की। कुमाऊं​ विश्वविद्यालय नैनीताल के अधीन सोबन ​सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा में एक प्रवक्ता के रूप में अध्यापन कार्य शुरू करते हुए प्रगति के पायदान चढ़ते रहे और उनका दशकों का अध्यापन कार्य, लेखन तथा लंबा प्रशासनिक एवं अकादमिक अनुभव रंग लाया और आज प्रो. जगत सिंह बिष्ट को सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय अल्मोड़ा के कुलपति जैसे उच्च पद का दायित्व मिला है। जो बेहद प्रेरणादायी है। वर्तमान में उनके पास सोबन सिंह जीना विश्वविद्यालय में कला संकायाध्यक्ष, हिंदी व अन्य भारतीय भाषा विभाग के अध्यक्ष तथा शोध एवं प्रसार निदेशालय के निदेशक का दायित्व भी है।

कुलपति प्रो. ​जगत सिंह बिष्ट का अध्यापन सफर (Teaching journey)

प्रो. जगत सिंह बिष्ट ने सन् 1985 में राजकीय स्नातकोत्तर महाविद्यालय, पिथौरागढ़ से अध्यापन कार्य शुरू किया, हालांकि इससे पहले उन्होंने नारायणनगर, मानिला व स्याल्दे आदि डिग्री कालेजों में भी शिक्षण कार्य किया। सदैव लगनशीलता के चलते प्रो. बिष्ट ने 25 जून 1991 से सोबन सिंह जीना परिसर अल्मोड़ा में अध्यापन कार्य शुरू किया। तब से निरंतर स्नातक व स्नातकोत्तर कक्षाओं में अध्यापन कार्य करते आ रहे हैं। उन्होंने 25 जून 1991 से 24 जून 1996 तक प्रवक्ता, 25 जून 1996 से 24 जून 2000 तक वरिष्ठ प्रवक्ता, 25 जून 2000 से 24 जून 2005 तक उपाचार्य, 25 जून 2005 से 24 जून 2008 तक एसोसिएट प्रोफेसर और 25 जून 2008 से वर्तमान तक प्रोफेसर के रूप में अध्यापन कार्य कियाा है।

लंबा प्रशासनिक/अकादमिक अनुभव (Long Administrative/Academic Experience)

प्रो. जगत सिंह बिष्ट विभिन्न पदों पर रहकर कई प्रशासनिक दायित्व निभा चुके हैं। कुमाऊं​ विश्वविद्यालय के अधीन एसएसजे परिसर अल्मोड़ा में प्रो. जेएस बिष्ट 05 साल तक राष्ट्रीय सेवा योजना के कार्यक्रम अधिकारी, 07 वर्ष तक सहायक शास्ता, 03 वर्ष तक सहायक अधिष्ठाता छात्र कल्याण, 07 वर्षों तक कुलानुशासक, 04 वर्ष तक प्रभारी पुस्तकालयाध्यक्ष एवं 10 माह सोबन सिंह जीना ​परिसर अल्मोड़ा के निदेशक पद पर रहकर बखूबी दायित्वों का​ निर्वहन कर चुके हैं। इनके अलावा 11 वर्ष तक कुमाऊं विश्वविद्यालय के उड़नदस्ते के सदस्य व प्रभारी रहे। 13 साल तक प्रवेश समिति के सदस्य एवं संयोजक तथा 14 साल तक कुमाऊं विश्वविद्यालय के शुल्क मुक्ति समिति के सदस्य रहे। प्रो. बिष्ट ने एसएसजे परिसर अल्मोड़ा में हिंदी एवं अन्य भारतीय भाषा​ विभाग के विभागाध्यक्ष, परिसर विभागाध्यक्ष, कला संकायाध्यक्ष, शोध एवं प्रसार निदेशक, निदेशक हरेला पीठ व महादेवी सृजन पीठ रामगढ़ के निदेशक आदि पदों पर रहकर और तमाम बड़ी कार्यशालाओं/संगोष्ठियों में हिस्सा लेकर वृहद अकादमिक अनुभवों का पिटारा भरा हैं।

साहित्य साधना की लंबी फेहरिस्त (Literature Practice)

प्रो. जगत सिंह बिष्ट ने कई पुस्तकें लिखी हैं और कईयों का संपादन किया है। उनकी 08 शोध एवं आलोचनात्मक पुस्तकें, 03 रचनात्मक पुस्तकें व 05 पाठ्य पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। वहीं 05 अन्य पुस्तकों का संपादन किया है। इनके अलावा प्रो.बिष्ट के प्रकाशित शोध पत्रों व आलेखों की संख्या 46 है। उनकी प्रकाशित रचनाओं में सन्नाटे का वक्तव्य (कविता संग्रह), सूखे पत्रों से (कविता संग्रह), हिंदी स्मारक साहित्य, मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में अलंकार विधान, काव्यशास्त्र के सिद्धांत, मैथिलीशरण गुप्त के काव्य में गाँधी दर्शन, साहित्य सृजन के कुछ संदर्भ, होने की प्रतीति (कविता संग्रह), कुमाऊंनी की उपबोली अस्कोटी का व्याकरण, साहित्य प्रसंग, विचार और विश्लेषण, साहित्य, लोक साहित्य और भाषा पर्व, उत्तराखण्ड का हिंदी साहित्य तथा साहित्य प्रसंगः विचार और विश्लेषण आदि शामिल हैं। इनके अलावा उनके द्वारा संपादित एवं सह संपादित साहित्य में निबंध सप्तक, गद्य संचयन, हिंदी स्मारक साहित्य संग्रह, मानक हिंदी शब्दावली, भाषा संप्रेषणः विविध आयाम, उत्तराखंड के रचनाकार और उनका साहित्य तथा कुमाऊंनी कविता संग्रह उमाव प्रमुख रूप से शामिल हैं।

शोध कार्य में योगदान (Research Contribution)

शोध के क्षेत्र में भी प्रो. जगत सिंह बिष्ट का काफी योगदान रहा है। उनके निर्देशन में अब तक 21 विद्यार्थी शोध उपाधि अर्जित कर चुके हैं। वर्तमान में उनके निर्देशन में 07 अभ्यर्थी शोध कर रहे हैं। करीब तीन दर्जन लघु शोध पृथक से हैं।

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