सुयालबाड़ी से अनूप सिंह जीना की रिपोर्ट
जवाहर नवोदय विद्यालय गंगरकोट, सुयालबाड़ी का भवन एक गम्भीर खतरे से जूझ रहा है। यहां विभिन्न कक्षों में निरंतर गहरी होती जा रही दरारें अब डराने लगी हैं। भय का कारण भी निर्मूल नही है, क्योंकि भू-गर्भीय सर्वेक्षण में भी विद्यालय भवन को संवेदनशील की श्रेणी में रख दिया गया है।
इससे भी अधिक चिंता की बात तो यह है कि केवल विद्यालय भवन ही नही, बल्कि अल्मोड़ा-हल्द्वानी राष्टीय राजमार्ग का विद्यालय के आस-पास का इलाका भी भू-धंसाव की चपेट में आ चुका है। उल्लेखनीय है कि अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाई वे में स्थित इस आवासीय विद्यालय में विभिन्न जनपदों के सैकड़ों विद्यार्थी अध्यनरत हैं। विगत कई सालों से विद्यालय भवन में कुछ दरारें पड़ने लगी हैं। खास तौर पर प्रशासनिक कक्ष, प्रधानाचार्य आवास, छात्रावास कक्ष, पुस्तकालय आदि में जगह-जगह दरारें देखी गई हैं। पूर्व में विद्यालय प्रबन्धन ने इसे महज मामूली दरारें समझ इनको दुरूस्त करवा दिया, लेकिन अब पुनः यह दरारें पहले से भी अधिक गहराने लगी हैं। इस बीच खतरे की आशंका से विद्यालय का भू-गर्भीय सर्वेक्षण करवाया गया, जिसके बाद इन दरारों को गम्भीर खतरा बताते हुए भवन को संवेदनशील की श्रेणी में रख दिया गया है। मुख्य अभियंता कार्यालय लोनिवि अल्मोड़ा प्रिया जोशी ने बताया कि सर्वेक्षण की रिपोर्ट विद्यालय प्रबन्ध समिति और लोनिवि कार्यालय नैनीताल को सौंप दी गई है। यहां जिस तरह से दरारें बढ़ती जा रही हैं उसको लेकर कारगर उपाय करने की जरूरत है। यही नही अल्मोड़ा-हल्द्वानी हाईवे में स्थित इस आवासीय विद्यालय के आस-पास की भूमि को भी भू-धंसाव का खतरा है। इधर प्राचार्य राज सिंह के अनुसार अब सर्वेक्षण की यह रिपोर्ट लखनउ मुख्यालय के उच्चाधिकारियों को भेज दी गई है।
यह भी जानें – सबसे पहले 2008 में देखी गई दरारें, अब हर तरफ फैल रहीं
जवाहर नवोदय विद्यालय गंगरकोट, सुयालबाड़ी एक उच्च शैक्षिक आदर्शों से युक्त आवासीय विद्यालय है। जहां की शिक्षण व्यवस्था अत्यंत सराहीय है। प्रतिवर्ष यहां एडमिशन के लिए बड़ी संख्या में छात्र-छात्राएं परीक्षा देते हैं। वर्तमान में यहां छात्र संख्या 550 है। अतएव विद्यालय प्रबन्धन पर अध्यनरत छात्र-छात्राओं व शिक्षकों की सुरक्षा की भी बड़ी जिम्मेदारी है। सबसे पहले यहां दरार वर्ष 2008 में देखी गई थी, किंतु 2010 की आपदा के दौरान भी विद्यालय भवन में प्रभाव पड़ा था। पहले यह दरारें कहीं-कहीं दिखाई देती थीं, लेकिन अब फर्श, दीवार व आम रास्तों पर भी दिखाई दे रही हैं और हर साल बढ़ती जा रही हैं।