सोचनीय: जिला मुख्यालय, तीन बड़े अस्पताल, कई घंटों तक इलाज के लाले और गर्भवती की मौत ?

अल्मोड़ा, 22 अगस्त। निकटवर्ती हवालबाग ब्लाक के कटारमल गांव निवासी गर्भवती महिला आशा देवी की मौत ने एक बार स्वास्थ्य महकमे की इंतजामों पर सवालिया…


अल्मोड़ा, 22 अगस्त। निकटवर्ती हवालबाग ब्लाक के कटारमल गांव निवासी गर्भवती महिला आशा देवी की मौत ने एक बार स्वास्थ्य महकमे की इंतजामों पर सवालिया निशान लगाया है। यह सवाल तीन बड़े सरकारी अस्पतालों वाले जिला मुख्यालय की व्यवस्था पर है। ऊपर वाले भगवान की तो कोई नहीं जानता, लेकिन ये क्या कि इस गर्भवती के लिए धरती के भगवानों का दिल भी नहीं पसीजा। सवाल ये भी है कि क्या कोरोना की भयावहता में गंभीर मरीजों को तत्काल इलाज मिलना संभव नहीं हो पाएगा।
उल्लेखनीय है कि जिला मुख्यालय के निकटवर्ती कोसी कस्बे के समीप कटारमल गांव निवासी मुन्ना सिंह की 24 वर्षीय गर्भवती पत्नी आशा देवी के इलाज के लिए परिजन जिला मुख्यालय के अस्पतालों के चक्कर काटते रहे और इसी करीब 9-10 घंटे की आपाधापी में आशा की जान चले गई। उसी के साथ उसके गर्भ में पल रहे शिशु दुनिया देखने से पहले ही सदा के लिए सो गया। आशा पांच माह के गर्भ से थी। संवेदनहीनता का आलम देखिए, सांस की दिक्क्त झेलते एक गर्भवती महिला को परिजन पहले जिला मुख्यालय लाते हैं, जहां फौरी इलाज की उम्मीद में एक निजी अस्पताल में पहुंचते हैं, लेकिन निराश होकर वहां से लौटना पड़ता है, क्योंकि उन्हें यह कहकर लौटा दिया जाता है कि पहले कोरोना टेस्ट करा लाइये। इसके बाद परिजन उस महिला को लेकर बड़ी उम्मीद से जिला अस्पताल पहुंचते हैं, लेकिन से भी कोरोना टेस्ट के लिए बेेस अस्पताल भेज दिया जाता है। परिजन गर्भवती को बेस पहुंचते हैं, जहां कोरोना जांच तो होती है और रिपोर्ट निगेटिव आती है, लेकिन इलाज के लिए जिला अस्पताल भेज दिया जाता है। इसके बाद परिजन मरीज को लेकर जिला अस्पताल पहुंचकर गिड़गिड़ाते हैं। लेकिन तब तक बहुत देर हो चुकी होती है और सांस की तकलीफ से तडपती गर्भवती दम तोड़ देती है।
बेहद सोचनीय है कि लोग दूर-दूर गांवों से जिला मुख्यालय के अस्पतालों में इलाज के लिए बड़ी उम्मीद लेकर पहुंचते हैं। लेकिन यहां कई समस्याओं से मरीज रूबरू होते आएं। कभी लापरवाही, कभी अनदेखी, कभी पुख्ता इंतजामों की कमी जैसी स्थितियां सामने आते रही हैं। गर्भवती आशा की मौत का मामला स्वास्थ्य व्यवस्था का चित्र उकेरने के लिए काफी है। एक गंभीर मरीज को इलाज के लिए इस तरह 9-10 घंटों तक भटकाना व्यवस्था और संवेदनशीलता की कमी ही कही जा सकती है। यह सही है कि कोरोनाकाल में शंका दूर करने के लिए जांच करना जरूरी है, मगर यह भी तो जरूरी है कि ऐसी स्थितियों से निबटने और लोगों को त्वरित इलाज देने के लिए हर अस्पताल में त्वरित कोविड-19 की जांच की व्यवस्था हो। अन्यथा ऐसे तो गंभीर रोगियों का इलाज करना मुश्किल हो जाएगा। कमी किसी स्तर की रही हो, लेकिन दो जिंदगियां चले गई। किसी की जिंदगी बचाने की गारंटी तो नहीं ली जा सकती, लेकिन घंटों बाद के बजाय त्वरित इलाज का इंतजाम तो होना ही चाहिए। बाद में अपना-अपना तर्क प्रस्तुत करना और जांच की बात औपचारिकताएं कहीं जा सकती हैं। आशा की मौत के मामले में सीएमओ कहते हैं कि मौत के कारणों का डेथ आॅडिट होगा और मामले की पूरी जांच होगी। बेस अस्पताल के पीएमएस डा. एचसी गढ़कोटी कहना है कि गर्भवती आशा की कोविड-19 की जांच रिपोर्ट निगेटिव आई और सांस की तकलीफ के कारण उसे बेस अस्पताल में रखना संभव नहीं था, तो जिला अस्पताल भेजा गया। जिला अस्पताल के पीएमएस डा. आरसी पंत कहते हैं कि महिला का उपचार करने की पूरी कोशिश की गई, मगर वह बच नहीं सकी। परिजनों का कहना है कि आशा को कुछ दिनों से टाइफाइड संक्रमण चल रहा था और उसका उपचार भी चल रहा था लेकिन अचानक सांस की तकलीफ हो गई। उनका आरोप है कि समय पर आशा को उपचार मिल जाता तो वह बच सकती थी। मगर उसे आक्सीजन तक तत्काल उपलब्ध नहीं हो सकी।

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