सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
कुमाऊं के विभिन्न ग्रामीण और शहरी अंचलों में आत्माओं को देव स्वरूप मानकर पूजा जाता है। लोगों का आत्माओं के अस्तित्व में दृढ़ विश्वास उन्हें कुछ शक्तिशाली आत्माओं को पूजने के लिए विवश करता है। माना जाता है कि यह आत्माएं पहले प्रेत बनकर लोगों को परेशान करती हैं, पर जब विधिवत इनकी स्थापना कर इन्हें पूजा जाता है तो यह अपनी पर पीड़क प्रवृत्ति को छोड़ लोक कल्याणकारी हो जाती हैं।
नगर में खमसी बूबू नामक एक शक्तिशाली आत्मा को पूजने की करीब डेढ़ सौ साल से भी पुरानी परंपरा है। नगर के गंगोला मोहल्ला स्थित बांस गली के निकट बाजार में खमसी बबू का थान (लघु मंदिर) है, जहां प्रतीक के रूप में एक हुक्के की पूजा की जाती है। हालांकि इस स्थानीय देवता के बारे में विस्तृत जानकारी किसी के पास उपलब्ध नहीं है पर खमसी बबू को पूजने की परंपरा यहां दशकों से चली आ रही है। एक किवदंती प्रचलित है कि खमसी बूबू तराई भावर क्षेत्र से यहां कार्य विशेष से आने वाले कोई मुसाफिर थे, जो यहां के प्राकृतिक सौहार्द से मोहित होकर यहीं बस गए। फुर्सत के क्षणों में हुक्का गुड़गुड़ाना व तंबाकू चबाना उनका प्रिय शौक था।
बताया जाता है कि उनकी मौत के बाद बूबू की आत्मा यहां भटकने लगी। इस आत्मा ने तब कुछ लोगों को सताना भी शुरू कर दिया। तब क्षेत्रीय लोगों ने आपस में सलाह-मशवरा करके यहां एलेक्जेंडर लाइन स्थित बद्रेश्वर मंदिर के पास व बाद में गंगोला मोहल्ला में उनकी विधिवत स्थापना कर दी। मूर्ति व चित्र के अभाव में थान में एक हुक्का रख दिया गया, जिसे खमसी बूबू का हुक्का नाम से जाना जाता है। क्षेत्रवासियों का दृढ़ विश्वास है कि कोई कष्ट आने पर पीड़ित व्यक्ति या उनके परिवारजन यदि बूबू के थान पर खिचड़ी, तंबाकू, बीढ़ी आदि चढ़ाएं तो उसके कष्ट दूर हो जाते हैं।
यह भी मान्यता है कि भूत-प्रेत के हमले अथवा दैवी आपदाओं के समय भी अपने उपासकों की रक्षा करते हैं। व्यापारियों का मानना है कि खमसी बूबू की पूजा से व्यापार में बढ़ोत्तरी होती है तथा बूबू की आत्मा उनकी जान-माल की रक्षा करती है। प्रत्येक शनिवार व मंगलवार को उनकी विशेष पूजा-अर्चना की जाती है। नगर में अनेक लोग खमसी बूबू के चमत्कारों का उल्लेख करते हैं। कई लोग उन्हें प्रत्यक्ष देखने का दावा भी करते हैं। निश्चय ही कुमाऊं की इस सांस्कृतिक नगरी में खमसी बूबू की उपासना अपने आप में अनूठी है।