कविता : भू—कानून

उत्तराखंड में लगातार दूसरे राज्यों के लोगों द्वारा जमीनों की करी जा रही खरीद—फरोख्त के बीच यहां भी भू— कानून और धारा 371 लागू करने…


उत्तराखंड में लगातार दूसरे राज्यों के लोगों द्वारा जमीनों की करी जा रही खरीद—फरोख्त के बीच यहां भी भू— कानून और धारा 371 लागू करने की मांग तेजी से बढ़ रही है। सामाजिक कार्यकर्ता कृपाल सिंह बिष्ट ने ​अपनी कविता ‘भू—कानून’ के माध्यम से इन्हीं समस्याओं को उजागर करने का प्रयास किया है। — सं.

हमारा उत्तराखंड प्यारा है,
देश विदेश में न्यारा है ।

दूर-दूर से यहाँ लोग हैं आते,
देख सुंदरता उत्तराखंड की वह भी चौंक जाते ।

मन में फिर सोचते कि उत्तराखंड में ही घर बनाते,
यही सोच कर फिर वे जमीन की तलाश में निकल जाते ।

फिर कुछ उत्तराखंडी लोग उनके चंगुल में फंस जाते,
अपने पितरों की जमीन को वह कौड़ियों में बेच जाते ।

फिर शहरों की तरफ वह अपनी उम्मीद जगाते
वहाँ 20 गज की जमीन के वह लाखों रुपए चुकाते ।

छोड़ शुद्ध हवा और शुद्ध पानी वे शहरों में बस जाते,
शहरों की चकाचौंध में सपने नए सजाते ।

तरह—तरह का प्रदूषण और शोर-शराबा जब उनकी नींद उड़ाता है,
तब जाकर उनको अपना उत्तराखंड याद आता है ।

एकल कमरे में रहने के वे फिर आदि हो जाते हैं,
5—10 हजार की नौकरी से वे अपना गुजारा चलाते हैं ।

धीरे-धीरे फिर परिवार है बढ़ता,
20 गज का कमरा भी छोटा है पड़ता ।

रहने की दिक्कत और सोने की दिक्कत जब उनकी चिंता बढ़ाती है,
तब जाकर उन्हें अपने पितरों की जमीन की याद आती है ।

कि कैसे पितरों ने मेहनत करके अपनी जमीन सींची थी,
और कैसे हमने चंद पैसों के लालच में अपने पितरों की जमीन बेची थी…,

उत्तराखंड सरकार से मेरी अपील-
उत्तराखंड की इस धरती को बचाना अब तुम्हारे हाथ है,
अब उत्तराखंड के लोग भी भू—कानून के साथ है ।

  • कृपाल सिंह बिष्ट (सामाजिक कार्यकर्ता)
    ग्राम- नौला, पोस्ट ऑफिस शीतलाखेत, अल्मोड़ा

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