खेतीबाड़ी: कुरमुला/व्हाइट ग्रब खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली फसलों का एक हानिकारक कीट

डा० राजेंद्र कुकसाल9456590999 कुरमुला जिसे सफेद गिडार भी कहते हैं, पहाड़ी क्षेत्रों में खरीफ मौसम में असिंचित दशा में उगाई जाने वाली सभी फसलों, धान,…


डा० राजेंद्र कुकसाल
9456590999

कुरमुला जिसे सफेद गिडार भी कहते हैं, पहाड़ी क्षेत्रों में खरीफ मौसम में असिंचित दशा में उगाई जाने वाली सभी फसलों, धान, मक्का, मडुवा, आलू,अदरक, सब्जी की सभी फसलों को हानि पहुंचाने वाला कीट है। यह बहुभक्षी स्वभाव का कीट है, पहाड़ी क्षेत्रों में खरीफ मौसम में उगाई जाने वाली सभी फसलों के लिए कुरमुला कीट एक बड़ी समस्या है। कुरमुला / गिडार, वयस्क भृंगों (गुबरैलों/बीटल ) की शिशु (अपरिपक्व) अवस्था है जो जुलाई से अक्टूबर तक जमीन के अन्दर सक्रिय अवस्था में रह कर विभिन्न फसलों व पेड़ पौधों की जड़ों को काट कर पौधों को क्षति पहुंचाते हैं।

इस कीट के वयस्क (गुबरैला / बीटल ) विभिन्न वृक्षों सेब, अखरोट,मीठा पांगर आड़ू,भीमल,खडिक तुन, तिमला,बेडू,हिसालू आदि की पत्तियों को खा कर पत्ती विहीन कर देते हैं। इस कीट की तीस से अधिक प्रजातियां पाई जाती है। कुरमुला कीट का प्रभाव जुलाई से अगस्त माह में अधिक देखने को मिलता है। किसी भी कीट के प्रभावी नियंत्रण के लिए आवश्यक है कि हम उस कीट की प्रकृति,स्वभाव , पहिचान, प्रकोप, जीवन चक्र के बारे में जानकारी रखें, तभी कीट का प्रभावकारी नियंत्रण किया जा सकता है। इस कीट के वयस्क भृंग ( बीटल ) आकार में लगभग 7 मि.मी. चौड़ा तथा 18 मि.मी. लम्बा होता है। वयस्क भृंग/ बीटल शुरू की अवस्था में पीले रंग का जो बाद में चमकदार तांबे जैसा हो जाता है।

गिडार/ कुरमुला या ग्रब (लार्वा) शुरू की अवस्था का रंग सफेद होता है, पूर्ण विकसित लार्वा / गिडार/कुरमुला का शरीर मोटा, रंग मटमैला-सफेद तथा आकार अंग्रेजी के “C” अक्षर के सामान मुडा होता है। जिनका सिर गहरे भूरे रंग का तथा मुखांग मजबूत होते हैं। वयस्क गुबरैले मई-जून के महीने में प्रथम बरसात होने पर सायंकाल में मिट्‌टी से बाहर निकलते हैं तथा खेत के आस-पास जंगली झाड़ियों, फल वृक्षों पर बैठ कर इनकी पत्तियों को खाते हैं तथा सुबह फिर मिट्‌टी में चले जाते हैं। मादा, मैथुन के लगभग 4-6 दिनों बाद अपने अंडे मिट्‌टी में देना शुरू कर देती है।

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इन्ही अण्डों से छोटे-छोटे (गिडार) कुरमुला निकलते हैं जो पहले से खेत में पड़े कच्चा गोबर या खड़ी फसलों के पौधों की जड़ों को खाते हैं जिससे कीट से ग्रसित पौधे पीले पड़कर सूखने लगते हैं। ये गिडार दिसम्बर-जनवरी में ठंडे से बचने के लिए मिट्‌टी में काफी नीचे (सुषुप्ता अवस्था) चले जाते हैं। पुनः मार्च-अप्रैल में तापमान बढ़ने पर मिट्‌टी के उपरी सतह में आ जाते हैं तथा कुछ दिनों में प्यूपा में बदल जाते हैं । प्यूपा से 20-25 दिन में वयस्क गुबरैले निकलते हैं। इस प्रकार एक वर्ष में इस कीट का एक जीवन काल पूरा होता है।

कीट नियंत्रण-
कीट की चारों अवस्था अन्डे, लार्वा,प्यूपा व वयस्क बीटल को नष्ट कर ही प्रभावी नियंत्रण किया जा सकता है।

1.मई – जून माह में जैसे ही वयस्क गुबरैले/ बीटल वृक्षों व पौधों पर दिखाई दें सामुहिक प्रयास से उन्हें नष्ट करने का प्रयास करें। एक सप्ताह तक कीट वयस्क अवस्था में दिखाई देते हैं। इस कार्य हेतु जिन पौधों पर ये कीट सायं काल में बैठते हैं उसके नीचे त्रिपाल विछा कर पेड़ को हिलाने से कीट त्रिपाल पर गिर जाते हैं फिर इन्हें इकट्ठा कर आसानी से नष्ट किया जा सकता है।

2.प्रकाश प्रपंच की सहायता से प्रौढ़ कीट को इक्कठा कर नष्ट करें । जिन स्थानों में गोबर एकत्रित कर रखा जाता है उनके आस पास लाइट ट्रेप लगाने पर अच्छे परिणाम मिलते हैं। विवेकानंद कृषि अनुसंधान संस्थान अल्मोड़ा द्वारा भी कुरमुला कीट नियंत्रण हेतु वी. एल. ट्रेप लाइट बनाया गया है।
प्रकाश प्रपंच स्वयं भी बना सकते हैं। एक चौडे मुंह वाले वर्तन ( पारात,तसला आदि ) में कुछ पानी भरलें तथा पानी में मिट्टी तेल या कीट नाशक रसायन की कुछ बूंदें मिला लें उस बर्तन के ऊपर से मध्य में विद्युत बल्व लटका दें यदि खेत में लाइट सम्भव न हो तो बर्तन में दो ईंट या पत्थर रख कर उसके ऊपर लालटेन या लैंम्प रख दें। शाम को अंधेरा होने से रात के 9 – 10 बजे तक बल्व, लालटेन या लैम्प को जला कर रखें।वयस्क गुबरैले/ बीटल कीट प्रकाश से आकृषित होकर बल्व, लालटेन व लैम्प से टकराकर बर्तन में रखे पानी में गिर कर मर जाते हैं। कृषि सम्बन्धित विभागों व बाजार में भी प्रकाश प्रपंच/ सोलर प्रकाश प्रपंच उपलब्ध हैं।

3.खेतों में खूब सडे गोबर का ही प्रयोग करें खेत में कच्चा गोबर कदापि न डालें।

4.एक किलो ब्यूबेरिया वेसियाना को 25 किलो ग्राम गोबर में मिला कर एक सप्ताह तक छाया में रखें। गोबर में नमी होना आवश्यक है, इस प्रकार व्यूबेरिया वेसियाना का माइसीलियम पूरे गोबर में फैल जायेगा इस गोबर का प्रयोग खेत में अन्तिम जुताई के समय बीस नाली में करें।

5.एक टिन के बर्तन या खाली कन्स्तर में कच्चा चार पांच दिन पुराना गोबर भर लें फिर किसी तेज मुंह वाले औजार कुटला आदि से गोबर भरे वर्तन में छेद कर लें अब इस वर्तन को खेत के उस भाग में जहां पर कुरमुला कीट नुकसान पहुंचा रहे हैं जमीन में गाड़ दें। दो तीन दिनों बाद खेत में उपस्थित अधिकतर कुरमुले कच्चा गोबर खाने हेतु टिन पर किये गये छेदों के रास्ते वर्तन के अन्दर चले जाते हैं फिर वर्तन को जमीन से निकाल कर कच्चे गोबर में उपस्थित इन लार्वाओं को किसी रसायनिक कीटनाशक से नष्ट करें। यह प्रक्रिया दो तीन बार दुहरायें।

6.व्यूवेरिया वेसियाना ( जैविक कीटनाशक फफूंद ) बाजार में बायो साफ्ट,बायो वंडर,बायो पावर ,दमन आदि नामों से भी उपलब्ध है, की 5 ग्राम दवा एक लीटर पानी में घोल बनाकर सायंकाल में पौधे की जड़ के पास की भूमि को तर करें।
इससे कुरमुला कीट इस फंफूद के कारण रोग ग्रस्त हो जाते हैं व धीरे धीरे मरने लगते हैं।

रसायनिक नियंत्रण –
यदि जैविक विधियों से कीट का नियंत्रण नहीं हो पा रहा है तो रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करें।

1.इस कीट के वयस्क (गुबरैला / बीटल ) विभिन्न वृक्षों सेब, अखरोट,मीठा पांगर आड़ू,भीमल,खडिक तुन, तिमला,बेडू,हिसालू आदि इन पौधों की नर्सरी अवस्था व पूर्ण विकसित वृक्षों की पत्तियों को एक सप्ताह तक खाते रहते हैं। इस बीच इन पौधों पर मौनोक्रोटोफास या इमीडाक्लोप्रिड या मैलाथियन दवा का दो मिलि लिटर दवा प्रति लिटर पानी की दर से या एक चम्मच दवा तीन लिटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें यदि बडे वृक्षों पर कीटनाशक का छिड़काव करना संम्भव न हो तो इन पौधों की ( हिंसालू ,पांगर,भीमल,खडिक आदि में से कुछ एक की) टहनियों को तोड कर उन पर कीटनाशक छिड़काव कर पेड़ के नीचे रखें गुबरैला इन जहरीली पत्तियों को खाकर मर जाते हैं।

2.भूमि में फोरेट 10 जी 500 ग्राम/ नाली के हिसाब से बुवाई के समय खेत में मिला दें।

3.क्लोरपाइरी फास 80 ml. दवा एक किलो ग्राम रेत/ भुरभुरी सूखी मिट्टी में मिलायें । रेत या मिट्टी की ढेर के बीच में दवा डालने हेतु जगह बनायें जैसे आटा गूंथने में पानी के लिए जगह बनाते हैं फिर हाथों में गल्वस पहन लें यदि गल्वस नहीं है तो हाथ पर पौलीथीन की थैली लपेट कर लकड़ी की डंडी के सहारे दवा को रेत में मिलायें। एक कीलो दवा मिली रेत एक नाली भूमि के उपचार के लिए प्रर्याप्त होती है।दवा मिली रेत के बुरकाव के समय खेत में पर्याप्त नमी का होना आवश्यक है।

लेखक
वरिष्ठ सलाहकार कृषि/ उद्यान – एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना उत्तराखंड।

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