कौतूहल: अल्मोड़ा के करीब दिखा राष्ट्रीय पक्षी ‘मोर’

👉 कभी—कभार मोर दिखते हैं, मगर पहाड़ में मोर दिखना आम बात नहीं चन्दन नेगी, अल्मोड़ाः उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र नाना प्रकार के पक्षियों आसरा…

गोले के अंदर अल्मोड़ा के शीतलाखेत मार्ग पर दिखा मोर।

👉 कभी—कभार मोर दिखते हैं, मगर पहाड़ में मोर दिखना आम बात नहीं

चन्दन नेगी, अल्मोड़ाः उत्तराखंड का पर्वतीय क्षेत्र नाना प्रकार के पक्षियों आसरा है या यूं कहें कि पक्षियों को पहाड़ बेहद पसंद है, लेकिन पर्वतीय क्षेत्र में राष्ट्रीय पक्षी ‘मोर’ काफी कम दिखते हैं या यूं कहें कि कभी कहीं दिख भी गया, तो वह आम बात नहीं है। इसीलिए देर—सबेर कहीं दिख गए, तो कौतूहल का विषय बनते हैं। ऐसा ही कौतूहल का नजारा आज सुबह अल्मोड़ा जिला मुख्यालय से करीब 20 किमी दूर सड़क से गुजर रहे गुरूजनों को दिखा। उन्हें शीतलाखेत मोटरमार्ग के किनारे एक मोर दिखा और उन्होंने इसका चित्र अपने मोबाइल में कैद कर लिया।

हुआ यूं कि आज मंगलवार सुबह प्रवक्ता भूपाल सिंह नेगी व प्रवक्ता हरि प्रकाश खत्री कार से अपने विद्यालय राइंका शीतलाखेत जा रहे थे। सुबह साढ़े 8 बजे के आसपास उन्हें कोसी—शीतलाखेत मोटरमार्ग में ग्राम बिमौला व लटवालगांव के बीच स्थित चाण गांव के पास सड़क के करीब ही एक मोर विचरण करता दिखाई दिया। उनके साथ कुछ स्थानीय लोगों ने भी इसे देखा। उन्होंने गाड़ी रोक कर सुंदर मोर को निहारा और अपने मोबाइल से उसका चित्र कैद किया। इतने में मोर भय की आशंका से उड़ कर कुछ दूर चला गया। जहां कभी मोर नहीं देखा गया, वहां मोर दिखना दर्शकों के लिए कौतूहल बना रहा। इसे लोग पहाड़ के मौसम में बदलाव का संकेत मान रहे हैं, क्योंकि पहाड़ में मोर बेहद कम दिखते हैं और वह भी किसी स्थान विशेष में कभी—कभार। शिक्षक भारत भूषण गोस्वामी बताते हैं कि शीतलाखेत के नौला क्षेत्र में काफी पहले मोर दिखने की बात उन्होंने सुनी थी। इधर वन क्षेत्राधिकारी मोहन राम आर्य ने बताया कि पहाड़ों में मोर कम दिखाई देते हैं, लेकिन उन्होंने स्वयं बचपन में यहां मोर देखे हैं। हालांकि लंबे समय से मोर पहाड़ों में दिखने की बात संज्ञान में नहीं आई है।

भारत, श्रीलंका व म्यांमार का राष्ट्रीय पक्षी है मोर

मोर भारत व श्रीलंका में बहुतायत पाया जाता है। मोर ‘फैसियानिडाई’ (Fascianidae) परिवार के सदस्य है, जिसका वैज्ञानिक नाम ‘पावो क्रिस्टेटस’ (Pavo Cristatus) है। अंग्रेजी भाषा में इसे ‘ब्ल्यू पीफाउल’ या ‘पीकॉक’ (Blue Peafowl or Peacock) कहा जाता है जबकि संस्कृत भाषा में इसे मयूर नाम से जाना जाता है। अरबी में मोर को ‘ताऊस’ कहते हैं। कुदरत ने मोर को अद्भुत सौंदर्य से भरा है। इसी कारण भारत व श्रीलंका में इसे राष्ट्रीय पक्षी का दर्जा प्राप्त है। भारत सरकार ने 26 जनवरी, 1963 को मोर को राष्ट्रीय पक्षी घोषित किया। पड़ोसी मुल्क म्यांमार का राष्ट्रीय पक्षी भी मोर है।

पढ़िये, मोर की विशेषताएं/Characteristics of Peacock

वन्य पक्षी मोर अधिकतर खुले जंगलों में आसरा बनाता है। नर मोर की ख़ूबसूरत रंग-बिरंगी फरों वाली पूंछ होती है। बसंत व बरसात के मौसम में वह पंखों को खोलकर प्रणय निवेदन के लिए नृत्य करता है। मोर एक शर्मीला पक्षी है। बरसात की काली घटा में जब मोर पंख फैला कर नृत्य करता है, तो प्रतीत होता है कि उसने हीरों से जड़ी शाही पोशाक पहनी है। सिर पर ताज स्वरूप कलंगी भी मनोहारी लगती है। इसीलिए मोर को पक्षियों का राजा भी कहा जाता है। मनुष्य के आकर्षण का केंद्र मोर को धार्मिक कथाओं में उच्च कोटि का स्थान मिला है। हिन्दू धर्म में मोर के शिकार को महापाप बताया गया है। भगवान् श्रीकृष्ण के मुकुट पर मोर का पंख लगना ही इसके धार्मिक महत्त्व को दर्शाता है। महाकाव्य ‘मेघदूत’ में मोर को राष्ट्रीय पक्षी से उच्च कोटि का बताया गया है। सम्राट चंद्रगुप्त मौर्य के शासनकाल में चले सिक्कों में मोर बना रहता था।

मोर की शारीरिक बनावट व उम्र

नर मोर की लम्बाई करीब 215 सेंटीमीटर व ऊंचाई कीब 50 सेंटीमीटर होती है जबकि मादा मोर की लम्बाई करीब—करीब 95 सेंटीमीटर होती है। पहचान के लिए नर के सिर की कलंगी बड़ी व मादा के सिर की कलंगी छोटी होती है। नर मोर की पूंछ में लम्बे व सजावटी पंखों का गुच्छा होता है, जबकि मादा मोर यानी मोरनी में ये सजावटी पंख नहीं होते। मोर के पंखों की संख्या डेढ़ सौ के करीब होती है। साल में अगस्त माह में एक बार मोर के सभी पंख झड़ जाते हैं, जो ग्रीष्मकाल से कुछ पहले फिर निकल आते हैं। ज्यादातर मोर नीले रंग के होते हैं हालांकि मोर सफेद, हरे व जामुनी रंग के भी होते हैं। मोर की आयु 25 से 30 साल मानी गई है। मोर 16 किमी/घंटे की रफ्तार से दौड़ सकता है। सामान्यत: मोर के शरीर का तापमान 98.6 डिग्री रहता है और मोर गर्म रक्त वाले होते हैं।

नम व सूखे पर्णपाती वनों में बनाते हैं अड्डा

भारत में पाए जाने वाले मोर भारतीय उपमहाद्वीप का प्रजनक निवासी हैं जबकि श्रीलंका में मोर शुष्क तराई क्षेत्रों में पाये जाते हैं। दक्षिण एशिया में मोर 1800 मीटर की ऊंचाई के कुछ नीचे पाए जाते हैं, हालांकि विशेष परिस्थिति में यह 2000 मीटर की ऊंचाई पर भी देखे गए हैं। इन्हें नम और सूखी पर्णपाती जंगलों वाला स्थान ज्यादा प्रिय है, बशर्ते वहा पानी की उपलब्धता हो। जल विहीन क्षेत्र में यह निवास बनाने से बचते हैं। इसलिए खेत—खलिहान वाले हिस्सों और मानव बस्तियों के इर्द—गिर्द अनुकूलित हैं। भोजन की तलाश में कई बार मोर मानव आबादी तक पहुंच जाते हैं।

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