सोलन : नेहरू युवा केंद्र सोलन ने खंड नालागढ़ में प्रतिभगिता दिवस मनाया

सोलन। युवा केंद्र सोलन और खंड नालागढ़ में आज प्रतिभगिता दिवस के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम करवाया गया। कार्यक्रम में स्वामी विवेकानंद के जीवन पर…

सोलन। युवा केंद्र सोलन और खंड नालागढ़ में आज प्रतिभगिता दिवस के उपलक्ष्य में एक कार्यक्रम करवाया गया। कार्यक्रम में स्वामी विवेकानंद के जीवन पर प्रकाश डाला गया। इस कार्यक्रम में नालागढ़ गुरुकुल टेक्निकल ईसटीचयूट के विद्यार्थीयों ने भाग लिया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि अग्निशमन केंद्र नालागढ़ सव फायर एसएफओ राजेन्द्र सेन रहे। नेहरू युवा केंद्र सोलन खंड नालागढ के राष्ट्रीय स्वयंसेवक अजैब सिंह उपस्थित रहे। कार्यक्रम में गुरुकुल टेक्निकल संस्था के प्रधानाचार्य रिचन शर्मा ओर सटाफ मीनाक्षी, रिपंल, सुरिनदर कौर व निशा भी उपस्थिति रहे। कार्यक्रम की शुरुआत मुख्य अतिथि राजेन्द्र ने ज्योति जलाकर की।

इस कार्यक्रम के मुख्य अतिथि ने बताया कि भूकम्प आपदा प्रबंधन जब प्रकृति में असंतुलन की स्थिति होती है, तब आपदायें आती हैं जिसके कारण विकास एवं प्रगति बाधक होती है। प्राकृतिक आपदाओं के अतिरिक्त कुछ विपत्तियां मानवजनित भी होती हैं। प्राकृतिक आपदायें जैसे- भूकम्प, सुनामी, भूस्खलन, ज्वालामुखी, सूखा, बाढ़, हिमखण्डों का पिघलना आदि हैं। धैर्य, विवेक, परस्पर सहयोग व प्रबंधन से ही इन आपदाओं से पार पाया जा सकता है। आपदा प्रबंधन दो प्रकार से किया जाता है आपदा से पूर्व एवं आपदा के पश्चात। भूकम्प- भूकम्प प्राकृतिक आपदा के सर्वाधिक विनाशकारी रूपों में से एक है, जिसके कारण व्यापक तबाही हो सकती है। भूकम्प का साधारण अर्थ है ‘‘भूमि का कम्पन’’ अर्थात भूमि का हिलना।

भूकम्प पृथ्वी की आंतरिक क्रियाओं के परिणाम स्वरूप आते हैं। पृथ्वी के आंतरिक भाग में होने वाली क्रियाओं का प्रभाव पर्पटी पर भी पड़ता है और उसमें अनेक क्रियायें होने लगती हैं। जब पर्पटी की हलचल इतनी शक्तिशाली हो जाती है कि वह चट्टानों को तोड़ देती है और उन्हें किसी भ्रंश के साथ गति करने के लिए मजबूर कर देती है, तब धरती के सतह पर कम्पन या झटके, उत्पन्न हो जाते हैं। कंपन ही भूकम्प होते हैं, भूकम्प का पृथ्वी पर विनाशकारी प्रभाव भूस्खलन धरातल का धसाव मानव निर्मित पुलों, भवनों जैसी संरचनाओं की क्षति या नष्ट होने के रूप में दृष्टि गोचर होता है वैसे तो भूकम्प पृथ्वी पर कहीं भी आ सकते हैं लेकिन इनके उत्पत्ति के लिये कुछ क्षेत्र, बहुत ही संवेदनशील होते हैं। संवेदनशील क्षेत्र से तात्पर्य पृथ्वी के उन दुर्बल भागों से है जहां बलन और भ्रंश की घटनाएं अधिक होती हैं इसके साथ ही महाद्वीप और महासागरीय सम्मिलन के क्षेत्र ज्वालामुखी भी भूकम्प उत्पन्न करने वाले प्रमुख स्थान हैं।

जिलास्तर पर आपदा प्रबन्धन – आपदा प्रबन्धन हेतु सभी सरकारी योजनाओं और गतिविधियों के क्रियान्वयन के लिये जिला प्रशासन केन्द्र बिन्दु है। कम से कम समय में राहत कार्य चलाने के लिए जिला अधिकारी को पर्याप्त अधिकार दिये गये हैं। प्रत्येक जिले में आने वाली आपदाओं से निपटने के लिये अग्रिम आपात योजना बनाना जरूरी है तथा निगरानी का अधिकार जिला मजिस्ट्रेट को है। आपदा प्रबंधन – आपदा प्रबंधन के दो विभिन्न एवं महत्त्वपूर्ण पहलू हैं। आपदा पूर्व व आपदा पश्चात का प्रबंधन। आपदा पूर्व प्रबन्धन को जोखिम प्रबन्धन के नाम से भी जाना जाता है। आपदा के जोखिम भयंकरता व संवेदनशीलता के संगम से पैदा होते हैं जो मौसमी विविधता व समय के साथ बदलता रहता है। जोखिम प्रबन्धन के तीन अंग हैं। जोखिम की पहचान, जोखिम में कमी व जोखिम का स्थानान्तरण किसी भी आपदा के जोखिम को प्रबन्धित करने के लिये एक प्रभावकारी रणनीति की शुरूआत जोखिम की पहचान से ही होती है। इसमें प्रकृति ज्ञान और बहुत सीमा तक उसमें जोखिम के बारे में सूचना शामिल होती है।

इसमें विशेष स्थान के प्राकृतिक वातावरण के बारे में जानकारी के अलावा वहां आ सकने का पूर्व निर्धारण शामिल है। इस प्रकार एक उचित निर्णय लिया जा सकता है कि कहां व कितना निवेश करना है। एक ऐसी परियोजना को डिज़ाइन करने में मदद मिल सकती है। जो आपदाओं के गम्भीर प्रभाव के सामने स्थिर रह सकें। अतः जोखिम प्रबन्धन में व इससे जुड़े पेशेवरों का कार्य जोखिम क्षेत्रों का पुर्वानुमान लगाना व उसके खतरे के निर्धारण का प्रयास करना तथा उसके अनुसार सावधानी बरतना, मानव संसाधन व वित्त जुटाना व अन्य आपदा प्रबन्धन के इस उपशाखा का ही अंग है।

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भूकम्प के समय व्यक्ति की भूमिका – ऐसे समय में बाहर की ओर न भागें, अपने परिवार के सदस्यों को दरवाजे के पास टेबल के नीचे या यदि बिस्तर पर बीमार पड़े हों तो उन्हें पलंग के नीचे पहुंचा दें, खिड़कियों व चिमनियों से दूर रहें। घर से बाहर हों तो इमारतों, ऊंची दीवारों या बिजली के लटकते हुए तारों से दूर रहें, क्षतिग्रस्त इमारतों में दोबारा प्रवेश न करें। राष्ट्रीय स्वयंसेवक अजैब सिंह ने बताया कि आज के युवा इस तरह से अपने अंदर की अंतर्गत आत्मा को पहचान सके जिसमें वो अपने पर विश्वास करके अपना नाम बना सके नेहरू युवा केंद्र एक ऐसा काम करता है युवा युक्तियों के लिए कि युवाओं युक्तियां को एक तरह का हौसला प्रोवाइड करता है।

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