खेती-बाड़ी : प्याज की जैविक खेती

डा. राजेन्द्र कुकसाल9456590999 प्याज उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की रबी मौसम में उगाई जाने वाली एक मुख्य नगदी/व्यवसायिक फसल है। पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक रूप…

डा. राजेन्द्र कुकसाल
9456590999

प्याज उत्तराखंड के पहाड़ी क्षेत्रों की रबी मौसम में उगाई जाने वाली एक मुख्य नगदी/व्यवसायिक फसल है। पहाड़ी क्षेत्रों में पारंपरिक रूप से उगाई जाने वाली प्याज जैविक होने के साथ ही अधिक पौष्टिक, स्वादिष्ट व औषधीय गुणों से भरपूर होती है तथा लम्बे समय तक के लिए इसका भंडारण किया जा सकता है, जिस कारण बाजार में इसकी मांग अधिक रहती है।

जलवायु – समुद्र तल से 1500 मीटर तक की ऊंचाई तक इस की खेती की जा सकती है। ज्यादा गर्म व ठंड का इसकी उपज पर विपरीत प्रभाव पड़ता है।

भूमि का चयन – प्याज की खेती बलुई दोमट से लेकर चिकनी दोमट मिट्टी में की जा सकती है किन्तु जीवांश युक्त दोमट तथा बलुई दोमट भूमि जिसमें जल निकासी की उचित व्यवस्था हो उपयुक्त रहती है। मिट्टी का पी. एच. मान 6 से 7 के बीच होना चाहिए। यदि भूमि का पी. एच. मान 6 से कम है तो खेत में 3-5 किलोग्राम चूना खेत की तैयारी के समय मिट्टी में मिला लें। भूमि में जैविक कार्बन की मात्रा 0.8 प्रतिशत से कम होने पर 10 से 15 किलोग्राम जंगल/बड़े वृक्ष के नीचे की मिट्टी खुरच कर खेत में मिला दें साथ ही कम्पोस्ट/गोबर की खाद का अधिक प्रयोग करें।

भूमि की तैयारी – प्याज की अच्छी पैदावार के लिए खेत की तीन से चार बार अच्छी जुताई कर मिट्टी को भूरभूरी कर आवश्यकता अनुसार क्यारियां बना लें। क्यारियों में 5 से 6 कुंतल प्रति नाली की दर से सड़ी हुई गोबर की खाद को 20 से 30 दिन रोपाई से पहले देकर मिटटी में अच्छी तरह से मिला देना चाहिए। उन्नत किस्में एग्रीफाउण्ड लाईट रेड, पूसा रेड, एन.- 53, वी एल प्याज-3 नासिक रेड आदि प्रमुख है।

स्थानीय उन्नतिशील प्याज बीज को वरीयता दें। स्थानीय जलवायु व भूमि में रचे-बसे होने के कारण फसल पर कीट व व्याधियां कम लगती है, उपज की भंडारण छमता काफी अधिक होती है व उपज भी अधिक प्राप्त होती है। इसके विपरीत योजनाओं में विभागों द्वारा वितरित व बाजार से क्रय किए गए बीजों से उत्पादित फसल में कन्द तैयार होने से पहले ही पौधों पर फूल के डंठल निकल जाते हैं साथ ही फसल पर कीट व बीमारियों का प्रकोप अधिक होता है व उपज की भंडारण छमता काफी कम रहती है कन्द शीघ्र ही सड़ने लगते हैं।

प्याज की जैविक फसल से अधिक उपज लेने के लिए अपने क्षेत्र की प्रचलित और अधिक पैदावार देने वाली रोग रोधी किस्मों के बीज का चयन करना चाहिए जहां तक संभव हो सके जैविक प्रमाणित बीज ही उपयोग में लायें। वी एल प्याज- 3 किस्म के बीज को प्राथमिकता दें।

बीज बुआई का समय – मध्य अक्टूबर से नवम्बर
बीज की मात्रा – 200 ग्राम प्रति नाली
प्याज बीज में अंकुरण क्षमता एक बर्ष तक ही रहती है इसलिए उसी वर्ष में उत्पादित बीज ही बोयें।

पौध तैयार करना – बीज को ऊंची उठी हुई क्यारियों में बोयें क्यारियों की चौड़ाई 1 से 1.25 मीटर और लम्बाई सुविधानुसार रखते हैं।

रोगों से बचाने के लिए
ट्राइकोडर्मा की 5 ग्राम मात्रा प्रति लीटर पानी में मिलाकर प्रति वर्ग मीटर क्षेत्रफल की दर से इस प्रकार उपचारित करें कि ट्राइकोडर्मा का घोल 10-15 सेन्टीमीटर की गहराई तक पहुंच जाए। यह उपचार नर्सरी में बीज की बुआई से 3-4 दिन पहले करें। 200 ग्राम ट्राइकोडर्मा को 100 किलोग्राम पूर्ण रूप से सड़ी एवं नम गोबर की खाद में भली भांति मिला लें तथा उसे 10-15 दिनों तक के लिए छाया में पौलीथीन से ढक कर रखें इससे ट्राइकोडर्मा का गोबर में पूर्ण रूप से विकास हो जाता है।

अब ट्रायकोडर्मा में मिली गोबर की खाद को नर्सरी वेड़ में फैला कर 6 इंच मोटी पर्त बना लें तथा उस पर बीज की बुआई करें। इस विधि से पौध का विकास अच्छा होगा तथा उनमें आद्रगलन अथवा पौध गलन रोग का प्रकोप भी नहीं होगा। नर्सरी में बीज की बुआई से पूर्व 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा का हलका सा पानी मिलाकर पेस्ट बना लें तथा उस पेस्ट में एक किलो ग्राम बीज को अच्छी प्रकार मिला कर उपचारित करें। उपचारित बीज को छाया में सुखाकर कर नर्सरी में बुवाई करें। नर्सरी में बीज की बुआई से लगभग 24 घन्टे पूर्व बीज को उपचारित करें। इस उपचार से फसल को नुक्सान पहुंचाने वाली किसी भी बीमारी का प्रकोप नहीं होता है।

भूमि उपचार – फफूंदी जनित बीमारियों की रोकथाम हेतु एक किलोग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर को 25 किलोग्राम कम्पोस्ट (गोबर की सड़ी खाद) में मिलाकर एक सप्ताह तक छायादार स्थान पर रखकर उसे गीले बोरे से ढँकें ताकि ट्राइकोडर्मा के बीजाणु अंकुरित हो जाएँ। इस कम्पोस्ट को एक एकड़ (20 नाली) खेत में फैलाकर मिट्टी में मिला दें। साथ ही एक नाली में 40 किलो ग्राम की दर से नीम की खली का भी प्रयोग करें फिर बीज की बुवाई करें। बीज को 4 से 5 सेंटीमीटर की दूरी पर कतारों में बोना चाहिए। बीज की बोआई के बाद आधा सेंटीमीटर तक सड़ी व छनी हुई गोबर की खाद या मिट्टी से बीज पूर्णतया ढक देते हैं। इसके बाद फव्वारों से हल्की सिंचाई करके क्यारियों को सूखी घास से ढक देते हैं। जब बीज अच्छी तरह अंकुरित हो जाए तो घास को हटा देना चाहिए। रोज फव्वारे से हल्की सिंचाई करते रहना चाहिए। इस प्रकार 8 से 9 सप्ताह में पौध रोपाई के लिए तैयार हो जाती है।

रोपाई का समय – प्याज की रोपाई दिसम्बर से 15 जनवरी तक करते हैं।

रोपाई की दूरी – रोपाई करते समय कतारों की दूरी 15 सेंटीमीटर तथा कतार में पौधे की दूरी 10 सेंटीमीटर रखते हैं। पौध रोपण के समय खेत में नमी का होना आवश्यक है तथा रोपाई के तुरन्त बाद हल्की सिंचाई करें।

पौध उपचार : पौध रोपण से पहले प्रति लीटर पानी में 10 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर का घोल बनाकर पौधों की जडौं को कुछ समय भिगोएँ।

रोपाई के बाद 2-3 दिनों के अंतराल पर फसल की निगरानी करते रहें रोपाई के 8-10 दिनों बाद निगरानी के समय कटुवा कीट और व्हाइट ग्रब या अन्य कारणो से रोपित पौध के नष्ट होने पर उनके स्थान पर नया नयी पौध रोपित करें। यदि खेत में कटुआ कीट ओर व्हाइट ग्रब की सूंडियों दिखाई दें तो उन्हें एकत्रित कर नष्ट करें। फसल की निगरानी के समय यदि पौधों पर रोग का प्रकोप दिखाई दे तो शुरू की अवस्था में ग्रसित पत्तियों/पौधों को नष्ट कर दें इससे रोगौं का प्रकोप कम होगा।

सिचाई प्रबंधन – सर्दी में सिंचाई लगभग 8 से 10 दिन के अन्तर पर करते हैं तथा गर्मी में प्रति सप्ताह सिंचाई की आवश्यकता होती है। जिस समय कंद बढ़ रहे हों, उस समय सिंचाई जल्दी करते हैं। पानी की कमी के कारण कंद अच्छी तरह से नहीं बढ़ पाते है और इस तरह से पैदावार में कमी हो जाती है।

पोषण प्रबंधन – खडी फसल में 20 – 30 दिनों के अन्तराल पर 10 लीटर जीवामृत प्रति नाली की दर से डालते रहें।

निराई गुड़ाई – प्याज के पौधे की जड़े अपेक्षाकृत कम गहराई तक जाती है। इसलिए अधिक गहराई तक गुडाई नहीं करनी चाहिए। अच्छी फसल के लिए 3 से 4 बार खरपतवार निकलना आवश्यक होता है।

मुख्य कीट –

थ्रिप्स – ये कीट तापमान वृद्धि के साथ तेजी से बढ़ते है। इन कीटो द्वारा पत्तियों का रस चूसने से पत्तियों का रंग सफेद पड़ जाता है।

कीट नियंत्रण –
1.कीड़ों के अंडे, सूंडियों,प्यूपा तथा वयस्कों को इकट्ठा कर नष्ट करना।
2.प्रकाश प्रपंच की सहायता से रात को कीड़ों को आकर्षित कर तथा उन्हें नष्ट करते रहना चाहिए।
3.कीड़ों को आकर्षित करने के लिए फ्यूरामोन ट्रेप का प्रयोग करना व उन्हें नष्ट करना।
4.कट वर्म तथा फ्रुट फ्लाई से रोक थाम के लिए Bait trape चारा ट्रेप का प्रयोग करें।
5.हानिकारक कीट सफेद मक्खी तेला कीट के नियंत्रण लिए यलो स्टिकी ट्रेप का प्रयोग करें।
6.गो मूत्र का 5 – 6% का घोल बनाकर छिड़काव करें।
7.व्यूवेरिया वेसियाना 5 ग्राम एक लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें।
8.जैविक कीटनाशक के छिड़काव के10-12 दिनों बाद नीम पर आधारित कीटनाशकों जैसे निम्बीसिडीन निमारोन,इको नीम या बायो नीम में से किसी एक का 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर छिड़काव करें।

मुख्य रोग –
कमर तोड रोग- पौधे अंकुरण के समय व बाद में मर जाते हैं प्रभावित पौधे जमीन पर गिर जाते हैं।
डाउनी मिल्ड्यू- प्रभावित भागों पर चकत्ते पढ जाते हैं।

रोक थाम-
1.फसल की बुआई अच्छी जल निकास वाली भूमि पर करें।
2.फसल चक्र अपनायें।
3.भूमि का उपचार ट्रायकोडर्मा से करें।
4.खडी फसल की समय समय पर निगरानी करते रहें रोग ग्रस्त पौधे को शीघ्र हटा कर नष्ट कर दें।
5.प्रति लीटर पानी में 5 ग्राम ट्राइकोडर्मा पाउडर का घोल बनाकर पौधों पर 5-6 दिनों के अंतराल पर तीन छिड़काव करें व जड़ क्षेत्र को भिगोएँ।

खुदाई और प्याज को सुखाना –

प्याज की फसल तैयार होने पर पत्तियों का ऊपरी भाग सूखने लगता है उस समय पतियों को गर्दन (पतियों का भूमि की सतह का भाग) के पास से भूमि में गिरा देना चाहिए जिससे प्याज के कन्द ठीक से पक सकें तभी कन्दों की खुदाई करें।

प्याज की फसल को पत्ते पीले रंग में बदलने तथा गर्दन पतली होने तक पौधों को खेतों में सुखाना चाहिए फिर पर्याप्त वायुसंचार के साथ छाया में सुखाया जाना चाहिए। छाया में सुखाने से कन्दों की सूरज की तीखी किरणों से रक्षा होती है, रंग में सुधार आता है और बाहरी सतह सूख जाती है।

तेज धूप से प्याज की बाहरी सतह निकल जाती है, धूप से रंग खराब हो जाता है, और प्याज सिकुड़ते जाते है।

लम्बे समय तक भंडारण हेतु मध्यम आकार (50-80 मि.मी.) के स्वस्थ ,पतली गर्दन वाले समान रंग रूप के प्याज कन्दों का भंडारण के लिए चयन करें। मोटी गर्दन वाले कन्द भन्डारण में शीघ्र ही सड़ने लगते हैं या उनमें शीघ्र अंकुरण होने लगता है।

कन्दों का भंडारण ठन्डे, सूखे, अंन्धेरे तथा हवा दार स्थान जैसे बेसमेंट, कमरों की दुछत्ती, अंधेरे हवादार कमरों में वांस से बने स्ट्रक्चर में करें।

परम्परागत रूप से पहाड़ी क्षेत्रों में कृषक प्याज कन्दों को कमरों के ऊपर बनी हवा दार दुछत्ती ( ढैपर, टांड) में खुले में भंडारण करते हैं। जिसे समय समय पर पलटते रहते हैं साथ ही खराब सड़े गले व शीघ्र अंकुरित होने वाले प्याज कन्दों को तुरंत हटाते रहते हैं। भंडारण के लिए प्याज को 40-50 कि.ग्रा. की जूट (टाट) की जाली नुमा बोरियां, प्लास्टिक की जालीदार थैलीयां या प्लास्टिक, बांस, रिंगाल या भीमल की टोकरीयों में भी हवा दार कमरों जिनका तापमान 25-30 डिग्री सेल्सियस के बीच हो के अन्दर रख सकते हैं।

उपज – पौध रोपण के तीन से चार माह बाद फसल तैयार हो जाती है प्रति नाली 5-6 क्विंटल प्याज के कंदों की पैदावार हो जाती है।

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