कविता — वह सुबह जरूर आएगी

मई दिवस/अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर कवि एडवोकेट कवीन्द्र पन्त, अल्मोड़ा की कविता — आज नहीं तो कल वह सुबह जरूर आएगीजब धूप तेरे हिस्से की…

मई दिवस/अंतरराष्ट्रीय मजदूर दिवस पर कवि एडवोकेट कवीन्द्र पन्त, अल्मोड़ा की कविता —

आज नहीं तो कल वह सुबह जरूर आएगी
जब धूप तेरे हिस्से की तेरे आंगन पर मुस्कुराएगी
मुसकुराती आंखों में चमक तेरे हौसलों की नजर आएगी
और उम्मीद जहां भर की खिलते होठों पर मुस्कुराएगी।

तेरी उम्मीद, तेरी मेहनत एक दिन रंग जरूर लाएगी
इन मेहनतकश हाथों की चुभन बेकार नहीं जाएगी
लकीरें हाथों में बनीं अनगिन कहानी खुद तेरी बताएगी
और ये लाली हाथों की तेरी भविष्य तेरा बनाएगी।

होगा सूरज वही पर एक दिन सुबह नई आएगी
जब उस सुनने वाले तक तेरी भी आवाज पहुंच जाएगी
मेहनत तेरी तब तेरे भी काम आएगी
और अट्टालिका ऊंची खुद तेरे मेहनत का गीत सुनाएगी।

घोर झंझावातों में हिम्मत तेरी तुझे नया रास्ता दिखाएगी
मंजिल तेरी तेरे चेहरे पे खुशी बन झलक आएगी
सांझ अंधेरी बीतेगी एक किरण सुबह सुनहरी आएगी
और मेहनत तेरी तरक्की का एक नया गीत गुनगुनाएगी।

एक दिन दुनिया में वह बदलाव की घड़ी आएगी
जब बात बड़े ध्यान से मेहनतकश की सुनी जाएगी
महत्ता तब श्रम की दुनिया को समझ में आएगी
और ज़िंदगी श्रमिक की एक आयाम नया बनाएगी।

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