रानीखेत में मिला अत्यंत दुर्लभ प्रजाति का Rock eagle-owl, सुरक्षित रेस्क्यू

Rock eagle-owl or Bengal eagle-owl Rescue सीएनई रिपोर्टर, रानीखेत रानीखेत में एक अत्यंत दुर्लभ प्रजाति का उल्लू महाविधालय के निकटवर्ती जंगलो में घायल अवस्था में…

रानीखेत में मिला अत्यंत दुर्लभ प्रजाति का Rock eagle-owl, सुरक्षित रेस्क्यू

Rock eagle-owl or Bengal eagle-owl Rescue

सीएनई रिपोर्टर, रानीखेत

रानीखेत में एक अत्यंत दुर्लभ प्रजाति का उल्लू महाविधालय के निकटवर्ती जंगलो में घायल अवस्था में मिला। जिसको सबसे पहले प्राध्यापकों ने देखा और तुरन्त वन विभाग के सूचना दी। जिसके बाद वन विभाग की टीम में उल्लू का सुरक्षित रेस्क्यू किया।

जानकारी के अनुसार महाविद्यालय रानीखेत के प्राध्यापकों की मदद से वन विभाग ने एक दुर्लभ उल्लू को रेस्क्यू किया है। मामला शुक्रवार की रात 08 बजे का है। बताया जा रहा है कि महाविद्यालय से थोड़ी दूर जंगलों में एक अत्यंत दुर्लभ प्रजाति का उल्लू घायल अवस्था में मिला। यह उल्लू राजकीय महाविद्यालय रानीखेत में कार्यरत डॉ० दीपक उप्रेती तथा डॉ० शंकर कुमार को चिलियानौला के जंगल में मिला। उनके द्वारा जब वन विभाग के अधिकारियों से संपर्क किया गया तो प्रभागीय वनाधिकारी उमेश चंद्र तिवारी द्वारा तुरंत एक रेस्क्यू टीम उक्त उल्लू के रेस्क्यू हेतु मौके पर भेजी गई। फिर उल्लू का सुरक्षित रेस्क्यू कर लिया गया। वन विभाग के कार्मिकों के द्वारा अवगत कराया गया कि इस उल्लू को अल्मोड़ा स्थित रेस्क्यू सेंटर में स्वास्थ्य लाभ हेतु भेजा जाएगा और पूर्ण स्वस्थ होने पर इसे वापस जंगल में छोड़ दिया जाएगा।

यह भी उल्लेखनीय है कि इसमें महाविद्यालय की एनसीसी के सीनियर अंडर ऑफिसर चेतन मनराल द्वारा उक्त उल्लू के रेस्क्यू अभियान में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई गई। महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ० पुष्पेश पांडे द्वारा चेतन मनराल एवं स्टाफ के द्वारा पर्यावरण संरक्षण हेतु किए गए इस प्रयास की भूरी भूरी प्रशंसा की गई। इसके अतिरिक्त उनके द्वारा पर्यावरण संरक्षण में महाविद्यालय की सक्रीय भूमिका सुनिश्चित करने की प्रतिबद्धता भी व्यक्त की गई। प्रभागीय वनाधिकारी के द्वारा भी इस रेस्क्यू अभियान के सफल होने पर कार्मिकों का उत्साहवर्धन किया। चिलियानौला के समाजसेवी रिटायर्ड सूबेदार मेजर सुरेंद्र साह द्वारा भी वन विभाग एवं महाविद्यालय के कार्मिकों के द्वारा पर्यावरण संरक्षण के क्षेत्र में किए गए इस प्रयास की सराहना की गई।

रॉक-ईगल (Rock eagle-owl) के रूप में हुई पहचान

बरामद उल्लू की पहचान रॉक-ईगल (rock eagle-owl) नामक एक अत्यंत दुर्लभ प्रजाति के रूप में हुई है। शिकारियों द्वारा इसका शिकार किए जाने के कारण इस जीव को भारतीय वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 की चौथी अनुसूची तथा CITES के द्वितीय परिशिष्ट में शामिल किया गया है। यह उत्तराखंड में यह 1500 मीटर की ऊंचाई तक पाया जाता है। इसकी लंबाई 56 सेंटीमीटर तक होती है। यह सांप, चूहा, खरगोश सहित अन्य जंगली जीव जंतुओं के बच्चों का भी शिकार करता है। इसे हिरण के छोटे बच्चों का भी शिकार करते हुए देखा गया है। भारत में अंधविश्वासों एवं तंत्र मंत्र के कारण उल्लूओं का शिकार किया जाता है। उल्लूओं में यह प्रजाति सर्वाधिक शिकार होने वाली प्रजाति है। जिसके कारण इसके अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। वन विभाग द्वारा इसके शिकार की रोकथाम हेतु प्रभावी प्रयास किए जा रहे हैं। Rock Eagle Owl or Bengal Eagle Owl

यह भी जानिये –

यह परिंदा सिर्फ भारतीय उपमहाद्वीप में पाया जाता है। इसे रॉक ईगल उल्लू या बंगाल ईगल आउल के नाम से भी जाना जाता है। इसकी बड़ी-बड़ी आंखों से इसे आसानी से पहचाना जा सकता है। शरीर के ऊपरी हिस्सा गहरे रंग का होता है। शरीर पर भूरे, काले व सफेद रंग के पंख होते हैं। निचला व सामने का हिस्सा हल्के पीले रंग जिस पर गहरे रंग की धारियां होती हैं। नर व मादा एक जैसे दिखते हैं, लेकिन मादा आकार में नर से बड़ी होती है। यह पंछी निशाचर है, लेकिन जब संकट आता है तो यह दिन में भी इधर-उधर उड़ जाता है। यह जमीन की सतह के नजदीक ही उड़ता है। दोपहर के वक्त यह उल्लू झाड़ियों या चट्टानों या घने पेड़ों में छुपा रहता है।

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