साहस को सलाम: ‘रालमघाटी’ की 85 किमी पैदल यात्रा कर लौटे डा. मिराल

➡️ पेशे से शिक्षक अल्मोड़ा निवासी महेंद्र का ट्रैकिंग अभियान ➡️ नैसर्गिंक सौंदर्य व जैव विविधता की धनी रालम घाटी ➡️ प्राचीन व्यापारिक क्षेत्र को…

➡️ पेशे से शिक्षक अल्मोड़ा निवासी महेंद्र का ट्रैकिंग अभियान

➡️ नैसर्गिंक सौंदर्य व जैव विविधता की धनी रालम घाटी

➡️ प्राचीन व्यापारिक क्षेत्र को है विकास की दरकार

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा

रात्रि शिविर कलधाम के पास

रालम घाटी अत्यंत प्राकृतिक सौंदर्य एवं जैव विविधता की धनी है, ऐतिहासिक प्राचीन व्यापारिक केंद्र रही इस घाटी को पर्यटन की दृष्टि से विकास व सुविधाजनक बनाने की बेहद जरूरत है। रालम ग्लेशियर भी तेजी से पीछे की ओर खिसक रहा है। यह बात अल्मोड़ा निवासी डा. महेंद्र सिंह मिराल ने बताई है।

दरअसल, शिक्षक डा. मिराल ने ट्रेकिंग अभियान के तहत 85 किमी लंबी अध्ययन यात्रा कर लौटे हैं। उन्होंने ट्रेकिंग दल के साथ रालम ग्लेशियर/घाटी का सामाजिक, आर्थिक, पर्यटन एवं पर्यावरणीय दृष्टि अध्ययन करने के लिए मुनस्यारी से प्रस्थान किया और 04 जून से 12 जून 2022 के बीच यात्रा पूरी की। यहां पहुंचने पर उन्होंने सीएनई के साथ यात्रा अनुभव साझा किए।

अल्मोड़ा के नरसिंहबाड़ी मोहल्ले के सुमेरु कॉटेज निवासी शिक्षक डा. महेंद्र सिंह मिराल ने यात्रा का उल्लेख करते हुए बताया कि दल ने बुर्जी कोंग दर्रे (वर्तमान नाम बृज गंगा टाप) से 54 किमी रिल कोट का सफर तय किया। अभियान के तहत कुल 85 किमी पैदल यात्रा की गई। उन्होंने बताया कि मुनस्यारी से 4 जून 2022 को ट्रैकिंग अभियान दल उप जिला मजिस्ट्रेट मुनस्यारी से परमिट बनाकर रवाना हुआ। यह सफर पातू गांव, लिंगुरानी, किरथाम, मरझाली होते हुए रालम गांव पहुंचा। जो ऐतिहासिक रूप से प्राचीन व्यापारिक स्थल रहा है। इसी जगह से सीपू (दारमा) एवं समु्द्र सतह से 15112 फीट की ऊंचाई पर स्थित बुर्जी कांग (वर्तमान नाम ब्रिज गंगा टाप) दर्रे को पार कर तिब्बत से व्यापार करने का मुख्य मार्ग हुआ करता था। सीपू दर्रा, चौदास, व्यास को भी जोड़ता है। वर्तमान में यहां पर स्थानीय अप्रवासियों के खेत एवं मकान हैं। अप्रवासी लोग प्रति वर्ष गर्मियों मे अपने मवेशियों व परिवार के साथ यहां आते हैं और इन खेतों में कृषि कार्य एवं स्थानीय वन उपजों को इकठ्ठा करते हैं। ये लोग प्रतिवर्ष छह माह इस गांव में रहते हैं, लेकिन राशन कार्ड पर मिलने वाला राशन इन्हें पातु से ही अपने घोड़े, याक, खच्चर व जोबू से ही लाना पड़ता है।

इसके बाद डा. महेंद्र सिंह मिराल ने रालम ग्लेशियर में पहुंच कर ग्लेशियर की मॉनिटरिंग की। उन्होंने बताया कि ग्लेशियर तेजी से पीछे की ओर खिसक रहा है। अध्ययन दल रालम से खन्योर व बुर्जी कांग (ब्रिज गंगा) दर्रे को पार करते हुए भरमोट पड़ाव से रिलकोट गांव पहुंचा। यहां से बुगड़ियार पड़ाव से लीलम गांव पहुंचा। जहां से फिर मुनस्यारी तक जीप से आया। कुल मिलाकर यात्रा दो घाटियों रालम और जोहार के मिलम घटियों से गुजरी। इनमें रालम घाटी अत्यंत प्राकृतिक सौंदर्य एवं जैव विविधता की धनी है। रालम नदी के दोनों तरफ छोटी—छोटी सरिताएं व झरने अत्यंत मनमोहक हैं। जहां आज भी प्राचीन काल के व्यापार मार्ग के चिह्न और यात्री पड़ाव के निशां मौजूद हैं। ये ट्रेल अपने आप में अत्यंत आकर्षक है।

रालम नदी का उद्गम (ग्लेशियर)

उन्होंने बताया कि इस इलाके में पर्यटकों की आवाजाही नहीं के बराबर है और इस घाटी के विकास की जरूरत है। उन्होंने महसूस किया कि मार्ग के विभिन्न स्थानों पर यात्रियों के आराम करने के शेड एवं विश्राम स्थल बनाये जाने चाहिए, क्योंकि पातू से रालम तक करीब 36 किमी कोई आवास नहीं हैं omg और पातू से रालम गांव के पैदल मार्ग को लोक निर्माण विभाग को दिया जाना चाहिए, ताकि टूटे मार्ग को दुरुस्त कर यात्रियों की यात्रा को आसान बनाया जा सके। इस मार्ग को पर्यटन विभाग के मानचित्र में लाया जाना चाहिए और गांव को सौर ऊर्जा से रोशन किया जाना चाहिए। रालम से बुर्जी कांग दर्रे को पार करने वाले साहसिक अभियानों में तेजी लाने की जरूरत है। इस यात्रा में रालम गांव के ईश्वर सिंह नबियाल एवं प्रेम सागर द्वारा जानकारी देने में उन्हें सहयोग प्रदान किया गया।

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