Science News : तो क्या आने वाली है महाप्रलय, इंसानों से बदला लेगी प्रकृति !

✒️ खतरे को बहुत हल्के में ले रही इंसानी सभ्यता ✒️ IPCC और Science Journal ने एक बड़े खतरे की जारी की चेतावनी ✒️ ज्योतिषी…


✒️ खतरे को बहुत हल्के में ले रही इंसानी सभ्यता

✒️ IPCC और Science Journal ने एक बड़े खतरे की जारी की चेतावनी

✒️ ज्योतिषी नहीं वैज्ञानिक दे रहे बड़े खतरे का संकेत

Creative News Express (CNE)

सावधान, धरती महा जल प्रलय की ओर तेजी से अग्रसर होने लगी है। ग्लोबल वार्मिंग (GLOBAL WARMING) के चलते निकट भविष्य में एक महाविनाश का संकेत IPCC (Intergovernmental Panel on Climate Change) ने अपनी एक रिपोर्ट में दिए हैं। वहीं साइंस जर्नल ने भी विश्व को एक बड़े खतरे की प्रति आगाह किया है।

उल्लेखनीय है कि आई.पी.सी.सी. संयुक्त राष्ट्र का एक अंतर सरकारी निकाय है जो मानव प्रेरित जलवायु परिवर्तन पर विशेष और पुष्ट जानकारी देने का कार्य करता है। हाल में इस संस्था ने एक रिपोर्ट प्रकाशित की है। संस्था ने ‘जलवायु परिवर्तन 2022: प्रभाव, अनुकूलन और संवेदनशीलता’ विषय पर एक विस्तृत रिपोर्ट प्रकाशित कर विश्व को एक बड़े खतरे के प्रति सावधान किया है। बताया गया है कि जलवायु परिवर्तन से बड़े पैमाने पर ग्लेशियर पिघलने लगे हैं। पृथ्वी के दो सिरे दक्षिणी ध्रुव और उत्तरी ध्रुव में तापमान में अचानक आए बदलावा सभी रिकॉर्ड तोड़ चुका है। बीते साल मार्च माह में आर्कटिक पर मौसम में औसत 30 डिग्री सेल्सियस से अधिक की बढ़ोतरी हुई। इसके अलावा नॉर्वे और ग्रीनलैंड में रिकॉर्ड तोड़ गर्मी पड़ी। अंटार्कटिक और आर्कटिक, दोनों ध्रुवों पर तापमान में अप्रत्याशित वृद्धि पृथ्वी के लिए खतरे की घंटी है।

इधर शोधकर्ता बताते हैं कि तीसरे ध्रुव के रूप में विख्यात हिमायल भी अब पिघलने लगे हैं। 16वीं व 17वीं सदी से तुलना करने पर पता चला है कि वर्तमान सदी में हिमायल दस गुना रफ्तार से पिघलने लगे हैं। जिसका एक भयानक असर इस सदी के अंत तक देखा जायेगा।

ऐसे होगा धरती का अंत

विषय विशेषज्ञों ने लंबे शोध के बाद बताया कि जब उत्तरी, दक्षिणी ध्रुव व हिमायल पूरी तरह पिघल जायेंगे तो धरती का गुरुत्वाकर्षण भी शिथिल पड़ जायेगा। विश्व के तमाम बड़े शहर समुद्रों में समा जायेंगे और पेड़-पौधो, जीव-जंतुओं की कई प्रजातियां खत्म हो जायेगी।

साइंस जर्नल ने किये कुछ बडे़ खुलासे –

नवीनतम स्टडी में जो खुलासे हुए हैं, वह साइंस जर्नल में प्रकाशित हुए हैं। जिसमें कहा गया है कि वर्तमान में विश्व बड़ी प्राकृतिक आपदाओं को झेलेगा। इन आपदाओं में सबसे भयानक Antarctica और Greenland की बर्फ का पिघलना बताया जा रहा है। University of Exeter researcher Tim Lenton के अनुसार अब समूचे विश्व की शक्ल बदलने जा रही है। अंतरिक्ष से धरती पर जब देखा जा रहा है तो साफ दिख रहा है कि समुद्री जलस्तर बढ़ रहा है। जिससे वर्षावन सबसे पहले खत्म हो जायेंगे।

हालात तो अब इतने बदतर हो चुके हैं कि ग्लोबल वॉर्मिग को रोक पाना किसी के बस में नहीं रहा। समुद्र में आ रहे बदलाव निरंतर खतरे का संकेत देने लगे हैं। वर्षावनों का क्षेत्रफल भी सिमटने लगा है।

साइंस जर्नल के अनुसार वर्तमान में नौ ग्लोबल टिपिंग प्वाइंट्स धरती को प्रभावित करने जा रहे हैं। इसके अलावा सात अन्य स्थानीय टिपिंग प्वाइंट्स (Regional Tipping Points) भी हैं, जो सभी मिलकर पृथ्वी से जीवन का नामोनिशान मिटाने पर तुले हुए हैं। बता दें कि टिम लेंटन ने साल 2008 में भी ग्लोबल वार्मिंग के खतरे से विश्व को चेता दिया था, लेकिन दुनिया ने शायद Climate Change और Global Warming के खतरे को गम्भीरता से नहीं लिया। जिससे यह तय हो चुका है कि अब इंसानों से प्रकृति अपना बदला लेने जा रही है।

यह हैं कुछ खतरे के संकेत –

✒️ ग्रीनलैंड और अंटार्कटिका के हिमखंडों का पिघलना।

✒️ पर्माफ्रॉस्ट (permafrost) का खत्म होना। दरसल, permafrost ऐसी धरती होती है, जिसमें मिट्टी लगातार कम-से-कम दो सालों तक पानी जमने के तापमान (zero centigrade) से कम तापमान पर रही हो। इस प्रकार की धरती में मौजूद पानी अक्सर मिट्टी के साथ मिलकर उसे इतनी सख़्ती से जमा देता है कि मिट्टी भी सीमेंट या पत्थर जैसी कठोर हो जाती है। पर्माफ़्रोस्ट वाले स्थान अधिकतर पृथ्वी के ध्रुवों के पास ही होते हैं (जैसे कि साइबेरिया, ग्रीनलैंड व अलास्का), हालांकि कुछ ऊंचे पहाड़ी क्षेत्रों जैसे तिब्बत व लद्दाख़ में में भी पर्माफ़्रोस्ट मिलता है। मीडिया रिपोर्ट बता रही है कि यह पर्माफ़्रोस्ट अब खत्म होने के कगार पर हैं।

✒️ लैबराडोर सागर में कनवेक्शन की कमी।

✒️ उष्णकटिबंधीय कोरल रीफ्स का तेजी से मरना।

✒️ समुद्री जलस्तर का तेजी से बढ़ना।

वैज्ञानिकों के अनुसारी वर्तमान सदी के अंत तक काफी आपदाएं देखी जा सकती हैं। टिम लेंटन के अनुसार अगर अंटार्कटिका और ग्रीनलैंड के हिमखंड पूरी तरह से पिघल गये तो समुद्री जलस्तर में 10 मीटर की बढ़ोतरी होगी। जिसका अर्थ यह है कि जल स्तर करीब 32.80 फीट तक बढ़ जायेगा। जिसमें दुनिया के कई बड़े देश आधे से ज्यादा डूब जायेंगे और कुछ का तो नामोनिशान ही मिट जायेगा।

यह है महाप्रलय का सच –

हालांकि कई बार कुछ रिपोर्ट मीडिया में महाप्रलय के दावों को लेकर प्रकाशित हुई, लेकिन फर्क सिर्फ इतना है कि पहले कुछ मीडिया घरानों ने ज्योतिषों, पंडितों की गणना को आधार बनाकर रिपोर्ट प्रकाशित की थी, लेकन इस बार मामला अलग है। अब वैज्ञानिक महाप्रलय की चेतावनी जारी कर रहे हैं। वैज्ञानिक बताते हैं कि करीब 26 करोड़ साल पहले धरती पर महाप्रलय हुई थी। तब पृथ्वी से समस्त जीव-जंतुओं का विनाश हो गया था। इस बीच अमरीका की न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर मिशेल रेम्पिनो ने एक शोध प्रस्तुत करते हुए एक बार फिर ऐसी ही आशंका जाहिर की है। उनका कहना है कि तापमान जिस तरह से बढ़ रहा है, उससे यही लगता है कि एक युग कभी भी समाप्त हो जायेगा। वहीं भूवैज्ञानिक की महाप्रलय की थ्योरी पर भी गौर करने की जरूरत है। उनके अनुसार इससे पहले भी कई बार महाप्रलय हुआ है। 44.3 करोड़ साल पहले, 37 करोड़ वर्ष पूर्व, 25.2 करोड़ वर्ष पहले, 20.1 करोड़ साल पहले और 6.6 करोड़ वर्ष पहले महाप्रलय हुआ था। भूवैज्ञानिक के मुताबिक 27.2 करोड़ से लेकर 26 करोड़ वर्ष के बाद महाप्रलय की तारीख आती है और यह समय अब पूरा होने वाला है।

नासा ने किया है महाप्रलय की बात का खंडन

हालांकि प्रमुख स्पेस ऐजेंसी नासा का इस मामले में मतभेद है। नासा का कहना है कि हालात भले ही कितने विपरीत क्यों न हों, लेकिन महाप्रलय अभी नहीं आने वाला है। पृथ्वी फिलहाल कई अरब साल तक सलामत रहेगी। हालांकि नासा ने भी ग्लोबल वार्मिंग के खतरे को बड़ा भयानक माना है। हालांकि, नासा ने महाप्रलय की बात का खंडन साल 2012 को लेकर किया था। तब महाप्रलय को लेकर काफी अर्नगर्ल रिपोर्ट प्रकाशित हो रही थीं, किंतु वर्तमान में नासा का इस बात के पक्ष या विपक्ष में कोई अधिकारिक बयान नहीं आया है।

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