पंतनगर : श्रम कानूनों के बदलाव को लेकर गोष्ठी का आयोजन, पूंजीपरस्त श्रम संहिताओं की प्रतियां जलाकर किया विरोध

पंतनगर। इंकलाबी मजदूर केन्द्र एवं ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर द्वारा रविवार को संयुक्त रूप से ब्लाक पंतनगर में मोदी सरकार के पूंजीपरस्त श्रम संहिताओं…

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पंतनगर। इंकलाबी मजदूर केन्द्र एवं ठेका मजदूर कल्याण समिति पंतनगर द्वारा रविवार को संयुक्त रूप से ब्लाक पंतनगर में मोदी सरकार के पूंजीपरस्त श्रम संहिताओं के विरोध विषय पर गोष्ठी की गई और मजदूर विरोधी श्रम संहिताओं की प्रतियां जलाकर विरोध किया गया।

गोष्ठी में वक्ताओं ने कहा कि मोदी सरकार द्वारा आखिरकार तीन श्रम संहिताओं- व्यावसायिक सुरक्षा और स्वास्थ्य कोड, औद्योगिक संबंध संहिता और सामाजिक सुरक्षा संहिता आनन्-फानन में लोकसभा और राज्यसभा में पास करा मजदूरों पर हमले का आगाज कर दिया गया है। वेतन संहिता (वेज कोड) पहले ही कानून की शक्ल ले लिया है। 44 श्रम कानूनों को खत्म कर लाई जाने वाली ये श्रम संहिताएं मजदूरों को पूर्ण दासता की स्थिति में धकेल देंगी। 300 मजदूरों की संख्या वाले संस्थानों को सरकार की अनुमति के बिना मज़दूरों को निकालने का अधिकार होगा।

हड़तालों को निष्प्रभावी बनाने का प्रयास किया गया है। हड़ताल से 60 दिन पूर्व नोटिस देना होगा अन्यथा हड़ताल गैरकानूनी मानी जायेगी। हड़ताल गैर कानूनी घोषित होने पर पचास हजार रुपये से दो लाख रुपये का जुर्माना लगाया जा सकता है तथा 6 माह की सजा का प्रावधान है। गैरकानूनी हड़ताल के लिए आथिर्क सहयोग करने वाले को भी इतना ही जुर्माना तथा सजा लगाया जाएगा। मालिकों को सजा के प्रावधान को खत्म कर महज कुछ जुर्माना तक सीमित कर दिया है। “फिक्स टर्म एम्प्लॉयमेंट” को मंजूरी दे स्थाई रोजगार पर हमला किया गया है। श्रम विभाग को मुख्ययत: फैसिलिटेटर की भूमिका तक सीमित करने के उपाय किए गए हैं। कुल मिलाकर मजदूरों ने अंग्रेजी सरकार से संघर्ष और अनेकों कुर्बानियों की बदौलत हासिल किए श्रम कानूनों को खत्म कर मजदूरों को 150 साल पीछे अधिकार विहीनता की स्थिति में धकेल दिया है।

मोदी-शाह नेतृत्व में फासीवादी मंसूबे पाले केन्द्र सरकार ने देशी-विदेशी पूंजीपतियों के अर्से पुरानी मांग को पूरा कर वफादारी का नमूना पेश कर दिया है। कोरोना काल में जनता को डराकर आपदा को अवसर के तौर पर इस्तेमाल करते हुए केन्द्र सरकार ने खूंखार भेडियों की तरह छात्रों नौजवानों पर हमले के बाद गरीब व छोटे किसानों पर हमला किया और अब मजदूरों पर हमला कर दिया है।

वक्ताओं ने कहा कि लोक सभा में जब मजदूरों के विरुद्ध इन श्रम संहिता को पारित किया जा रहा था। उस समय विपक्ष संसद से नदारद था। विपक्षी पार्टियों द्वारा किसान बिल के विरोध में जो दिखावटी हंगामा किया गया पर श्रम संहिताओं के लिए उन्होंने इतनी भी जहमत नहीं उठाई। दिखावटी शोर शराबा तक नहीं किया। साफ है कि मजदूरों के शोषण उत्पीड़न की खुली छूट में पूरी संसद एक साथ खड़ी है। नामधारी कम्युनिस्ट पाटियों के नेताओं ने जुबानी या आनुष्ठानिक विरोध के अलावा कुछ भी नहीं किया। उनकी भूमिका अब इतनी ही रह गई है।

मुख्य विपक्षी पार्टी कांग्रेस ने तो आनुष्ठानिक विरोध की भी जरूरत महसूस नहीं की। मजदूरों पर हमले के दौरान सभी चुनावबाज पार्टियां एक साथ खड़ी दिखाई दीं। और इसी तरह इनके मजदूर फेडरेशनों और इनकी यूनियनों का रवैया रहा। आखिर ऐसा हो भी क्यू नहीं? उदारीकरण-निजीकरण-वैश्वीकरण की नीतियों पर इनमें सहमति जो है। 1998 में गठित द्वितीय श्रम आयोग की मजदूर विरोधी सिफारिशों को टुकड़ों में लागू तो पहले ही किया जा रहा था। राज्य सरकारों ने इन्हें अपने स्तर पर पहले ही लागू करना शुरू कर दिया था।

सभी वक्ताओं ने कहा कि आज जब कांग्रेस, स‌पा, बसपा, सरकारी कम्यूनिस्ट पार्टियां और उनके मजदूर संगठन इस मजदूर विरोधी बदलाव प्रखर विरोध नहीं कर रहे हैं। बल्कि मोदी सरकार को श्रम कानून खत्म करने का मौका दें रहे हैं। ऐसे में मजदूर वर्ग की वर्गीय विचारधारा के आधार पर क्रांतिकारी मजदूर संगठन में संगठित होकर निर्णायक संघर्ष से ही इन हमलों का मूकावला किया जा सकता है।

गोष्ठी का संचालन अभिलाख सिंह ने किया कार्यक्रम में रमेश कुमार, सुरेश, पृथ्वीराज गौतम, माधव, रामानंद यादव, रंजीत, संतोष, बहादुर ,सुभाष, भरत यादव, मोहित, मनोज कुमार व अभिलाख सिंह आदि शामिल रहे।

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