हल्द्वानी न्यूज: मजदूर विरोधी नीतियों के खिलाफ ट्रेड यूनियनों ने राष्ट्रव्यापी विरोध व्यक्त किया

जगमोहन रौतेला हल्द्वानी। विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में बेरहम बदलावों के खिलाफ लगभग सभी केंद्रीय श्रम संगठनों और कर्मचारियों के स्वतंत्र राष्ट्रीय महासंघों के…

जगमोहन रौतेला

हल्द्वानी। विभिन्न राज्यों में श्रम कानूनों में बेरहम बदलावों के खिलाफ लगभग सभी केंद्रीय श्रम संगठनों और कर्मचारियों के स्वतंत्र राष्ट्रीय महासंघों के संयुक्त मंच द्वारा आज 22 मई को श्रमिकों के राष्ट्रव्यापी विरोध प्रदर्शनों के आह्वान के समर्थन में “ऐक्टू” और “माले” द्वारा विरोध दिवस मनाया गया।
लॉकडाउन नियमों का पालन करते हुए विरोध दिवस के माध्यम से भाकपा (माले) राज्य सचिव राजा बहुगुणा ने कहा कि, “लॉकडाउन की स्थिति में सबसे अधिक पीड़ित, देश के मेहनतकश लोगों द्वारा की जा रही,  जरूरतमंद परिवारों को सीधे सार्वभौमिक भोजन सहायता और नकद सहायता उपलब्ध कराने की मांगों की अनदेखी करते हुए, केंद्र की मोदी सरकार और भाजपा की राज्य सरकारों द्वारा श्रम कानूनों में किये जा रहे परिवर्तन देश में बड़े पैमाने पर निजीकरण और मजदूरों की बदहाली के दौर की शुरुआत करेंगें।”  


उन्होंने कहा कि, “लॉकडाउन अवधि से पहले और उसके दौरान किए गए कार्यों के लिए अधिकांश श्रमिकों  को मजदूरी से वंचित कर दिया गया है, लाखों लोगों को रोजगार से बाहर निकाल दिया गया है यहां तक कि सरकार के निर्देशों का हठधर्मिता पूर्ण उल्लंघन कर उन्हें उनके घरों से बेदखल कर दिया दिया गया है। लेकिन सरकार इस सब पर आपराधिक चुप्पी साधे हुए है। क्या मजदूरों की इस बदहाली को मोदी सरकार द्वारा प्रश्रय दिया जा रहा है?”


ऐक्टू के प्रदेश महामंत्री के के बोरा ने कहा कि, “लाखों मज़दूर सड़कों और जंगलों से होकर कई सौ मील तक सड़कों पर, रेलवे की पटरियों पर चलते रहे हैं। भूख, थकावट और दुर्घटनाओं के कारण रास्ते में कई बहुमूल्य जीवन ख़त्म गए हैं। इस प्रक्रिया में सबसे ज्यादा पीड़ित महिलाएं और बच्चे हुए हैं। इस विशाल मानवीय समस्या से निपटने में केंद्र और राज्यों की सरकारों में संवेदनशीलता और समन्वय की भारी कमी है।” उन्होंने कहा कि, “यह स्थिति मोदी सरकार द्वारा संसद, राज्य सरकारों, राजनीतिक दलों और उन लोगों को विश्वास में लिए बिना अचानक निर्णय लेने के कारण उत्पन्न हुई है, जो कोरोना से लड़ने में महत्वपूर्ण थे।”
  ‘माले’ नैनीताल जिला सचिव डॉ कैलाश पाण्डेय ने कहा कि, “सरकार द्वारा श्रम कानूनों के स्थगन और परिवर्तन से मज़दूरों को पूँजी के हित में किसी भी अधिकार या गारंटी के बिना, बगैर किसी सुरक्षा और स्वास्थ्य सेवा, सामाजिक सुरक्षा और सभी मानवीय गरिमाओं को दरकिनार कर केवल उन लोगों को लाभ पहुंचाने के लिए जिनका उद्देश्य श्रमिकों के खून और पसीने की लागत पर केवल अपने लाभ को अधिकतम करना है , बंधुआ मज़दूरी के रूप में इस्तेमाल किया जायेगा। यह मानव अधिकारों के मूल सिद्धांतों के खिलाफ है।”
किसान महासभा के जिलाध्यक्ष बहादुर सिंह जंगी ने कहा कि, ” 20 लाख करोड़ रुपये के पैकेज में जिन लोगों के रोजगार व आजीविका को लॉक डाउन के चलते छीन लिया गया है, उनके भोजन और अन्य जरुरी आवश्यकताओं के लिए कुछ भी ठोस नहीं है। कुल मिलाकर किसानों और मजदूरों की पूर्णतः उपेक्षा की गई है। यह शहरी और ग्रामीण अर्थव्यवस्था दोनों में, कई करोड़ कामकाजी आबादी को कोई राहत देने के बजाय, वास्तविक रूप से विदेशी और घरेलू बड़े कॉर्पोरेट और व्यावसायिक घरानों के स्थायी सशक्तिकरण की योजना है ।”
विरोध के माध्यम से मांग की गई कि, योजनागत  और स्वच्छता श्रमिकों,  स्वास्थ्य क्षेत्र, कोरोना के खिलाफ जंग में   फ्रंट लाइन श्रमिकों जैसे सबसे निचले पायदान पर कार्यरत लोगों की उपेक्षा बंद की जाय, फंसे हुए श्रमिकों को उनके घरों तक सुरक्षित पहुंचाने, सभी को भोजन उपलब्ध कराने, बिना किसी शर्त के राशन वितरण के सार्वभौमिक कवरेज के लिए, पूरे लॉक डाउन अवधि के लिए सभी को मजदूरी सुनिश्चित करने, असंगठित श्रमबल (पंजीकृत या अपंजीकृत या स्वरोजगार) सहित सभी गैर-आयकर कर दाता परिवारों को कम से कम तीन महीने यानी अप्रैल, मई और जून के लिए रु 7500 के नकद हस्तांतरण की व्यवस्था के रूप में तत्काल राहत की व्यवस्था हो, केंद्र सरकार और सीपीएसई के कर्मचारियों के महंगाई भत्ते को फ्रीज करने, पेंशनरों को महंगाई राहत फ्रीज करने, स्वीकृत पदों को समाप्त करने, श्रम कानूनों में किसी भी बदलाव / शिथिलता पर पूर्ण रोक लगाई जाए, इंटर स्टेट माइग्रेंट वर्कर्स (रोजगार और सेवा की शर्तों का विनियमन) अधिनियम 1979 को मजबूत बनाया जाय, एक मजबूत और जवाबदेह कार्यान्वयन तंत्र के साथ मजदूरी, सामाजिक सुरक्षा, आवास और कल्याण की जरूरतों पर पर्याप्त सुरक्षात्मक प्रावधान किये जाय, कारपोरेटाइजेशन, आउटसोर्सिंग, पीपीपी, उदारीकृत एफडीआई आदि जैसे बहु-प्रचारित मार्गों   के माध्यम से सार्वजानिक क्षेत्र के उपक्रमों और सरकारी विभागों के थोक निजीकरण की नीति को रोका जाय, काम के घंटे 8 से बढ़ाकर 12 घंटे करने का प्रयास बंद किया जाय।
आज के विरोध में राजा बहुगुणा, के के बोरा, बहादुर सिंह जंगी, डॉ कैलाश पाण्डेय, ललित मटियाली, मोहन सिंह, बबलू सिंह, भुवन, उत्तम, हेमा, कमला, रमा,गंगा, सुधा, अलका, कुसुम, राधा रानी,भास्कर, निर्मला देवी, आदि शामिल रहे।

Leave a Reply

Your email address will not be published. Required fields are marked *