आंखन देखी : Dubai में रह रहे उत्तराखंडी और Covid-19 से जंग ! पढ़िये, Uttarakhand Association United Arab Emirates के संस्थापक देवेन्द्र कोरंगा द्वारा C.N.E. को भेजी यह विशेष रिपोर्ट…..

संक्षिप्त परिचय, देवेंद्र कोरंगा :कौसानी के समीप लौबांज गांव निवासी देवेन्द्र कोरंगा ने मुंबई विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद चर्च गेट के.सी.…

संक्षिप्त परिचय, देवेंद्र कोरंगा :
कौसानी के समीप लौबांज गांव निवासी देवेन्द्र कोरंगा ने मुंबई विश्वविद्यालय से उच्च शिक्षा प्राप्त करने के बाद चर्च गेट के.सी. कालेज से मैनेजमेंट में पोस्ट ग्रेजुएसन किया और 3 जुलाई 1993 को दुबई चले गये। यहां एक नामी कम्पनी में उन्हें मार्केटिंग और सेल्स प्रबन्धक के रूप में नियुक्ति मिली। दो साल तक वह इस कम्पनी में ओमान के मस्कत में रहे। इसके बाद से नियमित तौर पर दुबई में तैनात हैं। उनके पिता मुम्बई में ही पुलिस इन्सपैक्टर थे। देवेन्द्र कोेरंगा का बचपन गांव में बीता, लेकिन प्राईमरी के बाद की पढाई मुम्बई में हुई। इसके बावजूद पहाड़ के साथ उनका गहरा लगाव रहा है। इसी कारण उन्होंने दुबई में “उत्तराखण्ड ऐसोसिएसन संयुक्त अरब अमीरात” की स्थापना की। पहाड़ में रहने वाले जरूरतमन्द लोगों तथा दुबई में प्रवासी बेरोजगारों की मदद करना, पर्वतीय संस्कृति को प्रसारित करना उनकी संस्था का मुख्य ध्येय है। दुबई में कोरोेना के कारण प्रभावित पर्वतीय प्रवासियों की स्थिति को लेकर देवेन्द्र कोरंगा के अुनभव उनके ही शब्दों में हम यहां प्रस्तुत कर रहे हैं —

05 लाख भारतीय प्रवासियों ने लौटने का कराया पंजीरण, 500 से अधिक उत्तराखंडी —
जैसा कि आप जानते हैं कि कोरोना महामारी के कारण दुनिया भर में न जाने कितने लोगों ने अपनों को खोया है, न जाने कितने लोग रोजगार जाने के कारण अपने परिवारों के भरण पोषण के लिये परेशान हैं। दुनिया भर में उद्योगों पर भी इसकी मार पड़ी है। लाक डाउन, क्वारन्टाइन तथा सोसल डिस्टेंसिंग जैसी पाबंदियों के कारण लोग तमाम तरह की समस्याओं से जूझ रहे हैं। सवाल जहां तक यू.ए.ई. अर्थात संयुक्त अरब अमीरात के देशों का है, यहां कोरोना के कारण जनहानि तथा संक्रमण कम होने की मुख्य वजह यहां की चाक-चौबंद व्यवस्था है। काूनन व्यवस्था ठीक होने के कारण नियमों का कड़ाई से पालन होता है। सरकार की चुस्त व्यवस्था के कारण यहां जनजीवन पटरी पर लौटने लगा है। धीरे-धीरे हालात सामान्य होने की उम्मीद है, लेकिन अन्य भारतीय प्रवासियों की तरह उत्तराखण्डी प्रवासियों के रोजगार पर भी कोरोना की मार पड़ी है। नौकरी जाने से लोग बेबस हैं। भारतीय मूल के पांच लाख लोगों ने मात्र इसी वजह से वापस वतन लौटने के लिये दूतावास में पंजीकरण कराया था। उत्तराखण्ड के पांच सौ से अधिक लोग वापस आने की तैयारी में थे।

वंदे भारत योजना के तहत स्वदेश जाने में करी मदद
यहां के 70 प्रतिशत लोग होटलों में कार्यरत हैं और इस बीमारी के कारण होटल उद्योग पर ही सबसे बड़ी मार पड़ी है। वापस लौटने के लिये लोगों को भारी दिक्कतों का सामना करना पड़ा है। दुबई के भारतीय प्रवासियों में 35 प्रतिशत से अधिक लोग दक्षिण भारत के हैं। इसी कारण भारत सरकार ने विदेशों से प्रवासियों को लाने के लिये जो ‘वंदे भारत’ योजना शुरू की उसकी अधिकतर फ्लाइटें दक्षिण भारत को गई। उत्तराखण्ड ऐसोसिएसन ने लगभग 70 लोगों को इस योजना के तहत सामान्य फ्लाइट तथा अन्य लोगों के ग्रुुप टिकटों के माध्यम से वापस भेजने में मदद की। वंदे भारत मिशन में इससे अधिक लोगों को लाभ दिना पाना सम्भव नहीं था। यहां के प्रवासी भारत में लाक डाउन खुलने तथा यहां से भारत के लिये फ्लाइटें शुरू होेने की उम्मीद के साथ तीन-चार माह तक इन्तजार करते रहे।

प्रवासी उत्तराखंडियों को करना पड़ा भारी दिक्कतों का सामना
12 जुलाई से दुबई की सरकार ने दिल्ली के लिये एमिरेट्स एअर लाइन्स, एअर अरबिया, फ्लाई दुबई सहित कई अन्य कम्पनियों की उड़ानों को अनुमति दी। जिससे उत्तराखण्ड के 500 से अधिक लोगों को वापस भेजने में हम मदद कर सके। नौकरी जाने के कारण प्रवासी उत्तराखण्डियों को तमाम तरह की दिक्क्तों का सामाना करन पड़ा। हम लोगों ने इसके लिये एक टीम का गठन किया। जो भी जरूरतमन्द लोग हमारे सम्पर्क में आ सके हमने उनकी मांग पर खाद्यान्न, बिजली से चलने वाली सिकड़ी, मोबाइल रिचार्ज तथा अन्य चीजें दिलाई। जिनके पास आवास नहीं था, उन्हें अन्य लोगों के साथ शिफ्ट कराया। अचानक पैदा हुये इस संकट के कारण कई लोग बीजा की समस्या से जूझ रहे थे। उन्हें वकील की व्यवस्था करके कानूनी मदद दिलाई। पौड़ी, टिहरी, उत्तरकाशी नैनीताल, पिथौरागढ और चम्पावत के कुछ लोगों के पास हवाई जहाज के किराये की राशि नहीं थी या कम थी। उन्हें आर्थिक सहायता प्रदान की। कुछ लोग अस्वस्थ थे, उन्हें वापस भिजवाने के लिये दूतावास की मदद ली।

इन लोगों ने की मदद
इस कार्य में श्रीकान्त नौटियाल, संजय थापा, नवीन जोशी, जय प्रकाश कोठारी, रमेश चन्द्र जोशी, गम्भीर भंडारी, शंकर साहू, गोविन्द फत्र्याल, गीता चन्दोला, मातबर नेगी, चन्द्र प्रकाश प्रभु, हेमू नयाल, गौतम चैधरी, महेन्द्र बड़ोनी, साउथ के पलनी वेलू, भारतीय दूतावास और यू.ए.ई. सरकार ने सहयोग किया। हमारी संस्था आरम्भ से ही यह सब करती आ रही है, जितना सम्भव होगा आगे भी करेगी।

पहाड़ों में होता रोजकार तो परदेश क्यों जाते ?
बावजूद इसके, बुनियादी सवाल अभी भी अपनी जगह पर है। हमारे पहाड़ पर रोजगार होता तो इतनी दूर आने की लाचारी ही क्यों होती। अब अकेले दुबई से ही पांच सौ से अधिक लोग बेरोजगार होकर अपनी मातृभमि लौटे हैं। अब उनके पास कमाई का कोई जरिया नहीं है, अधिकतर लोग एक रूपया भी साथ नहीं ला सके। पहाड़ में सरकारी स्कूलों की हालत दयनीय है, अस्पतालों के भवन खाली पड़े हैं। लोग खेती करें तो सूअर, बन्दर और अन्य जंगली जानवरों का आतंक है। अन्य रोजगार कुछ है नहीं। बिजली और मोबाइल नेटवर्क की हालत भी ठीक नहीं हैं। अब देश—विदेश से हजारों लोगों के अचानक बेरोजगार होकर वापस लौटने से पहाड़ पर भारी दबाव पड़ना लाजिमी है। सरकार की ओर से पलायन रोकने और कोरोना के कारण लौटे लोगों को रोजगार से जोड़ने के वादे किये जा रहे हैं, और लोगों की नजर भी अब सरकार पर है। लोगों को रोजगार नहीं मिला तो कुछ ही समय बाद स्थिति विकट रूप ले लेगी। लोगों के परिवार भूखमरी के कगार पर आ जायेंगे। सरकार को शीघ्र ही रोजगार सृजन के प्रयास करने होंगे, लघु उद्योगों और व्यावसायों के माध्यम से लोगों को आजीविका देने के साथ ही उन बुनियादी सवालों का भी हल खोजना होगा। जिनके चलते लोग पलायन करने को विवश होते हैं। सरकार को जिला स्तर पर कैटरिंग इंस्टीट्यूट तथा आईटीआई खोलकर युवाओं को दक्ष बनाना चाहिये तभी वह बाहर जाकर भी अच्छी नौकरी या व्यावसाय कर सकते हैं।

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