हिमांशु के पेपर मैशे में सजीव हुई उत्तराखंडी संस्कृति ! बाज़ार में जबरदस्त डिमांड

पेपर मैशे खोल सकता है रोजगार के नये आयाम बाजार में कलाकृति की कीमत 20 हजार से 02 लाख तक अल्मोड़ा के दशहरा महोत्सव से…

पेपर मैशे खोल सकता है रोजगार के नये आयाम

बाजार में कलाकृति की कीमत 20 हजार से 02 लाख तक

अल्मोड़ा के दशहरा महोत्सव से मिली बड़ी प्रेरणा

— दीपक मनराल —

This paper mesh work of Himanshu can open new doors of employment and give jobs to thousands of unemployed.

Success story : अपनी तूलिका व रंगों के मिश्रण से उत्तराखंडी समाज, प्रकृति, संस्कृति, तीज—त्योहार व उत्सवों के सजीव चित्र उकेरने वाले युवा FreeLancer Artist हिमांशु गुप्ता इन दिनों कार्ड बोर्ड के सहारे नव प्रयोग कर रहे हैं, जिनको विविध मंचों से व्यापक सराहना मिल रही है। बड़ी बात यह है कि उनका यह प्रयोग आने वाले समय में हजारों बेरोजगारों के लिए रोजगार के नये आयाम खोल ‘आत्मनिर्भर भारत’ के लक्ष्य को पूरा करने में मील का पत्थर साबित हो सकता है।

उल्लेखनीय है कि मूल रूप से अल्मोड़ा के जौहरी बाजार निवासी हिमांशु गुप्ता रुद्रपुर के RAN Public School में फाइन आर्टस के शिक्षक (Fine Arts Teacher) हैं। सांस्कृतिक नगरी अल्मोड़ा में पले—बड़े होने के कारण यहां की गहरी छाप उनके मन—मस्तिष्क में है। वह यहां के प्रसिद्ध दशहरा महोत्सव के दौरान पु​तला निर्माण से भी जुड़े रहे। उन्होंने अल्मोड़ा में Tattoo Addiction नाम का अपना संस्थान भी खोला था। यदि यह कहा जाये कि अल्मोड़ा में टैटू आर्ट की शुरूआत हिमांशु ने की थी, तो अतिशियोक्ति नहीं होगी। इसके अलावा उन्होंने अब तक विभिन्न राजनैतिक हस्तियों, फिल्मी व लोक कलाकारों, संगीतज्ञों सहित तमाम लोगों के दर्जनों शानदार पोर्टेट (portrait) बनाये हैं। उन्होंने अपनी कला की बदौलत विभिन्न संस्थाओं द्वारा तमाम पुरस्कारों से नवाजा गया है। इन दिनों हिमांशु कुमाउनी संस्कृति व परंपरा को लेकर एक अलग किस्म का काम कर रहे हैं।

दरअसल हिमांशु द्वारा इन दिनों ‘हमारा प्यारा अल्मोड़ा’ की थीम को ध्यान में रखकर, ऐतिहासिक अल्मोड़ा नगर के कलात्मक भवनों, पर्वतीय नारियों की कार्डबोर्ड की मदद से सुंदर, आक​र्षक व सजीव पेपर हाउस एवं कार्डबोर्ड पेपर मूर्तियों का निर्माण कर रहे हैं। उनकी यह कार्डबोर्ड पेपर मूर्तियों का कांसेप्ट निश्चित रूप से काफी यूनिक है। वैसे इस कला को पेपर मैशे Papier-mâché नाम से जाना जाता है।

जानिये क्या है पेपर मेसी/पेपर मैशे (Papier mache)‌ ?

Papier-mâché is a mixture of pieces of paper and glue. It can be made, while still damp, into objects such as bowls, ornaments, and models.

वस्तुत: पेपर मैशे (Papier mache)‌ का शब्दार्थ है मसला अथवा कटा हुआ कागज़। यह एक तहर की मिश्रित सामग्री है, जिसमें प्रायः लुगदी कागज़ का उपयोग किया जाता है। इसकी ductility and strength को बढ़ाने के लिए मिट्टी, गोंद, स्टार्च या अन्य वस्तुओं का प्रयोग किया जाता है। पेपर मैशे सबसे पहले ईरान से कश्मीर में आया। वर्तमान में इससे कई सजावटी वस्तुओं जैसे ट्रे, बॉक्स, बुक कवर, लैंप, पेन केस, खिलौने, फूलदान आदि को बनाया जाता है और उन्हें फिर जटिल रूप से रंगा जाता है। स्थानीय त्यौहारों में खिलौने बनाने के लिए (To make toys at local festivals) इसका प्रयोग उड़ीसा, बिहार और उत्तर प्रदेश में बड़े पैमाने पर होता है। यह कला मुगल काल के दौरान विकसित हुई और अब भी बड़ी संख्या में देश भर में प्रचारित हो रही है।

इस कला को उत्तराखंड में नया आयाम देने का काम इन दिनों आर्टिस्ट हिमांशु गुप्ता व उनकी टीम (Artist Himanshu Gupta and his team) रुद्रपुर में कर रही है। हिमांशु ने बताया कि पेपर मैशे में वह कुमाउनी परिधानों के वास्तविक वस्त्र real clothes, कृत्रिम आभूषण artificial jewelry आदि का प्रयोग कर रहे है, जिसमें आने वाला खर्चा लगने वाले मैटेरियल पर निर्भर करता है। इस कार्य में उनकी पत्नी कुनीका बिष्ट का उन्हें भरपूर सहयोग मिल रहा है। वहीं विधालय के बच्चे भी मदद कर रहे हैं। हिमांशु ने बताया ​कि इस तरह का काम करने का विचार उन्हें तब आया, जब देश भर में इन दिनों आत्मनिर्भर भारत की मुहिम चल रही है। हिमांशु का मानना है कि मौजूदा बाजार में इस तरह की कलाकृतियों की बहुत डिमांड है। (There is a lot of demand for such artefacts in the current market.) जिस कारण उन्होंने तय किया कि अल्मोड़ा में जिस तरह रावण परिवार के पुतलों का निर्माण होता है, उसी तरह का कुछ नव प्रयोग किया जाये।

Paper mash can open new dimensions of employment

20 हजार से 02 लाख तक की हैं यह अद्भुत कृतियां

हिमांशु अपने पेपर मैशे वर्क के जरिए न केवल नाम कमा रहे हैं, बल्कि आने वाले समय में उन्हें इसके अच्छे दाम भी मिलेंगे। महज चार—छह कलाकृतियों को फेसबुक में डालने के साथ उन्हें इसके आर्डर भी मिलने शुरू हो गये हैं। हिमांशु ने बताया कि इन कृतियों masterpieces की कीमत फिलहाल उन्होंने 20 हजार से 02 लाख रूपये तक रखी है। फिलहाल अभी तक उन्होंने तीन पर्वतीय महिलाओं, 03 कुमाउनी झरोखों व छोलिया नृतकों के पुतलों का निर्माण किया है। इसके अलावा पर्वतीय मेलों, गढ़वाली—जौनसारी पुतलों का भी वह निर्माण करेंगे। यह नहीं वन्य जीवों के मुखाकृतियों facial features of wildlife के भी पेपरमैसे बनाये जायेंगे। ज्ञात रहे कि वन्य जीवों का पुराने जमाने में शिकार कर उनके चेहरों को दीवारों में टांगने की परंपरा थी। अब इसका स्थान यह पेपरमैसे ले सकेंगे। फिलहाल हिमांशु गुप्ता के रूद्रपुर स्टूडियो में कई बड़े प्रोजेक्ट पर कार्य चल रहा है। हिमांशु की टीम में रूद्रांश शर्मा, उज्जवल जोशी, मयंक अग्रवाल, ओजस्विता भारद्वाज, रिया बालिया, हरमन बब्बर, प्रियांशु जोशी आदि आरएएन पब्लिक स्कूल रूद्रपुर के छात्र—छात्राएं भी शामिल हैं।

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