ALMORA BIG NEWS: पत्नी के हत्यारोपी को नहीं मिली जमानत

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ायहां सत्र न्यायाधीश मलिक मजहर सुल्तान की अदालत ने पत्नी के हत्यारोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी। हत्यारोपी ने अपने अधिवक्ता के…

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सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
यहां सत्र न्यायाधीश मलिक मजहर सुल्तान की अदालत ने पत्नी के हत्यारोपी की जमानत अर्जी खारिज कर दी। हत्यारोपी ने अपने अधिवक्ता के जरिये जमानत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया, लेकिन जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी पूरन सिंह कैड़ा ने जमानत का विरोध किया।
मामले के अनुसार वादिनी सरस्वती देवी पत्नी स्व. कृष्णानन्द जोशी, निवासी ग्राम घेटी, तहसील गरूड़, जिला बागेश्वर ने 2 नवंबर 2020 को राजस्व क्षेत्र दूनागिरी, जिला अल्मोड़ा में एक तहरीर दी। जिसमें बताया कि दयाकृष्ण जोशी पुत्र स्व. नारायण दत्त जोशी, निवासी ग्राम उल्लिणा, पोस्ट बिन्ता, तहसील द्वाराहाट, जिला अल्मोड़ा ने वादिनी की विवाहिता पुत्री बीना जोशी की हत्या कर दी। इस तहरीर के आधार पर राजस्व उप निरीक्षक ने हत्यारोपी दयाकृष्ण के विरूद्ध धारा-302 ता. हि. के तहत मुकदमा पंजीकृत किया और 3 नवंबर 2020 को वादिनी की निशानदेही पर घटनास्थल का निरीक्षण किया और आरोपी से गहन पूछताछ की। आरोपी ने बताया कि उसके और उसकी पत्नी बीना के बीच झगड़ा हुआ, तो उसने लकड़ी व कुल्हाड़ी से प्रहार कर बीना की हत्या कर दी। राजस्व पुलिस ने हत्यारोपी को गिरफतार कर जेल भेज दिया गया।
सोमवार को हत्यारोपी ने अपने अधिवक्ता के माध्यम से सत्र न्यायाधीश मलिक मजहर सुल्तान की अदालत में जमानत जमानत प्रार्थना पत्र प्रस्तुत किया। जिस पर जिला शासकीय अधिवक्ता फौजदारी पूरन सिंह कैड़ा ने घोर विरोध किया और न्यायालय को बताया कि हत्यारोपी ने बड़ी निर्दयता से पत्नी की हत्या की है। विवेचनात्मक कार्यवाही में हत्या किये जाने के पर्याप्त साक्ष्य पाए गए हैं। हत्या से पहले भी दयाकृष्ण जोशी द्वारा मृतका के साथ मारपीट की गई है और उसे प्रताड़ित किया गया है। उन्होंने अदालत को बताया कि आरोपी ने जघन्य अपराध कारित किया है। उन्होंने कहा कि यदि हत्यारोपी को जमानत पर रिहा किया जाता है, तो वह गवाहों एवं अपने परिजनों को नुकसान पहुंचा सकता है अथवा गवाहों को प्रभावित कर सकता है, क्योंकि हत्यारोपी हिसंक प्रवृति का बताया गया है। उसके द्वारा जमानत मिलने पर फिर जघन्य अपराध कारित करने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता है। ऐसे में हत्यारोपी को जमानत का कोई औचित्य नहीं है। इसके बाद पत्रावली में मौजूद साक्ष्यों का परिशीलन करते हुए न्यायालय ने जमानत प्रार्थना पत्र को खारिज कर दिया।

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