ग्रामीण क्षेत्र के 04 खिलाड़ी खो-खो की राष्ट्रीय प्रतियोगिता के लिए चयनित

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा ✒️ 04 players from rural area selected for national competition of kho-kho ✒️ Know some interesting facts about Kho-Kho game and its…

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा

✒️ 04 players from rural area selected for national competition of kho-kho

✒️ Know some interesting facts about Kho-Kho game and its history

राजकीय इंटर कालेज गुरडाबाज के चार छात्र-छात्राओं का चयन राष्ट्रीय स्तर की खो-खो प्रतियोगिता के लिए हुआ है। बच्चों की इस उपलब्धि पर विद्यायल परिवार में हर्ष का माहौल है।

राइंका गुरडाबाज के व्यायाम शिक्षक राजेंद्र नयाल ने बताया कि गीता गैड़ा, पूर्णिमा बिष्ट, हर्षित बिष्ट, कमल सिंह का 32 वीं सब जूनियर अंडर 14 नेशनल खो-खो प्रतियोगिता महाराष्ट्र सतारा के लिए चयन हुआ है। यह प्रतियोगिता 28 अक्टूबर से 01 नवंबर तक चलेगी। चयनित छात्र-छात्राओं को प्रधानाचार्य त्रिवेंद्र सिंह, व्यायाम शिक्षक राजेंद्र नयाल, अंतरराष्ट्रीय खिलाड़ी व व्यायाम प्रशिक्षक धौलादेवी हरीश सिंह चौहान के अलावा विद्यालय के शिक्षकों व अभिभावकों ने शुभकामना देते हुए उनके उज्जवल भविष्य की कामना की है।

जानिये खो-खो खेल के बारे में कुछ रोचक तथ्य और इसका इतिहास –

✒️ खो-खो खेल विशुद्ध भारतीय खेल है और यह हजारों सालों से किसी न किसी रूप में खेला जाता रहा है।

✒️ खो-खो खेल की शुरुआत को लेकर निश्चित तौर पर कुछ नहीं कहा जा सकता है, लेकिन ऐसा माना जाता है यह खेल महाभारत कालीन है।

✒️ महाभारत युग में कौरव और पांडवों के बीच भीषण युद्ध के दौरान चक्रव्यूह की रचना, जो 18 दिनों तक चली उसे हम वर्तमान में खो-खो खेल के रूप में देखते हैं।

✒️ महाभारत के चक्रव्यूह और अभेद्य युद्ध व्यूह रचना, जिसने पांडवों को संकट में डाल दिया था और अभिमन्यू को घेर लिया गया था, ऐसा ही खेल वर्तमान में खो-खो है।

✒️ द्रोणाचार्य पुरस्कार खेल प्रशिक्षकों के लिए भारत का सर्वोच्च पुरस्कार है, संयोग से इसे चक्रव्यूह की रचना करने वाले गुरु द्रोणाचार्य के नाम पर ही रखा गया है।

✒️ हालांकि विशेषज्ञ मानते हैं कि खो-खो की उत्पत्ति महाराष्ट्र से हुई थी।

✒️ प्राचीन काल में इसे रथों पर खेला जाता था और इसे ‘राथेरा’ नाम से जाना जाता रहा है।

✒️ कुछ विद्वानों के अनुसार यह खेल 1914 में हुए प्रथम विश्व युद्ध के समय से हुआ।

✒️ पुणे के डेक्कन जिमखाना क्लब में सबसे पहले खो-खो के लिए औपचारिक नियम और कानून बने थे।

✒️ कबड्डी और मलखंब जैसे अन्य स्वदेशी भारतीय खेलों के साथ खो-खो का प्रदर्शन 1936 के बर्लिन ओलंपिक के दौरान हुआ था।

✒️ पहली बार अखिल भारतीय खो-खो चैंपियनशिप 1959-60 में आंध्र प्रदेश के विजयवाड़ा में हुई थी, जबकि महिलाओं के लिए राष्ट्रीय चैंपियनशिप 1960-61 में महाराष्ट्र के कोल्हापुर में आयोजित हुई।

✒️ खो-खो को नई दिल्ली में हुए 1982 के एशियाई खेलों के दौरान प्रदर्शनी गेम के तौर पर पेश किया गया था और 1996 में कोलकाता में प्रथम बार एशियाई चैंपियनशिप हुई थी।

✒️ यह गुवाहाटी में दक्षिण एशियाई खेल 2016 में मेडल गेम के तौर पर शामिल किया गया था।

✒️ वर्तमान में लगभग 25 देशों में राष्ट्रीय खो-खो टीमे हैं।

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