खेती बाड़ी : मिर्च व शिमला मिर्च का पत्ता मोड़क रोग

डा० राजेंद्र कुकसाल9456590999 पत्ता मोड़क रोग मिर्च व शिमला मिर्च फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली बीमारी है, जिसे कुकड़ा या चुरड़ा-मुरड़ा रोग के…

डा० राजेंद्र कुकसाल
9456590999

पत्ता मोड़क रोग मिर्च व शिमला मिर्च फसल को सबसे ज्यादा नुकसान पहुंचाने वाली बीमारी है, जिसे कुकड़ा या चुरड़ा-मुरड़ा रोग के नाम से भी जाना जाता है।
वास्तव में यह रोग नहीं है बल्कि यह थ्रिप्स /तेला व माइट कीट के प्रकोप के कारण होता है। थ्रिप्स के प्रकोप के कारण मिर्च की पत्तियां ऊपर की ओर मुड़ कर नाव का आकार धारण कर लेती है जबकि
माइट के प्रभाव से भी पत्तियां मुड़ जाती है किन्तु ये नीचे की ओर मुड़ती है। मिर्च में थ्रिप्स व माइट दोनों कीटों के प्रकोप से पत्तियां विचित्र रूप से मुड़ी हुई दिखाई देती है।


थ्रिप्स thrips –
यह कीट बहुत छोटे,पतले पीले तिनके जैसे रंग के होते हैं। वयस्क के पंख झालर दार व घूसर रंग के होते हैं। गर्मी व कम बर्षात में इनकी आवादी बहुत तेजी से बढ़ती है। एक बर्ष में थ्रिप्स की 12-15 जीवन काल पूरे हो जाते हैं। अंडे से वयस्क बनने में इस कीट को मात्र 20-30 दिन लगते हैं।
यह कीट, पौधे की पत्तियों एवं अन्य मुलायम भागों से रस चूसते हैं। इस कीट का प्रकोप पर्याय: पौध रोपाई के 2-3 सप्ताह बाद शुरू हो जाता है। फूल लगते समय इस कीट का प्रकोप अधिक होता है। पत्तियों सिकुड़ जाती है तथा ऊपर की ओर मुड़ जाती है एवं नाव या दोने का आकार ले लेती है।थ्रिप्स द्वारा छति ग्रस्त पौधों को देखने पर मोजेक रोग का भ्रम होता है। इसके प्रभाव से पौधे की वृद्धि रुक जाती है तथा उपज पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
माइक -पीली माइट / मकड़ी के वयस्क अंडाकार के लाल या हरे पीले रंग के 0.4 से 0.5 मि.मी. लम्बे बालों वाले एवं आठ टांगों वाले होते है।
प्रथम अवस्था में 3 जोड़ी पैर होते है तथा रंग गुलाबी होता है। द्वितीय तथा तृतीय अवस्था में 4 जोड़ी पैर होते है। सभी अवस्था ये पत्तियों की निचली सतह पर सफेद महीन पारदर्शी झिल्ली के नीचे पाई जाती है।
इस कीट के अंडे आकार में गोल, सफेद रंग तथा 0.1 मि.मी. की गोलाई लिये होते है।
इसका प्रकोप मिर्च की फसल पर सामान्यत: जून-जुलाई माह में विशेष कर कम वर्षा की स्थिति में ज्यादातर देखने को मिलता है।
वयस्क तथा शिशु दोनों अवस्थाएं पौधों के तना, शाखा, फल्लियाँ तथा पत्तियों का रस चूसकर हानि पहुंचाते है।
प्रकोपित भागों पर पतली, सफेद एवं पारदर्शी झिल्ली पड़ी होती है। रस चूसने के कारण पत्तियों पर सफेद कत्थाई धब्बे बनतें है तथा पत्तियाँ प्रकोप के कारण मुरझा जाती है।
मादा वयस्क अलग-अलग करके पत्ती के निचले सतह पर लगभग 60-65 अंडे देती है। 4-7 दिनों में अण्डों से शिशु निकलते है और पौधों का रस चूसने लगते है। 6-10 दिनों के बाद शिशु से वयस्क बनते है। शिशु और वयस्क एक महीन पारदर्शक जाले से ढकी रहती है। इस कीट के प्रकोप से पत्तियां नीचे की ओर मुड़ जाती है।
रोक थाम –

  1. खडी फसल का समय-समय पर निरीक्षण करें पौधों पर कीड़ों के अंडे, शिशु व वयस्क यदि दिखाई दें तो पौधे के उस भाग को हटा कर एक पौलीथीन की थैली में इकट्ठा कर गड्ढे में गहरा दबा कर नष्ट करें।
  2. थ्रिप्स नियंत्रण हेतु पीली एवं नीली स्टिकी ट्रैप का प्रयोग करें। स्टिकी ट्रेप पतली सी चिपचिपी शीट होती है। स्टिकी ट्रैप शीट पर कीट आकर चिपक जाते हैं तथा बाद में मर जाते हैं। जिसके बाद वह फसल को नुकसान नहीं पहुंचा पाते हैं। स्टिकी ट्रैप बाजार में बनी बनाई आती हैं और इन्हें घर पर भी बनाया जा सकता है। इसे टीन, प्लास्टिक और दफ्ती की शीट से बनाया जा सकता है। इसे बनाने के लिए डेढ़ फीट लम्बा और एक फीट चौड़ा कार्ड बोर्ड, हार्ड बोर्ड या टीन का टुकड़ा लें। उन पर नीला व पीला चमकदार रंग लगा दें रंग सूखने पर उनपर ग्रीस , अरंडी तेल की पतली सतह लगा दें।
    इन ट्रैपों को पौधे से 30 – 50 सेमी ऊंचाई पर लगाएं। यह ऊंचाई थ्रिप्स के उड़ने के रास्ते में आएगी। टीन, हार्ड बोर्ड और प्लास्टिक की शीट साफ करके बार-बार इस्तेमाल किया जा सकता है। जबकि दफ्ती और गत्ते से बने ट्रैप एक दो बार इस्तेमाल के बाद खराब हो जाते हैं। ट्रैप को साफ करने के लिए उसे गर्म पानी से साफ करें और वापस फिर से ग्रीस लाग कर खेत में टांग सकते हैं। एक नाली हेतु दो ट्रेप प्रयोग करें।
  3. एक चम्मच प्रिल,निर्मा लिक्युड या कोई भी डिटर्जेन्ट/ साबुन , प्रति दो लीटर पानी की दर से घोल बनाकर कर स्प्रे मशीन की तेज धार से कीटों से ग्रसित भाग पर छिड़काव करें। तीन दिनों के अन्तराल पर दो तीन बार छिड़काव करें।ध्यान रहे , छिड़काव से पहले घोल को किसी घास वाले पौधे पर छिड़काव करें यदि यह पौधा तीन चार घंटे बाद मुरझाने लगे तो घोल में कुछ पानी मिला कर घोल को हल्का कर लें।
  4. एक लीटर , सात आठ दिन पुरानी छांच/ मट्ठा को छः लीटर पानी में घोल बनाकर तीन चार दिनों के अन्तराल पर दो तीन छिड़काव करने पर भी कीटों पर नियंत्रण किया जा सकता है।
    5.एक किलो लकडी की राख में दस मिली लीटर मिट्टी का तेल मिलाएं । मिट्टी का तेल मिली हुई लकड़ी की राख प्रति नाली 500 ग्राम की दर से कीटों से ग्रसित खड़ी फसल में बुरकें।
    पौधों पर राख बुरकने हेतु राख को मारकीन या धोती के कपड़े में बांध कर पोटली बना लें, एक हाथ से पोटली को कस्स कर पकड़े तथा दूसरे हाथ से डन्डे से पोटली को पीटें जिससे राख ग्रसित पौधों पर बराबर मात्रा में पढ़ती रहे।
  5. एक लीटर, आठ दस दिन पुराना गौ मूत्र का छः लीटर पानी में घोल बनाकर छिड़काव करें। गौमूत्र जितना पुराना होगा उतना ही फायदेमंद होगा। 10 दिनों के अन्तराल पर फसल पर गौमूत्र का छिड़काव करते रहें।
    7 . नीम पर आधारित कीटनाशकों जैसे निम्बीसिडीन निमारोन,इको नीम या बायो नीम में से किसी एक का 5 मिली लीटर प्रति लीटर पानी में मिलाकर सांयंकाल में या सूर्योदय से एक दो घंटे पहले पौधों पर छिड़काव करें। घोल में प्रिल,निर्मा, सैम्पू या डिटर्जेंट मिलाने पर दवा अधिक प्रभावी होती है।
    रासायनिक नियंत्रण-
    यदि थ्रिप्स या माइट का नियंत्रण जैविक विधियों से नहीं हो पा रहा हो तो कीट नियंत्रण हेतु रासायनिक कीटनाशकों का प्रयोग करें।
    थ्रिप्स के नियंत्रण हेतु, इमीडा क्लोप्रिड या मैलाथियान एक चम्मच दवा तीन लिटर पानी में घोल बनाकर सात दिनों के अंतराल पर छिड़काव करें। एक ही दवा का प्रयोग बार बार न करें।
    माइट के नियंत्रण हेतु माइटी साइड/ एक्री साइड का छिड़काव करें। प्रोफेनोफास या ट्राइजोफोस दवा का छिड़काव करें एक ही दवा बार बार प्रयोग न करें।

लेखक
बरिष्ठ सलाहकार ( क़ृषि/ उद्यान )एकीकृत आजीविका सहयोग परियोजना ILSP.

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