सीएनई रिपोर्टर
उत्तराखंड की समस्त 70 विधानसभा सीटों पर मतदान प्रक्रिया संपन्न होने के बाद एक नया शोर मचा हुआ है। सबसे ज्यादा हल्ला भाजपा—कांग्रेस ने मचाया हुआ है, जो न केवल खुलकर अपनी जीत के दावे कर रही है, बल्कि मुख्यमंत्री और भावी कार्यकाल को लेकर भी चर्चाएं शुरू कर दी गई हैं।
उल्लेखनीय है कि प्रदेश में मतदान प्रक्रिया संपन्न होने के बाद हार—जीत का आकलन एक आम बात है, लेकिन जब चुनाव आयोग ने एक्जिट पोल पर प्रतिबंध लगाने के अलावा अचार संहिता के ढेरों आदेशों से जहां मीडिया का मुंह बंद कर रखा है, वहीं राजनैतिक दलों में बिना किसी भरोसेमंद जानकारी अपनी—अपनी जीत के दावे करने की होड़ मची हुई है।
इन दिनों सोशल मीडिया में सबसे अधिक सक्रिय प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस दिख रहा है। जहां कार्यकर्ताओं द्वारा अपने—अपने प्रत्याशियों के जीत के दावे करने के साथ ही उत्तराखंड प्रदेश में बहुमत से जीत का दावा किया जा रहा है। इन दावों का नेतृत्व स्वयं पूर्व सीएम हरीश रावत कर रहे हैं, जो विगत कई दिनों से बनने जा रही सरकार को लेकर किए जा रहे बयानों को लेकर खासे चर्चा में हैं। अब सवाल यह उठता है कि जब प्रदेश में मतदान प्रक्रिया संपन्न हो चुकी है तो राजनैतिक दलों में जीत के दावों की इतनी होड़ क्यों ? 10 मार्च को होने जा रही मतगणना का भी इंतजार नहीं। तो आपको बता दें कि राजनैतिक जानकारों का मानना है कि यह सब यूपी और पंजाब चुनाव को प्रभावित करने के लिए किया जा रहा है।
फिलहाल उत्तराखंड में मतदान निपटने के बाद भाजपा—कांग्रेस की नजर पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश पर टिकी है। ऐसा माना जा रहा है कि जीत का काल्पनिक महल या हव्वा खड़ा कर उत्तर प्रदेश के चुनाव को प्रभावित किया जायेगा। उत्तराखंड विधानसभा की 65.37 प्रतिशत जनता ने बड़े उत्साह से मतदान कर अपने—अपने प्रत्याशियों की जीत सुश्चित कर दी है। यह भी तय हो चुका है कि प्रदेश में किसकी सरकार बनेगी, लेकिन इसके लिए 632 प्रत्याशियों को मतगणना तक इंतजार करना जरूरी है।
गौरतलब बात यह भी है कि वोटिंग के बाद से अपनी सुनिश्चित जीत का दावा करने वाले कुछ नेता व उनके कार्यकर्ताओं के अब धीरे—धीरे सुर बदलने लगे हैं। बूथों व विभिन्न स्तरों से अब फीडबैक सामने आये हैं, उससे जीत का जश्न मनाने को आतुर कुछ नेताओं के चेहरों की हवाईयां उड़ने लगी हैं। आपको बता दें कि चुनाव में बूथ स्तर से मिलने वाला फीडबैक भी चुनाव में काफी अहमियत रखता है। बूथों से मिल रहे संकेतों ने कई प्रत्याशियों को निराशा कर दिया है। निश्चित रूप से कहा जा सकता है कि जीत का शोर मचाने से उत्तर प्रदेश का चुनाव प्रभावित होने वाला नहीं है, बल्कि इससे सिर्फ कुंठाओं को जन्म मिलेगा।