अनुकरणीय, देखिये वीडियो : इन महिलाओं ने उठाया विलुप्तप्राय हो चुकी कुमाउनी संस्कृति को पुर्नजीवित करने का बेड़ा, चैत्र माह में घर-घर जाकर कर रहीं झोड़ा गायन

— नैनीताल/सुयालबाड़ी से अनूप सिंह जीना की रिपोर्ट विलुप्त हो रही कुमाउनी संस्कृति को बचाने के लिए विभिन्न संगठनों, स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा किए जा…

— नैनीताल/सुयालबाड़ी से अनूप सिंह जीना की रिपोर्ट

विलुप्त हो रही कुमाउनी संस्कृति को बचाने के लिए विभिन्न संगठनों, स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा किए जा रहे कार्य भले ही निरंतर समाचारों की सुर्खियां बन रहे हैं, लेकिन हकीकत तो यह है धरातल पर इसका यथोचित असर देखने में नही आ रहा है।
आज हमारी नौजवान पीढ़ी अपनी भाषा—संस्कृति—पहचान से किस तरह दूर होती जा रही है यह सर्वविदित ही है। हालात ऐसे हैं कि विशिष्ट कुमाउनी परंपरा को कायम रखना तो दूर आधुनिक पीढ़ी अपनी भाषा में बात तक करने में हिचकती है।

ईजा बाज्यू बने ‘मम्मी—डैडी’, आदर के सभी रिश्ते ‘अंकल—आंटी’

ईजा बाज्यू का स्थान ‘मम्मी—डैडी’ या ‘मॉम—डैड’ ने ले लिया है, आमा—बूब ‘दादा—दादी’ तथा ददा—भुली ​’ब्रो और सिस’ में बदल गये हैं। वहीं अन्य सभी आदर के​ रिश्ते अंकल—आंटी में तब्दील हो चुके हैं।

आशा की जगी एक नई किरण
निराशा के इस दौर में भी एक नई आशा की किरण लेकर नैनीताल जनपद अंतर्गत ग्राम सभा सिरसा की महिलाएं सामने आई हैं। महिलाओं का यह समूह संस्कृति को जीवित रखने के लिए जो प्रयास कर रहा है उसकी अन्यत्र मिसाल मिलना बेहद कठिन है। यहां महिलाओं का एक समूह चैत्र मास में झोड़ा गायन की सदियों पुरानी कुमाउनी प​रंपरा को न सिर्फ स्वयं निभा रही हैं, बल्कि घर—घर जाकर झोड़ा गायन कर अन्य को भी संस्कृति को पुर्नजीवित करने के लिए प्रेरित कर रही हैं। गौरतलब है कि इन महिलाओं में 40 से लेकर 60 तक की आयुवर्गी महिलाएं हैं। बुढ़ापे की दहलीज में कदम रखने वाली महिलाएं तो विशेष रूप से संस्कृति को बचाने के लिए आगे आई हैं।

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अभियान में शामिल हैं यह महिलाएं

संस्कृति की पुर्नस्थापना के इस अभियान में जुटी महिलाओं में हंसी जीना, मुन्नी जीना, ग्राम प्रधान इंदु जीना, कमला देवी, गीता देवी, हरूली देवी, शांति देवी, हंसा देवी, शोभा, लीला, आशा, नंदी, मीरा, धना, दिल्ली से आई जैतुली देवी, प्रभा, शोभा, मुन्नी, प्रेमा बिष्ट आदि शामिल हैं।

जानिये चैत्र मास का महत्व
हिन्दू कैलेंडर के अनुसार इस साल चैत्र मास की शुरुआत 29 मार्च से हो गई है, जो कि 27 अप्रैल तक चलेगा। चैत्र महीने को ही हिन्दू कैलेंडर का पहला महीना भी माना जाता है क्योंकि चैत्र महीने के शुक्ल पक्ष में ही हिन्दू के नए वर्ष की शुरुआत होती है। चूंकि चैत्र महीने के आखिरी दिन यानी कि पूर्णिमा को चंद्रमा चित्रा नक्षत्र में होता है इसलिए इस महीने का नाम चैत्र रखा गया। चैत्र महीने में हिन्दू धर्म के कई व्रत और त्योहार के पड़ने की वजह से इस महीने को भक्ति और संयम का महीना भी कहा जाता है।

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जानिये क्या होता है लोक नृत्य झोड़ा
झोड़ा सामूहिक नृत्य-गीत है। वृताकार घेरे में एक—दूसरे की कमर अथवा कन्धों में हाथ डाले सभी मन्द, सन्तुलित पद-संचालन से यह नृत्य गीत प्रारम्भ होता है। वृत के बीच में खड़ा हुड़का-वादक गीत की पहली पंक्ति को गाते हुआ नाचता है, जिसे सभी नर्तक—नर्तकियां दुहराते हैं, गीत गाते और नाचते हैं। झोडों में उत्सव या मेले से सम्बन्धित देवता विशेष की स्तुति भी नृत्यगीत भावनाएं व्यंजित होती हैं। सामयिक झोड़ों में चारों ओर के जीवन-जगत पर प्रकाश डाला जाता है। ‘झोड़े’ कई प्रकार के होते हैं, परन्तु मेलों में मुख्यत: प्रेम प्रधान झोड़ों की प्रमुखता रहती है ।

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