Almora News : अभी नहीं चेती सरकार तो बार—बार आपदाओं को झेलेगा उत्तराखंड, प्राकृतिक नही मानव जनित है चमोली त्रासदी, उलोवा की प्रेस वार्ता

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा उत्तराखंड लोक वाहिनी ने कहा कि सरकारों व पूंजपतियों की सांठगांठ से निजि लाभ के लिए उत्तराखंड में बन रहे बड़े बांधों…

सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा

उत्तराखंड लोक वाहिनी ने कहा कि सरकारों व पूंजपतियों की सांठगांठ से निजि लाभ के लिए उत्तराखंड में बन रहे बड़े बांधों का निर्माण प्राकृतिक आपदाओं का मुख्य जनक है। चमोली जनपद में आई आपदा इसका एक ताजा उदाहरण है, जिसे सरकार प्राकृतिक आपदा बता अपनी जिम्मेदारियों से मुकरने का प्रयास कर रही है। उलोवा शुरू से ही बड़े बांधों के निर्माण के खिलाफ संघर्ष करती रही है। उन्होंने उलोवा के संस्थापक स्व. डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट के आंदोलनों की याद दिलाते हुए कहा कि जब उलोवा गढ़वाल में आंदोलनरत थी, तब सरकारें उन्हें विकास विरोधी ठहरा रही थी, लेकिन बाद में उत्तराखंड ने इन बांधों के कारण आपदाओं को झेला।
संगठन के प्रवक्ता दयाकृष्ण कांडपाल ने कहा कि उलावा ने 2000 से 2011 तक गढ़वाल के विभिन्न क्षेत्रों में बड़े आंदोलन के खिलाफ डॉ. शमशेर सिंह बिष्ट के नेतृत्व में आंदोलन किया था। उन्होंने कहा कि सुरंग आधारित बांधों का निर्माण ही प्राकृतिक आपदा का जनक है। इससे हिमालय के पहाड़ कमजोर हो रहे हैं और निरंतर खतरा उत्पन्न हो रहा है। तत्कालीन पर्यावरण मंत्री जयराम ने भी इस तथ्य को स्वीकार किया था। गढ़वाल मंडल के चमोली जनपद के ऋणि में ग्लेशियर पिघलने की यह घटना दरअसल बिन बारिश के आने वाली बाढ़ है, जो मानव जनित आपदा है। उलोवा कुमाऊं क्षेत्र में बन रहे पंचेश्वर बांध का भी इन्हीं सब पर्यावरणीय खतरों के चलते विरोध कर रही है। उन्होंने कहा क उलोवा का मानना है कि पर्वतीय जनपदों में बड़े बांधों की बजाए छोटे—छोटे बांधों का निर्माण कर स्थानीय ग्रामीणों को लाभान्वित करना चाहिए। उलोवा नेता एडवोकेट जगत सिंह रौतेला ने कहा कि चमोली जनपद की यह आपदा पूरी तरह मानव जनित है। यहां बड़े—बड़े प्रोजेक्टों के माध्यम से धन कमाने की लालसा प्राकृतिक विपदाओं को ही निमंत्रण दे रही हैं। पहाड़ को काट कर जो सुरंगें बनती हैं और उनमें जो पानी का रिसाव होता है उससे खतरा कई गुना बढ़ जाता है, क्योंकि यह एक वैज्ञानिक तथ्य है कि पानी के रिसाव को जबरन रोका नही जा सकता, बल्कि उसे रास्ता दिया जाता है। उन्होंने इस प्रकार के कई उदाहरण भी प्रस्तुत किये। उलोवा के जंगबहादुर थापा ने कहा कि यदि इसी तरह कुमाऊं—गढ़वाल में बड़े बांध बनते रहे तो आने वाले समय में स्थिति और गंभीर हो जायेगी। उन्होंने कहा कि उलोवा का यह सुझाव है कि 10—10 गांवों का चयन कर यहां छोटे—छाटे बांध बनने चाहिए, जिसका लाभ भी स्थानीय ग्रामीणों को मिलना चाहिए। उलोवा नेता अजय मित्र बिष्ट ने कहा कि ऋषिगंगा का बांध 13 मेघावाट का है। इसकी बजाय यहां छोटे—छोटे बांधों का निर्माण होना चाहिए। यदि सरकारें अभी नही सम्भलीं तो भविष्य में खतरा बड़ सकता है। इस अवसर पर संगठन के कुणाल जोशी ने जन कवि स्व. गिरीश तिवारी ‘गिर्दा’ की प्रदेश में बन रहे बड़े बांधों के संबंध में एक समसामायिक कविता का पाठ भी किया। इस मौके पर चमोली त्रासदी में मारे गये तमाम ज्ञात—अज्ञात लोगों को श्रद्धांजलि अर्पित की गई।

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