ब्रेकिंग न्यूज : ‘धर्म संकट’ में फंसे काशीपुर के विधायक हरभजन सिंह चीमा ने पंतनगर एयरपोर्ट का खेला दांव, पार्टी की किरकिरी

हल्द्वानी। उत्तराखंड में तराई के इलाके में भाजपा में सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। भाजपा के कार्यकर्ता किच्छा विधायक राजेश शुक्ला को इस…

हल्द्वानी। उत्तराखंड में तराई के इलाके में भाजपा में सबकुछ ठीक ठाक नहीं चल रहा है। भाजपा के कार्यकर्ता किच्छा विधायक राजेश शुक्ला को इस परियोजना के समर्थन में ज्ञापन पर ज्ञापन सौंप रहे हैं वहीं काशीपुर के भाजपा विधायक हरभजन सिंह चीमा ने यूनिवर्सिटी की भूमि अधिगृहण करके प्रस्तावित इस अंतरराष्ट्रीय एयरपोर्ट के निर्माण का विरोध कर दिया है। चीमा ने बाकायदा एक पत्रकारवार्ता बुलाकर साफ कर दिया है कि वे पंतनगर यूनिवर्सिटी की भूमि पर एयरपोर्ट बनाए जाने के पक्षधर नहीं है। उनका कहना है कि पंतनगर कृषि यूनिवर्सिटी इस भूमि पर किसानों के लिए शोध करती है और सरकार इस भूमि का हस्तातरण करके यहा एयरपोर्ट बनाने की कोशिश कर रही है जो पूरी तरह से गलत है। उनका कहना है कि इसका नुकसान देश के किसानों को उठाना पड़ेगा।
हम आपको बता दें कि काशीपुर उत्तराखंड के तराई क्षेत्र में आता है। यहां सिख किसान बहुसंख्या में हैं। चीमा भी इसी समुदाय से आते हैं। देश में चल रहे किसान आंदोलन का यदि पूरे प्रदेश में कहीं सबसे ज्यादा समर्थन हुआ है तो वह उधमसिंह नगर जिला ही है। उसमें भी काशीपुर सबसे आगे रहा है। ऐसे में किसान आंदोलन की छाया चीमा पर न पड़े ऐसा नहीं हो सकता है। चीमा भाजपा से हैं और देश के किसान भाजपा की केंद्र सरकार के खिलाफ ही डंका बजा रहे हैं। इन किसानों में अधिक संख्या सिख किसानों की ही है। फिर चीमा के लिए यह धर्म संकट की बात है कि वे काशुीपर जैसी जगह में रहते हुए किसान आंदोलन से मुंह फेर लें, चीमा ने फिलहाल बीच का रास्ता निकालते हुए किसानों की बात तो कही लेकिन किसान आंदोलन पर नहीं एयरपोर्ट के हवाले से। हालांकि उन्होंने किसान हित की बात कही है और भाजपा नहीं चाहती कि उनकी पार्टी के भीतर से ही किसी ऐसे मुद्दे को हवा मिले जो आने वाले समय में नाक का सवाल बन जाए।
यहां एक और चीज देखने वाली है दिल्ली की सत्ता संभालने के बाद उत्तराखंड में विधानसभा चुनाव लड़ने की तैयारी कर रही आम आदमी पार्टी को भी सबसे ज्यादा समर्थन उधमसिंह नगर क्षेत्र के सिख बाहुल्य इलाकों में ही मिल रहा है। चीमा के लिए यह भी चिंता की बात है। इसलिए उन्होंने अपनी और से किसानों को साधने का प्रयास तो किया है लेकिन उनकी यह मांग आने वाले दिनों में प्रदेश व केंद्र सरकार के निर्णय पर बड़ा सवाल बन कर उभर सकती है।

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