देवभूमि उत्तराखंड में परिंदों की सर्वाधिक प्रजातियां, जीव विज्ञानी गदगद

⏩ लेटस्ट गणना में 700 के करीब प्रजातियों की हुई गिनती ⏩ आर्क बर्ड काउंट फाउंडेशन की रिपोर्ट सीएनई डेस्क झट खिड़की खोलो, नन्ही गौरया…

⏩ लेटस्ट गणना में 700 के करीब प्रजातियों की हुई गिनती

⏩ आर्क बर्ड काउंट फाउंडेशन की रिपोर्ट

सीएनई डेस्क

झट खिड़की खोलो, नन्ही गौरया संग सभी परिंदे को भीतर आने दो,
देवभूमि का वासी हूं मैं, मेरे घर-आंगन में है ढेरों चिडियों का बसेरा।

एक प्रकृति प्रेमी की यह कविता देवभूमि उत्तराखंड के लिए है। ऐसा हो भी क्यों ना, गर्व की बात है कि इस हिमालयी प्रदेश में देश भर में पाए जाने वाले परिंदों में सर्वाधिक यहां के खुले आकाश में विचरण करते हैं। हाल में हुई गणना में यहां पाये जाने वाले पक्षियों की संख्या ने प्रकृति प्रेमियों को गदगद कर दिया है। उत्तराखंड में परिंदों की यदि बात करें तो देश भर में पंछियों की कुल पाये जाने वाली 1307 प्रजातियों में से 700 ने यहां अपना बसेरा बनाया है।

उत्तराखंड की यदि बात करें तो बर्फ से ढके पहाड़, झीलें और तीर्थ स्थलों की मनोहारी छटा आंखों के समक्ष उत्पन्न हो जाती है, लेकिन कम ही लोग जानते हैं कि जैव विविधता से परिपूर्ण इस प्रदेश में सर्वाधिक पंछियों का बसेरा है। प्रदेश ने सभी राज्यों को इस मामले में पछाड़ दिया है। उत्तराखंड के तराई मैदान, भाभर, शिवालिक, निचला हिमालय और ट्रांस-हिमालय शामिल हैं। इस तरह की विविधता इसे पक्षियों और पक्षी देखने वालों के लिए एक आदर्श स्वर्ग बनाती है।

2015 में, उत्तराखंड के राज्य वन विभाग ने उत्तराखंड के पक्षियों की चेकलिस्ट का दूसरा संशोधित संस्करण प्रकाशित हुआ था। इसे डॉ. धनंजय मोहन और संजय सौंधी (दो प्रख्यात पक्षी विज्ञानी) द्वारा संकलित किया गया था। तब की चेक लिस्ट के अनुसार, भारत लगभग 1303 पक्षी प्रजातियों का घर पाया गया, जिनमें से उत्तराखंड में 693 पंछी पाये गये। इससे भी सुखद बात यह है कि हाल में हुए एक अन्य सर्वे में पाया गया कि पंछियों की विविध प्रजातियों की संख्या यहां लगातार बड़ रही है और वर्तमान में यहां करीब पंछियों की 700 के करीब प्रजातियां रिकार्ड की गई हैं।

ज्ञात रहे कि देश की 50 प्रतिशत से अधिक पंछियों की प्रजातियां यहां देखी गई हैं। यही नहीं, लुप्तप्राय पक्षियों की 05 प्रजातियां भी यहां पाई जाती हैं। इनमें अयथ्या बेरी, पतला चोंच वाला गिद्ध, सफेद दुम वाले गिद्ध, लाल सिर वाले गिद्ध और हिमालयन बटेर शामिल हैं। हालांकि, इस अंतिम प्रजाति को विलुप्त माना जाता है, लेकिन यह अभी भी कुछ दूरस्थ क्षेत्रों में बहुत कम संख्या में जीवित हैं।

वर्षों से, इन पंखों वाले चमत्कारों ने प्रकृति के प्रति उत्साही, शोधकर्ताओं और फोटोग्राफरों को इस क्षेत्र में आकर्षित किया है। 2012 में, उत्तराखंड वन विभाग के इकोटूरिज्म विंग ने उत्तराखंड स्प्रिंग बर्ड फेस्टिवल की शुरुआत की, जिसमें दुनिया भर से उपस्थित लोगों के लिए गाइडेड बर्ड वॉक, वार्ता, फिल्म स्क्रीनिंग और कार्यशालाओं की मेजबानी की गई। 2020 में, प्रतिभागियों ने उत्सव के दौरान पक्षियों की 300 से अधिक प्रजातियों की पहचान की। हालांकि, 2021 में चमोली बाढ़ के कारण कार्यक्रम को रद्द कर दिया गया था।

आर्क बर्ड काउंट फाउंडेशन की पिछले 10 साल की जो रिपोर्ट है वो साबित करती है कि उत्तराखंड में परिंदे स्वयं को महफूज महसूस करते हैं। फाउंडेशन की रिपोर्ट के अनुसार देश में पाई जाने वाली पक्षियों की 1305 प्रजातियों में से 700 देवभूमि उत्तराखंड में हैं। अब एक बार फिर पक्षियों की गणना का काम यहां शुरू हो गया है।

उल्लेखनीय है कि गत दिनों देहरादून से Arch Bird Count Foundation की 16 टीमें उत्तराखंड के गढ़वाल रीजन के पश्चिम में आराकोट से लेकर पूरब में पिंडर घाटी, अलकनंदा नदी और पौड़ी में लैंसडाउन तक पक्षियों की अलग-अलग प्रजातियों की गणना करने के लिए रवाना हो चुकी हैं। फाउंडेशन द्वारा वर्ष 2008 से लगातार किए जा रहे बर्ड सेंसस का यह दसवां संस्करण है। इसमें देश भर से सवा सौ से ज्यादा अलग अलग सेक्टर के पक्षी प्रेमी वॉलिंटियर भाग ले रहे हैं। यह सभी 16 टीमें अगले 4 दिनों में उत्तराखंड में मौजूद चिड़ियों के बेस लाइन डायनेमिक इंडेक्स का डाटा तैयार करेंगी। ज्ञात रहे कि आर्क बर्ड काउंट फाउंडेशन के इस अभियान में देश भर के कई नौजवान और पक्षी प्रेमी वॉलिंटियर शामिल हैं।

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