• कृष्णा कुमार, तलवंडी, राजस्थान

एक दिन जंगल में मंकू सियार की बेटी नूरी नदी पर जल भरने जा रही थी। रास्ते में उसे कालू भेड़िया छेड़ने लगा। उसने आनाकानी की, चीखी-चिल्लाई, लेकिन किसी ने एक नहीं सुनी। दरिंदा उसके साथ मुंह काला करके चला गया।

रात भर में सारे जंगल में यह बात फैल गयी। बदनामी के डर से नूरी ने कुएं में कूदकर आत्महत्या कर ली। पुलिस इंस्पेक्टर हाथी दादा तहकीकात करने आए। काफी पूछताछ की पर अपराधी के खिलाफ कोई सबूत नहीं मिला। खरगोश ने कहा साहब मैंने तो कुछ देखा ही नहीं, मैं तो घर में खर्राटे भर रहा था। हिरण ने बताया हम तो बाजार गए हुए थे। बंदर ने कहा हम तो सारे दरवाजे-खिड़कियां बंद करके नाच रहे थे। बबरू बिलाव ने बताया साहब हम तो शरीफ लोग हैं। अपने काम से काम रखते हैं, किसी के मामले में पांव नहीं फंसाते। पूछने पर जिराफ ने नहले पर दहला मारा कि आजकल किसी के बीच में बोलने का जमाना कहां रहा ?

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…और गवाह के अभाव में अपराधी बच निकला। सूत्रों से ज्ञात हुआ है कि जंगल में बहू-बेटियों द्वारा आत्महत्या करने का सिलसिला चल निकला है।

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