स्वास्थ्य विशेष: मा​नसिक रूप से रहें स्वस्थ, इन विकारों को भगाएं दूर (जानिये पूरी बात)

—अल्मोड़ा की उदिता पंत ने उठाया पहाड़ की सेवा करने का बीड़ासीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ाअगर व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य एकदम ठीक रहे, तो उसे मानसिक रोग…

—अल्मोड़ा की उदिता पंत ने उठाया पहाड़ की सेवा करने का बीड़ा
सीएनई रिपोर्टर, अल्मोड़ा
अगर व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य एकदम ठीक रहे, तो उसे मानसिक रोग हो ही नहीं सकता। साथ ही अन्य कई शारीरिक बीमारियां भी दूर रहती हैं, क्योंकि 70 फीसदी शारीरिक बीमारियों के पीछे तनाव, तरह—तरह के मनोविकार व आंतरिक दबाव आदि कारण होते हैं। यह कहना है कि क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट उदिता पंत का। जिन्होंने विशेषज्ञता प्राप्त करने के बाद अपने ही गृह क्षेत्र अल्मोड़ा में पहाड़ के लोगों को उपचार देकर सेवा करने का बीड़ा उठाया है। विश्व स्वास्थ्य दिवस (world health day) के उपलक्ष्य में सीएनई की उनसे मा​नसिक स्वास्थ्य के संबंध में बातचीत हुई।

क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट उदिता पंत कहती हैं कि आज की भागदौड़ की जिंदगी में आम जनमानस में मनोरोग या ऐसे विकार हावी हो रहे हैं और इनसे छुटकारा पाने के लिए तमाम लोग प्रयारत रहते हैं। कोई चिंता से घिरा है, कोई डिप्रेशन में है, कोई शारीरिक परेशानियों से घिरा है, कोई व्यवहार संबंधी दिक्कतों से दुखी है, कोई बेचैन है, तो कोई नशे की लत में डूब चुका है। उनका कहना है कि ये सब किसी न किसी रूप से मनोविज्ञान से जुड़े मामले हैं। जिनकी समय रहते परामर्श, जांच व चिकित्सा जरूरी समझी जानी चाहिए। उदिता कहती हैं कि आज भी दूरस्थ गांवों में कई बार लोग भूत प्रेत, भय बाधा व देवी—देवता के प्रकोप जैसी चीजों में पड़े रहते हैं। मगर एक बार मनोरोग विशेषज्ञ से परामर्श नहीं करते। वह कहती हैं कि किसी की आस्था को चोट पहुंचाने के उद्देश्य से वह यह बात नहीं कह रही हैं, ​बल्कि उनका कहना है कि मनोविकार की ऐसी स्थिति में एक बार मनोरोग विशेषज्ञ से जरूर परामर्श लें, क्योंकि यदि मनोविकार से ग्रसित व्यक्ति या अवसादग्रस्त व्यक्ति जब विशेषज्ञ से परामर्श करता है, तो उसकी समस्याओं की गुत्थी सुलझने लगती है।

उन्होंने उदाहरण के तौर पर कहा कि बीते कोरोनाकाल में दो साल में अध्ययनरत विद्यार्थियों और छोटे बच्चों को भले ही आनलाइन शिक्षा दी गई, लेकिन उनके शैक्षिक व बौद्धिक स्तर के विकास में रूकावट आई और वे खुद का सामान्य महसूस नहीं कर पा रहे थे, क्योंकि उन्हें लंबे समय तक अपने शिक्षकों व सहपाठियों का साथ नहीं मिल पाया। इसी प्रकार बेरोजगार नवयुवक—नवयुवतियां लगातार भविष्य की चिंता में डूबे रहते हैं या कोविड के कारण नौकरी गवा चुके लोगों और लंबे समय तक बाजार बंद रहने से व्यापारियों को कई तरह की​ चिंताओं ने घेर लिया था। तो ऐसी स्थितियों में निश्चित रूप से उनके अंदर एक प्रकार का मनोविकार कोरोनाकाल में पैदा हो गया था। उनका कहना है कि ऐसे ही मनोविकार धीरे—धीरे बड़ी समस्या बन जाती हैं। बाद में दिक्कत का कारण बनें, ऐसे मनोविकारों से बचने के लिए उदिता सलाह देती हैं कि नई सोच के साथ अपने कार्य को करें। चाहे आप व्यवसाय, निजी कार्य, सरकारी या प्राइवेट नौकरी, जो भी कर रहे हों। बच्चे अपनी पढ़ाई में मन लगाएंं और परीक्षा का डर मन में ना पालें, नई उम्मीदों के साथ प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करें। अपने घर के वातावरण को सुव्यवस्थित और खुशनुमा रखें। घर के असहाय व बुजुर्गों का मनोबल बढ़ाने के लिए उन्हें स्वस्थ वातावरण का ऐहसास कराएं।
कब कराएं चेकअप
क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट उदिता पंत कहती हैं कि कई ऐसी बातें दिमाग से जुड़ी होती हैं, जिन्हें आमतौर पर लोग अनदेखा कर देते हैं या सामान्य बात समझ बैठते हैं, लेकिन आगे चलकर यही सामान्य बात बड़ी मुश्किल खड़ा कर देती है। क्लीनिकल साइक्लोजिस्ट या मनोरोग विशेषज्ञ को कब चेकअप कराना चाहिए। इस बारे में उदिता ये स्थितियां बताती हैं:—
— जब 03 से 08 वर्ष के बच्चों में यदि एकाग्रता की कमी, बोलने में परेशानी, जमीन पर लोट जाना या अत्यधिक गुस्सा करना, उम्र के अनुसार पढ़ाई या अन्य काम नहीं कर पाना, लार निकलना, बात को सही से नहीं समझ पाना या किसी बात पर ध्यान नहीं देना आदि लक्षण हों।
—जब 09 से 15 वर्ष के बच्चों में यदि स्कूल या परीक्षा से डर होना, बिस्तर पर पेशाब कर देना, चोरी करना या झूठ बोलने की प्रवृति जागना, आत्मविश्वास की कमी होना, दब्बू प्रवृत्ति का होना, घर या स्कूल से भाग जाना, मानसिक दिक्कत होना व नशे की प्रवृत्ति पैदा हो जाना आदि लक्षण हों।
—जब 16 साल से अधिक उम्र में यदि सामंजस्य नहीं कर पाना, जुआ खेलना या चोरी की प्रवृत्ति होना, अत्यधिक गुस्सा होना, नशा करना, डिप्रेशन का शिकार होना, मन विचलित रहना, जिम्मेदारी लेने की क्षमता नहीं होना आदि लक्षण हों।
ऐसे होगा उपचार
पहले IQ and PQ, Vocational, घबराहट, डर परीक्षण, व्यक्तित्व, मानसिक विकास संबंधी विकार, पढ़ने व याद करने की क्षमता आदि परीक्षण किए जाते हैं, ताकि कमी का साफ पता चल सके। इसके बाद काउंसिलिंग, हाइपो थेरेपी, सीबीटी, सीडीटी तथा पास्ट लाइफ थेरेपी आदि के जरिये विकार को दूर किया जाता है।
सेवा में जुटी उदिता

​उदिता पंत अल्मोड़ा नगर के बिष्टकूड़ा मोहल्ले के विमलाकुंज निवासी प्रतिष्ठित राघव पंत व कल्पना पंत की पुत्री हैं। जिनकी प्रारंभिक शिक्षा कूर्मांचल एकेडमी अल्मोड़ा में हुई है। इसके बाद 12वीं तक की शिक्षा उन्होंने आल सेंट्स गर्ल्स स्कूल नैनीताल से पाई। स्नातक की शिक्षा माउंट कार्मल कालेज बैंगलुरू से पत्रकारिता व मनोविज्ञान विषयों से उत्तीर्ण की तथा परास्नातक की उपाधि भारतीयार यूनिवर्सिटी कोयम्बटूर से क्लीनिकल साइक्लॉजी विषय में ली। उन्होंने भारत सरकार के रक्षा अनुसंधान संस्थान डीआरडीओ से इसी की 06 माह का प्रशिक्षण लिया। तत्पश्चात श्री रामचंद्र कालेज आफ मेडिकल साइंस एंड रिसर्च, चेन्नई से सफलतापूर्वक एम.फिल की डिग्री ली। इस सबके बाद उन्होंने अपने सफल प्रशिक्षण व अनुभव का लाभ अपने ही पहाड़ में देने का बीड़ा उठाया है। अल्मोड़ा में लोगों को उपचार देना भी शुरू कर दिया। उन्होंने अल्मोड़ा में साईं मंदिर के निकट दी मेडिकल प्वाइंट पर ‘TheraBee Aid’ नामक मेंटल हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर की शुरूआत कर दी है। उनसे कई ऐसे लोग परामर्श व थेरेपी से उपचार ले रहे हैं।

स्वास्थ्य संबंधी परामर्श लीजिए — 9412045197

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