बागेश्वर जनपद निवासी चौहान ने नेताजी के साथ लड़ी थी आजादी की लड़ाई
स्व. राम सिंह चौहान ------ फाइल फोटो।

📌 बागेश्वर जनपद निवासी चौहान ने नेताजी के साथ लड़ी थी आजादी की लड़ाई

👉 क्षेत्र में उनकी वीरता के चर्चे, भ्रष्टाचार को मानते थे आजादी पर कलंक

दीपक पाठक, बागेश्वर

स्वतंत्रता संग्राम सेनानी स्व. राम सिंह चौहान बागेश्वर जिले के एकमात्र जीवित आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे। पिता की तरह उनकी गिनती भी वीर सैनिकों में रही है। यही वजह रही कि पूरे क्षेत्र में स्व. राम सिंह चौहान की वीरता के लिए बेहद जाने जाते हैं। उनके पिता तारा सिंह ने पहला विश्व युद्ध लड़ा था। स्व. राम सिंह चौहान पूरे 101 साल तक स्वस्थ्य रहे और उम्र के अंतिम पड़ाव में भी अपना काम खुद करते रहे। इधर चंद दिनों से ही उनका स्वास्थ्य अचानक खराब हुआ था।

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वह गढ़वाल राइफल में तैनाती के दौरान ही सशस्त्र आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए थे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ उन्होंने आजादी के आंदोलन में बढ़चढ़ कर प्रतिभाग किया था। चौहान के वीरता के इलाके के सभी लोग कायल थे। 22 फरवरी 1922 को जन्मे राम सिंह चौहान के खून में ही वीरता भरी थी। पिता तारा सिंह वर्ष 1940 में गढ़वाल राइफल्स में पौड़ी गढ़वाल में तैनात थे। इनके पिता ने पहला विश्व युद्ध लडा था। वही राम सिंह भी पिता की तरह वीर सैनिक थे। वह गढ़वाल राइफल्स में तैनात थे। जब देश में आजादी का आंदोलन चल रहा था। नेताजी सुभाष चंद्र बोस से प्रभावित राम सिंह चौहान वर्ष 1942 में अपने साथियों के साथ सशस्त्र आजाद हिंद फौज में शामिल हो गए।

उन्होंने नेताजी के साथ मलाया, सिंगापुर, बर्मा आदि स्थानों पर देश की आजादी की लड़ाई लड़ी। नेताजी के साथ मिलकर अंग्रेजों से दो-दो हाथ किए। आजादी के आंदोलनों के दौरान कई बार जेल में भी रहे। यातनाएं सहीं लेकिन अंग्रेजों के सामने झुके नहीं। वर्ष 1972 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सेनानी राम सिंह को ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया गया।

आजाद हिंद फौज के अंतिम सिपाही स्व. राम सिंह पूरी तरह 101 साल तक स्वस्थ रहे। वह अपने सारे काम स्वयं करते रहे है। हालांकि वह कान कम सुनते थे, लेकिन कुछ दिनों पहले उनका स्वास्थ्य अचानक खेत में काम करते करते खराब हो गया। स्व. राम सिंह चौहान देश की वर्तमान व्यवस्था से हमेशा नाराज रहे हैं। वह भ्रष्टाचार को आजादी पर कलंक मानते रहे है। वही स्वाधीनता सेनानी राम सिंह चौहान के चार पुत्र थे। तीन पुत्रों पूरन सिंह, चंदन सिंह, आनंद सिंह का पहले ही निधन हो चुका था। वह अपने चौथे पुत्र गिरीश चौहान के साथ रहते थे।

राजकीय सम्मान के साथ हुई अंत्येष्टि

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