HomeUttarakhandDehradunऋषिकेश : एम्स में वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक कार्यक्रम आयोजित, चिकित्सकों ने...

ऋषिकेश : एम्स में वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक कार्यक्रम आयोजित, चिकित्सकों ने किया एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग से नागरिकों को आगाह

देहरादून। अ​खिल भारतीय आयुर्विज्ञान संस्थान एम्स ऋषिकेश में वर्ल्ड एंटीमाइक्रोबेल एवरनैस वीक के अंतर्गत आयोजित कार्यक्रम में विभिन्न विभागों के विशेषज्ञों ने व्याख्यानमाला प्रस्तुत किए। इस अवसर पर उन्होंने लोगों से अपील की कि वह किसी भी बीमारी में विशेषज्ञ चिकित्सक की सलाह लिए बिना एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल हरगिज नहीं करें, ऐसा करने से उनके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ सकता है। विशेषज्ञ चिकित्सकों ने एंटीबायोटिक दवाओं के दुरुपयोग से नागरिक स्वास्थ्य को होने वाले नुकसान को लेकर भी आगाह किया है।

निदेशक एम्स पद्मश्री प्रोफेसर रवि कांत की देखरेख में आयोजित सप्ताहव्यापी जनजागरुकता कार्यक्रम के तहत शुक्रवार को संस्थान के स्वांस रोग ​विभागाध्यक्ष प्रो. गिरीश सिंधवानी ने बताया कि आम जुकाम की स्थिति में 20 से 25 प्रतिशत तक वायरल होता है, मगर देखा गया है कि सामान्य वायरल की स्थिति में भी एंटीबायोटिक का प्रयोग किया जा रहा है। उन्होंने बताया कि हमारे विभाग में भी एंटीबायोटिक का उपयोग होना स्वाभाविक है मगर उसे सही समय व सही मानक में देना जरुरी है। डा. गिरीश सिंधवानी ने एंटीबायोटिक जनजागरुकता सप्ताह में लोगों का आह्वान किया कि वह एंटीबायोटिक दवाओं का दुरुपयोग नहीं करें जिससे आने वाली पीढ़ी भी इन दवाओं का इस्तेमाल कर सके। ईएनटी विभाग के एडिशनल प्रोफेसर डा. मनु मल्होत्रा ने बताया कि आंख, नाक, गला विभाग में एंटीबायोटिक का सबसे अधिक इस्तेमाल होता है। बताया कि अस्पताल में खांसी, जुकाम, गले में दर्द की शिकायत वाले मरीज अपने मर्जी से ही एंटीबायोटिक का उपयोग कर लेते हैं,लिहाजा प्रतिरोधक स्थिति में उन्हें एंटीबायोटिक दवा का असर कम होने लगता है। ऐसे मरीजों को बिना किसी विशेषज्ञ चिकित्सक के सुझाव के अपनी इच्छा से एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। विशेषज्ञ चिकित्सक ने बताया कि प्रत्येक विभाग को ऑपरेशन से पूर्व व उसके बाद की स्थितियों के लिए अपने अपने प्रोटोकॉल बना लेने चाहिंए, जिससे मरीज को दवा देने में सरलता हो।

सिंध नदी में मिली सकरमाउथ कैटफिश मांसाहारी मछली, गंगा में देखा गया था इससे पहले, वैज्ञानिकों ने जताया खतरा

नियोनिटोलॉजी विभागाध्यक्ष प्रोफेसर श्रीपर्णा बासु ने नवजात शिशुओं की बढ़ती मृत्युदर के बाबत जानकारी दी। उन्होंने इसकी मुख्य वजह संक्रमण को बताया। साथ ही जनरल पब्लिक को संदेश दिया कि मां को अपने नवजात शिशुओं को अपना ही दूध देना चाहिए और अन्य तरह के किसी भी तरीके का उपयोग नहीं करें। उन्होंने बताया कि इन्फेक्शन के बाद बच्चों को कई तरह के एंटीबायोटिक देने पड़ते हैं जिसका उनके स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव पड़ता है लिहाजा कोशिश की जानी चाहिए कि संक्रमण को पैदा ही नहीं होने दिया जाए। उन्होंने बताया कि हैंड हाईजीन का ध्यान रखने से 99 फीसदी संक्रमण को कम किया जा सकता है। न्यूरोलॉजी विभागाध्यक्ष डा. नीरज कुमार ने बताया कि हमारे विभाग में प्राइमरी व सेकेंड्री संक्रमण के पेशेंट आते हैं। लिहाजा हमें प्राइमरी संक्रमण के समय में एंटीबायोटिक का इस्तेमाल नहीं करना चाहिए। उन्होंने स्ट्रोक के पेशेंट व कुछ अन्य सेकेंड्री इन्फेक्शन के बारे में विस्तृत जानकारी दी और कहा कि हम लोग पॉलिसी के अनुसार ही मरीज को एंटीबायोटिक देते हैं। उन्होंने इन्फेक्शन का सही तरह से पता लगने के बाद ही एंटीबायोटिक देना चाहिए। कॉर्डियो थोरसिक वस्कुलर सर्जरी विभाग (सीटीवीएस) के डा. अंशुमन दरबारी ने कहा कि हम एंटीबायोटिक के कम उपयोग पर अधिक ध्यान देते हैं, क्योंकि हम ऑपरेशन के दौरान इस्टीराइल वातावरण का ध्यान रखते हैं, लिहाजा इन्फेक्शन की चांस कम रहते हैं, लिहाजा एंटीबायोटिक के इस्तेमाल की जरुरत ही नहीं पड़ती है। उन्होंने कहा कि एंटीबायोटिक का इस्तेमाल ठीक तरह से नहीं होगा तो यह दवाइयां बेकार हो जाएंगी।

RELATED ARTICLES

Leave a reply

Please enter your comment!
Please enter your name here

Most Popular

Recent Comments